गेहूं की कटाई के बाद काफी समय खेत खाली रहते  हैं. इस समय कुछ कमजोर खेतों में हरी खाद बनाने के लिए ढैंचा, लोबिया या मूंग लगा दें और जब खेत जोतने लायक हो जाएं तो मिट्टी में जुताई कर के मिला दें. इस से मिट्टी की सेहत सुधरती है.

गेहूं फसल को गहाई से पहले अच्छी तरह सुखा लें जिस से सारे दाने भूसे से अलग हो जाएं.

थ्रैशर से गेहूं निकालते समय सावधानी बरतें. नशीली चीजों का सेवन न करें. ढीले कपड़े न पहनें. कटाई व गहाई एकसाथ कंबाइन हारवैस्टर से भी हो जाती है. गेहूं का ठीक तरह से भंडारण करें. नमी की मात्रा 10 फीसदी तक रखें, इस से गेहूं में कीड़ा नहीं लगेगा.

गेहूं की कटाई के बाद अप्रैल महीने में गन्ना भी लगा सकते हैं. गन्ने की फसल में 7-10 दिनों के अंतर से पानी देते रहें. कीट रोग का हमला हो जाए तो कृषि वैज्ञानिकों के बताए हुए कीटनाशकों का इस्तेमाल करें. नरमे की बिजाई अप्रैल महीने में खत्म करें.

अप्रैल में बोया गया चारा गरमियों व बरसात में चारे की कमी नहीं आने देता.

मक्का की पंजाबी साठी 1 किस्म को पूरे अप्रैल में लगा सकते हैं. यह किस्म गरमी सहन कर सकती है और 70 दिनों में पक कर 1 क्विंटल पैदावार देती है. धान की फसल लगाने के लिए खेत भी समय पर खाली हो जाता है.

अप्रैल के आखिरी हफ्ते में गेहूं की कटाई के तुरंत बाद मूंगफली बोई जा सकती है जो अगस्त के आखिर तक या सितंबर तक तैयार हो जाती है. मूंगफली को अच्छी जल निकास वाली हलकी दोमट मिट्टी में उगाना चाहिए.

पूसा बैशाखी मूंग भी गेहूं कटने के तुरंत बाद अप्रैल में लगा सकते हैं जो जल्दी पक जाती है. उस के बाद उस में धान बोया जा सकता है.

लोबिया की कुछ किस्में 65-70 दिनों में तैयार हो जाती हैं और गेहूं कटने के बाद व धानमक्का लगने के बीच फिट हो जाती है. उस की बोआई भी कर सकते हैं.

अरहर की 2 लाइनों के बीच एक मिश्रित फसल (मूंग या उड़द) की लाइन भी लगा सकते हैं जो 60 से 90 दिनों तक काट ली जाती है.

फूल उगाने के लिए खेत को धूप लगाएं ताकि कीड़े और बीमारियों की रोकथाम हो. गेंदा के पौधे अप्रैल के शुरू में लगा सकते हैं ताकि गरमियों में फूल मिल सकें.

फूलों की खेती करने वाले किसान भी अपनी फसल की समय से देखरेख करें. गुलाब की फसल में गुड़ाई करें. बेकार टहनियों को काटछांट दें.

रजनीगंधा में एक हफ्ते के अंतराल पर सिंचाई करें व निराईगुड़ाई का भी ध्यान रखें.

इस के अलावा ऊंचे पहाड़ी इलाकों में अप्रैल के पहले हफ्ते तक सूरजमुखी की बोआई कर सकते हैं.

सूरजमुखी की बिजाई के 3-4 हफ्ते के बाद निराईगुड़ाई करें.

अमरूद के बागों में थालों की गुड़ाई करें और बेकार की टहनियों को कलम करें. पपीते के पेड़ों में भी सिंचाई का ध्यान रखें और फलों की तुड़ाई भी समयसमय पर करें. अंगूर वगैरह फसलों की सिंचाई भी तकरीबन 15 दिनों में करते रहें.

लहसुन और प्याज की फसल में जरूरत के मुताबिक निराईगुड़ाई व सिंचाई करें. बैगनी धब्बा रोग व थ्रिप्स कीट की रोकथाम करें. लहसुनप्याज की फसल अगर तैयार हो चुकी हो तो 20 दिन पहले उस में पानी देना बंद कर दें, जिस से फसल की खुदाई करने में सुविधा रहे.

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