हिसार : चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने मटर की नई बीमारी व इस के कारक जीवाणु कैंडिडैटस फाइटोप्लाज्मा एस्टेरिस (16 एसआर 1) की खोज की है. अमेरिकन फाइटोपैथोलौजिकल सोसाइटी (एपीएस) पौधों की बीमारियों के अध्ययन के लिए सब से पुराने अंतर्राष्ट्रीय वैज्ञानिक संगठनों में से एक है, जो विशेषत: पौधों की बिमारियों पर विश्वस्तरीय प्रकाशन करती है.
हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक दुनिया में इस बीमारी की खोज करने वाले सब से पहले वैज्ञानिक हैं. इन वैज्ञानिकों ने फाइटोप्लाज्मा मटर में बीमारी पर शोध रिपोर्ट प्रस्तुत की है, जिसे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर संस्था ने मान्यता प्रदान करते हुए अपने जर्नल में छापा है.
बीमारी के बाद इस के प्रसार की निगरानी व उचित प्रबंधन का हो लक्ष्य
विश्वविद्यालय के कुलपति डा. बीआर कंबोज ने वैज्ञानिकों की इस खोज के लिए बधाई दी. उन्होंने कहा कि बदलते कृषि परिदृश्य में विभिन्न फसलों में उभरते खतरों की समय पर पहचान महत्वपूर्ण हो गई है. उन्होंने वैज्ञानिकों से बीमारी के आगे प्रसार पर कड़ी निगरानी रखने को कहा.
उन्होंने यह भी कहा कि वैज्ञानिकों को रोग नियंत्रण पर जल्द से जल्द काम शुरू करना चाहिए. इस अवसर पर ओएसडी डा. अतुल ढींगड़ा, सब्जी विभाग के अध्यक्ष डा. एसके तेहलान, पादप रोग विभाग के अध्यक्ष डा. अनिल कुमार, मीडिया एडवाइजर डा. संदीप आर्य व एसवीसी कपिल अरोड़ा भी मौजूद रहे.
साल 2023 में मटर की फसल में दिखाई दिए थे लक्षण
अनुसंधान निदेशक डा. जीतराम शर्मा ने बताया कि पहली बार फरवरी, 2023 में सेंट्रल स्टेट फार्म, हिसार में मटर की फसल में नई तरह की बीमारी दिखाई दी, जिस में मटर के 10 फीसदी पौधे बौने और झाड़ीदार हो गए थे. एचएयू के वैज्ञानिकों ने कड़ी मेहनत के बाद इस बीमारी के कारक कैंडिडैटस फाइटोप्लाज्मा एस्टेरिस (16 एसआर 1) की खोज की है. उन्होंने कहा कि बीमारी की जल्द पहचान से योजनाबद्ध प्रजनन कार्यक्रम विकसित करने में मदद मिलेगी.
इन वैज्ञानिकों का रहा अहम योगदान
इस बीमारी के मुख्य शोधकर्ता और विश्वविद्यालय के प्लांट पैथोलौजिस्ट डा. जगमोहन सिंह ढिल्लो ने कहा कि अंतर्राष्ट्रीय वैज्ञानिक संगठन अमेरिकन फाइटोपैथोलौजिकल सोसाइटी, यूएसए द्वारा मार्च, 2024 के दौरान इस शोध रिपोर्ट को छापा है. हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक इस बीमारी के सब से पहले शोधकर्ता माने गए हैं.