सवाल : क्या अगले 10 सालों में खेतीबारी का स्वरूप बदलेगा? यदि हां, तो कैसे?
जवाब : उत्तर प्रदेश की लगभग सभी खेती वाली जमीनों का अध्ययन किया जाए, तो वर्तमान समय में खेती के लिए किराए पर जमीन गुणवत्ता के अनुसार 20,000 से 50,000 रुपए प्रति एकड़ सालाना किराए पर मिल रही है. जो भी खेती करने वाला परिवार अपनी पैतृक या लीज की जमीन से उपरोक्त धनराशि के बराबर यानी 20-50 हजार रुपया प्रति एकड़ सालाना की बचत नहीं कर पा रहा है, वह परिवार लगातार खेती के व्यवसाय से बाहर होता जा रहा है.
भारत में लगभग 1,1000 परिवार प्रतिदिन खेती छोड़ रहे हैं. इस समय भारत की जीडीपी में कृषि का योगदान महज 11 फीसदी तक सिमट गया है. यह दायरा आने वाले समय में लगातार घटता ही जाएगा. खेती से साल में एक या दो बार फसल लेने वालों के बजाय रेग्युलर सहफसलों, मल्टीस्टोरी क्रापिंग, सब्जी की खेती, पशुपालन करने वाले या जो लोग खेती के साथसाथ उस से जुड़े अन्य कोई भी काम कर रहे हैं, वे लोग ही सर्वाइव कर सकेंगे.
आने वाले समय में खेती के क्षेत्र में अधिक मुनाफा तभी संभव है, जब हम कृषि विशेषज्ञ की देखरेख में खेती को उचित दिशा देंगे, खेती में आधुनिक तकनीकों को अपनाएंगे. इस के लिए किसान को जागरूक रहना होगा. कृषि को मौडर्न तरीके से करना होगा. सरकारी योजनाओं की जानकारी ले कर उन का लाभ उठाना होगा.
किसानों को अपने उत्पाद के लिए प्रोसैसिंग से जुड़ना होगा. अपने उत्पाद की कीमत भी खुद ही तय करनी होगी. ऐसे अनेक काम हैं, जिन्हें किसान अपनाएंगे, तो निश्चित ही किसान के लिए खेती अधिक लाभकारी बन सकेगी.
सरकार जैसे ही कांट्रैक्ट फार्मिंग विधेयक पास करा ले जाएगी तो भारत की खेतीबाड़ी में चमत्कारिक परिवर्तन देखने को मिलेगा. पढ़ेलिखे बेरोजगार सरकारी नौकरी ढूंढ़ कर असफल हो जाने के बाद इसी क्षेत्र में पनाह पाएंगे.
उपरोक्त बाधाओं को दूर कर के “प्राकृतिक खेती के आधार पर सस्टनेबल कृषि के द्वारा” भारत क्वालिटीयुक्त भोजन में भी विश्वगुरु अगले 10-15 सालों में बन सकता है.