प्राकृतिक कृषि पद्धति आजकल खेती का एक प्रमुख विकल्प बन रहा है, जो कृषि क्षेत्र में पर्यावरणीय समस्याओं का समाधान करने के लिए अपना योगदान दे रही है. इस पद्धति में खेती का प्रबंधन प्राकृतिक और स्थानीय स्तर पर उपलब्ध संसाधनों के साथ किया जाता है, ताकि स्वास्थ्यवर्धक उत्पाद, पर्यावरण संरक्षण और सामाजिक न्याय को बढ़ावा मिले.
प्राकृतिक खेती एक भारतीय पारंपरिक कृषि पद्धति है, जो प्रकृति के साथ तालमेल स्थापित कर पर्यावरण संरक्षण के साथसाथ स्वास्थ्यवर्धक खाद्य सुरक्षा प्रदान करने के साथ ही टिकाऊ खेती को बढ़ावा देता है.
प्राकृतिक खेती में रसायनों के प्रयोग को पूरी तरह से वर्जित किया जाता है और फसलोत्पादन के लिए स्थानीय स्तर पर उपलब्ध संसाधनों का प्रयोग पौध पोषण एवं फसल सुरक्षा के लिए किया जाता है.
प्राकृतिक खेती क्यों?
प्राकृतिक खेती की जरूरत क्यों है? जबकि वर्तमान समय में प्रचलित रसायनयुक्त पारंपरिक कृषि से किसान को अच्छा फसलोत्पादन प्राप्त हो रहा है. इस का उत्तर प्राप्त करने के लिए यह आवश्यक है कि यह समझा जाए कि वर्तमान समय में प्रचलित रसायनयुक्त पारंपरिक खेती में क्याक्या समस्याएं हैं. वर्तमान समय में रसायन आधारित पारंपरिक कृषि के विभिन्न अनपेक्षित परिणाम हैं, जो पर्यावरण, समाज और अर्थव्यवस्था को प्रभावित करते हैं. पारंपरिक खेती से होने वाले अनपेक्षित कुछ प्रमुख परिणाम हो सकते हैं.
जल प्रदूषण
पारंपरिक खेती में सिंथेटिक उर्वरकों और कीटनाशकों के उपयोग से जल निकायों में रिसाव होता है, जिस से भूजल और सतही जल प्रदूषित हो रहे हैं. यह प्रदूषण जलीय पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान पहुंचा रहा है और इनसान की सेहत को भी प्रभावित कर रहा है.
मृदा क्षरण
गहन जुताई, मोनोक्रापिंग और रासायनिक निवेशों के उपयोग से मिट्टी की क्वालिटी का खराब होना, भूक्षरण, मिट्टी का सख्त होना और कृषि भूमि की उत्पादन क्षमता में गिरावट हो रही है. इस के उलट प्राकृतिक खेती में मिट्टी की क्वालिटी में सुधार होने से उत्पादन क्षमता में निरंतर वृद्धि होती है.
जैव विविधता को नुकसान
पारंपरिक खेती में अकसर फसलोत्पादन के लिए प्राकृतिक रूप से उगे पेड़पौधे, जंगल आदि को (हैबिटैट) को साफ कर भूमि को खेती में शामिल किया जाता है. प्राकृतिक वास के इस नुकसान से जैव विविधता में गिरावट आ रही है, जिस से परागण और प्राकृतिक कीट नियंत्रण जैसी पारिस्थितिकी तंत्र सेवाएं प्रभावित हो रही हैं.
ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन
पारंपरिक कृषि ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन का एक महत्वपूर्ण स्रोत है. मुख्य रूप से सिंथेटिक रासायनिक उर्वरकों के उपयोग से नाइट्रस औक्साइड, जो एक शक्तिशाली ग्रीनहाउस गैस है, वातावरण में अवमुक्त होती है.
स्वास्थ्य पर प्रभाव
पारंपरिक कृषि में कीटनाशकों के उपयोग से कृषि श्रमिकों, उपभोक्ताओं और आसपास के समुदायों पर नकारात्मक स्वास्थ्य प्रभाव पड़ रहा है. खाद्य श्रंखला में कीटनाशकों के अवशेष स्वास्थ्य के लिए बेहद नुकसानदायक हैं.
ग्रामीण समुदायों का क्षरण
पारंपरिक कृषि पद्धतियों से कृषि भूमि को बड़े पैमाने पर मोनोकल्चर में समेकित किया जा रहा है, जो छोटे किसानों को खेती से विस्थापित कर रहा है, जिस से ग्रामीण समुदायों का सामाजिक तानाबाना प्रभावित हो रहा है.
कई बार यह भी तर्क दिया जाता है कि प्राकृतिक खेती लाभदायक नहीं है. प्राकृतिक खेती कम लागत (स्थानीय स्तर पर उपलब्ध कृषि निवेशों के प्रयोग के कारण कई बार इसे जीरो बजट प्राकृतिक खेती कहा जाता है) अच्छी गुणवत्ता के उत्पाद, जिस का बाजार मूल्य अच्छा होता है, किसान की शुद्ध आय में कोई कमी नहीं होती है. रसायनयुक्त पारंपरिक कृषि में कई छुपे हुए खर्च निहित होते हैं, जिसे प्रायः हम आगणित ही नहीं करते. पारंपरिक कृषि से निम्नलिखित खर्च भी व्यक्ति अथवा समाज को करने पड़ते हैं.
पर्यावरणीय सफाई पर अनावश्यक खर्च
जल प्रदूषण, मिट्टी के क्षरण और अन्य पर्यावरणीय क्षति का निवारण अत्यंत महंगा होता है और इस के लिए पर्याप्त पैसों की जरूरत हो सकती है.
स्वास्थ्य देखभाल पर अनावश्यक खर्च
कीटनाशकों के संपर्क और दूषित जल स्रोतों से संबंधित स्वास्थ्य समस्याओं का इलाज करने से स्वास्थ्य देखभाल प्रणालियों पर वित्तीय बोझ पड़ रहा है.
पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं का नुकसान
जैव विविधता के नुकसान और पारिस्थितिकी प्रणालियों के क्षरण से परागण और जल शुद्धीकरण जैसी पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं की उपलब्धता कम हो रही है, जिस का व्यक्ति पर आर्थिक और सामाजिक प्रभाव पड़ता है.
जलवायु परिवर्तन लागत
पारंपरिक कृषि से ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन जलवायु परिवर्तन में योगदान देता है, जिस का बड़े पैमाने पर आर्थिक व सामाजिक प्रभाव है, जिस में बुनियादी ढांचे, कृषि और मानव स्वास्थ्य के नुकसान शामिल हैं.
प्राकृतिक खेती अपनाने से इन सभी नुकसानों से सुगमता से बचा जा सकता है. यदि इन नुकसानों को रोक कर इन पर होने वाले खर्चे को बचाया जाए, तो यह बहुत अधिक होगी. साथ ही, प्राकृतिक खेती से मानव स्वास्थ्य के साथसाथ मृदा एवं पर्यावरण के संरक्षण को भी बल मिलता है.
प्राकृतिक खेती की विशेषताएं
कैमिकल निर्भरता से नजात
प्राकृतिक खेती में कोई भी रासायनिक उर्वरक, सिंथेटिक कीटनाशक या खरपतवारनाशक का प्रयोग नहीं किया जाता है. प्राकृतिक कृषि पद्धति खेती को कैमिकल निर्भरता से पूरी तरह से मुक्त बनाता है.
मिट्टी का संरक्षण
प्राकृतिक खेती में मिट्टी के संरक्षण और उस की गुणवत्ता को बनाए रखने पर जोर दिया जाता है. इस में किसान के प्रक्षेत्र पर उपलब्ध स्थानीय उत्पादों को खेती के लिए उपयोग होता है, जो मृदा स्वास्थ्य को सुदृढ़ रखने में सहयोगी होता है.
बायोविविधता का संरक्षण
प्राकृतिक खेती के अनुसार, फसलों को प्राकृतिक तरीके से उगाया जाता है और एकल खेती को हतोत्साहित कर बहुफसली खेती को बढ़ावा देती है, जिस से बायोविविधता को संरक्षित करने को भी प्रोत्साहित किया जाता है.
प्राकृतिक वित्तीय उपाय
प्राकृतिक खेती में जैविक खादों, जैविक कीटनाशकों और प्रकृति के साथ तालमेल स्थापित कर उन्नत खेती तकनीकों का उपयोग कर के किसान स्वावलंबी बनते हैं. प्राकृतिक खेती में किसान को बाहर से कृषि निवेशों की निर्भरता समाप्त होती है.
सामुदायिक सहयोग
प्राकृतिक खेती में स्थानीय समुदायों को सहयोग दिया जाता है, जो साझेदारी और अनुभव के माध्यम से खेती का प्रबंधन करते हैं.
जैविक खेती तकनीकों का उपयोग
जैविक खेती तकनीकों के उपयोग से खेती को संवेदनशील बनाया जाता है, जैसे कि जैविक खाद, जैविक कीटनाशक और प्राकृतिक बायोफार्मिंग प्रविधि.
जल संरक्षण
प्राकृतिक खेती में जल संरक्षण को महत्व दिया जाता है, जैसे कि बूंदों के संचय तंत्र और सूखे के प्रतिरोध के लिए प्राकृतिक साधनों का उपयोग.
संरक्षण क्षेत्रों की गुणवत्ता
प्राकृतिक खेती में भूमि, वन्य जीवों और जल संपदा की सुरक्षा का खासा ध्यान रखा जाता है, जिस से संरक्षण क्षेत्रों की गुणवत्ता बनाए रखने में मदद मिलती है.
प्राकृतिक खेती के लाभ
स्वास्थ्य लाभ
प्राकृतिक खेती से प्राप्त उत्पादों में कैमिकल का कम उपयोग होता है, जिस से उन में पोषक तत्वों की अधिक मात्रा पाई जाती है. इस से उपभोक्ताओं को स्वस्थ और पौष्टिक आहार मिलता है और विभिन्न बीमारियों से बचाव होता है.
पर्यावरण संरक्षण
प्राकृतिक खेती में कैमिकल का कम उपयोग किया जाता है, जिस से प्रदूषण कम होता है और प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण होता है. इस से जल, मिट्टी और वायु की स्थिरता बनी रहती है.
आर्थिक लाभ
प्राकृतिक खेती में कम खर्च और अधिक मूल्य प्राप्ति के चलते किसानों को अधिक लाभ होता है. इस के अलावा जब उत्पादों की मांग बढ़ती है, तो उन की कीमतें भी बढ़ जाती हैं, जिस से खेती करने वालें किसानों की आर्थिक स्थिरता बढ़ती है.
सामाजिक लाभ
प्राकृतिक खेती के माध्यम से किसान समुदाय आपस में साझेदारी करते हैं, जो सामाजिक भाईचारा और सामूहिक समृद्धि को बढ़ावा देता है. इस से सामाजिक न्याय, समर्थन और भाईचारा बढ़ता है.
बायोडाइवर्सिटी का संरक्षण
प्राकृतिक खेती में जलवायु, वन्य जीवों और जलवायु के संरक्षण का विशेष ध्यान रखा जाता है, जिस से बायोडाइवर्सिटी का संरक्षण होता है. इस से प्राकृतिक प्रणालियों का संतुलन बना रहता है.
आत्मनिर्भरता
प्राकृतिक खेती के प्रयोग से किसान आत्मनिर्भर बनते हैं. वे अपनी जरूरतों को स्वयं पूरा कर सकते हैं और स्थानीय संसाधनों का सही उपयोग कर के उत्पादन में वृद्धि कर सकते हैं.
जल संरक्षण
प्राकृतिक खेती में जल संचयन, स्थल संरक्षण और जल संपादन की प्रणालियों का प्रयोग किया जाता है. इस से जल संसाधन का सही उपयोग होता है और जल की कमी को कम किया जाता है.
अनुसंधान और विकास
प्राकृतिक खेती में नई और समृद्ध प्राकृतिक तकनीकों का अनुसंधान और विकास किया जाता है. यह न केवल खेती की उत्पादकता को बढ़ाता है, बल्कि विशेषज्ञों को भी नए और संबंधित क्षेत्रों में नए अवसर प्रदान करता है.
अनुभव और साझेदारी
प्राकृतिक खेती के माध्यम से किसान अनुभवों को साझा करते हैं और एकदूसरे से सीखते रहते हैं. यह सामूहिक उत्पादन और साझेदारी को प्रोत्साहित करता है, जिस से कृषि समुदाय का विकास होता है.
प्राकृतिक खेती के इन लाभों से न केवल कृषि सैक्टर में सुधार होता है, बल्कि समाज और पर्यावरण को भी स्थिरता और समृद्धि प्राप्त होती है. प्राकृतिक कृषि, खेती करने का वह प्राचीन तरीका है, जिस का रथ बीजामृत, जीवामृत, आच्छादन एवं वाफ्सा नामक चार पहियों पर आगे बढ़ता है.
प्राकृतिक खेती में शून्य अथवा न्यूनतम जुताई, स्थानीय स्तर पर उपलब्ध बीज, फसल आच्छादन, पूरे साल खेत में फसल, पौध पोषण के लिए जीवामृत अथवा घनजीवामृत का प्रयोग, फसल सुरक्षा के लिए खेत पर तैयार अवयवों के प्रयोग के साथसाथ गायों का पालन किया जाना सम्मिलित है, जिस के कारण खेती की लागत न्यूनतम, उच्च गुणवत्ता का उत्पादन और पर्यावरण के अनुकूल एक टिकाऊ कृषि पद्धति है, जो ऋषि कृषि परंपरा पर आधारित है. अतः वर्तमान समय में प्राकृतिक कृषि, खेती का अनुकूलतम विकल्प है.