प्राकृतिक खेती के जरीए खेती की लागत में न केवल कमी लाई जा सकती है, बल्कि फसलों पर किए जाने वाले अंधाधुंध रसायनों के प्रयोग पर लगाम लगा कर सेहतमंद अनाज, फलसब्जियों आदि का उत्पादन भी किया जा सकता है.
प्राकृतिक खेती का सब से प्रमुख आधार है पशुपालन. क्योंकि पशुपालन से प्राप्त गोबर और गौमूत्र को मिट्टी की उत्पादन कूवत में कई गुना वृद्धि करने में सहायक माना जाता है.
गौपालन के जरीए खेती करने वाले प्रगतिशील किसान राममूर्ति मिश्रा ने अपने खेत की लागत को न केवल कम करने में सफलता पाई है, बल्कि वह जहरमुक्त खेती के जरीए लोगों की सेहत को सुधारने का काम भी कर रहे हैं.
किसान राममूर्ति मिश्रा से गौआधारित खेती को ले कर लंबी बातचीत हुई. पेश है उन से हुई बातचीत के खास अंश :
खेती की लागत में कमी लाने के साथ उसे टिकाऊ कैसे बनाएं?
खेती में प्रयुक्त रसायनों की बढ़ती कीमतों एवं घटती उत्पादकता और मानव स्वास्थ्य व पर्यावरण प्रदूषण जैसी चुनौतियों का समाधान प्राकृतिक खेती में ही संभव है. अगर किसान फसल चक्र अपनाएं, तो खेती में विविधीकरण होता है और इस से पैदावार बिना लागत बढ़ाए ही बढ़ जाती है. प्राकृतिक खेती करने पर पारिस्थितिकी में विभिन्न वनस्पतियों, जीवों व जंतुओं की विविधता अधिक होने से इन का संतुलन बना रहता है और फसलों के स्वस्थ होने पर उन में रोग व व्याधि भी नहीं लगते. साथ ही, पैदावार भी अधिक प्राप्त होती है.
अगर किसान खेती की लागत में कमी के साथ टिकाऊ बनाना चाहते हैं, तो उन्हें गौआधारित प्राकृतिक खेती अपनाने के लिए आगे कदम बढ़ाना होगा.
चूंकि प्राकृतिक खेती से प्राप्त उपज को सेहतमंद माना जाता है, इसलिए किसानों को उत्पाद की कीमत अधिक मिलती है.
अगर किसान जैविक खेती प्रमाणीकरण के नियमों का पालन कर जैविक प्रमाणीकरण करा लें, तो उन की उपज की मांग अपनेआप बढ़ जाती है.
प्राकृतिक खेती से मिट्टी की उत्पादन कूवत कैसे बढ़ती है?
हरित क्रांति से उत्पादन तो बढ़ा, लेकिन कई प्रकार की गंभीर समस्याएं भी पैदा हुई हैं. रसायनों के बहुत ज्यादा उपयोग के कारण कीटों में प्रतिरोधक क्षमता बढ़ने से उन की जनसंख्या का नियंत्रण नहीं हो पा रहा है. साथ ही, जैव विविधता में कमी आ रही है. प्राकृतिक खेती से मिट्टी की सेहत अच्छी होगी और उत्पादन भी बेहतर होगा.
प्राकृतिक खेती में जीवाणु और केंचुए की संख्या बढ़ाने के लिए कुछ सस्य क्रियाएं, जैसे खेत की कम से कम जुताई, जीवाणुओं के फूड सोर्स के तौर पर फसल अवशेष व हरी खाद का प्रयोग, मल्चिंग, वापसा, जैव विविधता और ड्रिप सिंचाई के माध्यम से जीवामृत के प्रयोग खेत में जीवाणुओं की वृद्धि करने में सहायक होते हैं. इसे अपना कर किसान कृषि निवेशों की बाजार से निर्भरता को कम कर सकते हैं. इस प्रकार लागत में भी कमी आएगी. इस से उत्पादित खाद्य पदार्थों से मानव स्वास्थ्य को सुरक्षित बनाया जा सकता है. साथ ही, मृदा स्वास्थ्य को सुधारा जा सकता है.
किसान शुरुआत में प्राकृतिक खेती के जरीए थोड़ी सी भूमि पर इस का परीक्षण अवश्य करें.
आधुनिक रासायनिक खेती से उत्पादन बढ़ा है, तो किसानों की आय भी बढ़ी है, किंतु आमदनी का ज्यादा हिस्सा बीमारी में चला जाता है और पर्यावरण का नुकसान हो रहा है. साथ ही, उत्पादकता भी घट रही है. इसलिए प्राकृतिक खेती एक अच्छा विकल्प हो सकती है.
एक देशी गाय से किसान कितने क्षेत्रफल में प्राकृतिक खेती कर सकते हैं?
प्राकृतिक खेती में एक देशी गाय से 30 एकड़ तक की खेती की जा सकती है, क्योंकि एक एकड़ की खुराक तैयार करने के लिए गाय के एक दिन के गोबर और गौमूत्र की आवश्यकता होती है. प्राकृतिक खेती में बाजार से कुछ भी खरीदने की जरूरत नहीं है, जबकि जैविक खेती एक महंगी पद्धति है.