कुछ ऐसे पदार्थ जो सड़गल सकते हों या जैविक खाद का रूप ले सकते हों. जैसे घर की सागसब्जी या उस के छिलके, फलों के छिलके, पशुओं का गोबर, पेड़पौधों के पत्ते, खेतों के अवशेष वगैरह जिन्हें सड़ने पर केंचुओं द्वारा खाया जाता है और मल के रूप में केंचुए जो पदार्थ निकालते हैं, वही वर्मी कंपोस्ट होता है.

केंचुआ खाद तैयार होने में तकरीबन 45 से 60 दिनों का समय लगता है.

यह वर्मी कंपोस्ट खाद खेती के लिए बहुत ही उम्दा किस्म की खाद है. जिस खेत में केंचुए होते हैं, उस खेत में अच्छी पैदावार मिलती है. इसलिए आज के दौर में कृषि वैज्ञानिक भी खेती में केवल जरूरत के हिसाब से ही कृषि रसायनों के इस्तेमाल की सलाह देते हैं. रसायनों के अधिक इस्तेमाल से खेत में केंचुओं का सफाया हो जाता है जो खेती के लिए नुकसानदेह है.

वर्मी कंपोस्ट है खास : वर्मी कंपोस्ट या केंचुआ खाद में 10 से 20 फीसदी आर्गेनिक कार्बन, 1.5 फीसदी नाइट्रोजन, 1.6 फीसदी फास्फोरस और 0.6 फीसदी पोटाश की मात्रा होती है. इन तत्त्वों के अलावा कैल्शियम, कौपर, आयरन, जिंक जैसे पदार्थ भी होते हैं, ये सभी तत्त्व खेती के लिए काफी फायदेमंद होते हैं.

रासायनिक और जैविक खाद के संदर्भ में कृषि विशेषज्ञ गंगाशरण सैनी ने बताया कि खेत से बेहतर उपज ले सकते हैं. इस के लिए हमें लगातार जैविक खादों का इस्तेमाल करना होगा. हां, पहले और दूसरे साल पैदावार में खास इजाफा नहीं होगा, लेकिन तीसरे साल से ही बेहतर जैविक उत्पाद मिलने लगेगा.

वर्मी कंपोस्ट से फायदा : यह मिट्टी में पानी सोखने की कूवत बढ़ाता है और ज्यादा ताकतवर बनाता है. मिट्टी में सूक्ष्म जीवाणुओं को सक्रिय कर यह पोषक तत्त्व पौधों को मुहैया करता है. मिट्टी का पीएच मान संतुलित रखता है और पौधों की प्रतिरोधक कूवत बढ़ा कर फसल उत्पादन बढ़ाता है. केंचुए की खाद का इस्तेमाल करने से सिंचाई भी कम करनी पड़ती है. फलसब्जियों व अनाज की क्वालिटी में सुधार होता है.

केंचुओं के बारे में जानकारी : केंचुओं की दुनियाभर में 3000 प्रजातियों का पता लगाया जा चुका है. भारत में केवल 500 प्रजातियां ही पाई जाती हैं. केंचुओं को खाद निर्माता के रूप में कृत्रिम तरीके से पाली जाने वाली आइसेनिया फोएटिडा केंचुए की खास प्रजाति है. इस प्रजाति की लंबाई 3.5 से 13 सैंटीमीटर तक होती है. इस प्रजाति का मुख्य काम खाद बनाना है. ये मिट्टी बहुत कम मात्रा में खाते हैं. केंचुए की आंखें नहीं होतीं लेकिन शरीर पर रोशनी के प्रति संवेदशनील होती हैं. ग्रंथियां फैली हुई होती हैं. इस वजह से केंचुए तेज धूप को समझ सकते हैं. केंचुआ उभयलिंगी प्राणी है.

केंचुआपालन प्रौद्योगिकी : यह बहुत साधारण तरीका है. इसे किसी विशेषज्ञ से आसानी से सीखा जा सकता है. कुछ खास बातों का ध्यान रखना जरूरी है:

जगह का चुनाव. कचरे की व्यवस्था. केंचुआपालन के बारे में तकनीकी जानकारी वगैरह. इस के अलावा केंचुआ पालने से पहले इन बातों का रखें ध्यान:

केंचुआ खाद बनाने के लिए केंचुए की सही प्रजाति को चुनें ताकि आप को बेहतर नतीजा मिल सके. हमेशा इन्हें नमी वाली जगह और अंधेरी जगह पर रखें. पक्षियों व मुरगियों से इन का बचाव जरूरी है. बरसात के पानी से इन्हें बचाना जरूरी है. कैमिकल खाद और कीटनाशकों से दूरी बना कर ही काम करें.

केंचुआ बनाम कैमिकल खाद

केंचुआ खाद का लगातार इस्तेमाल करना फसल के लिए फायदेमंद है. इस से मिट्टी में सूक्ष्म तत्त्वों और पैदावार बढ़ाने वाले तत्त्वों की बढ़त होती है. साथ ही, पौधों की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है और यह प्रदूषण नियंत्रण के साथसाथ पर्यावरण को अच्छा बनाता है.

केंचुआ खाद के लगातार इस्तेमाल से बंजर जमीन भी उपजाऊ बनाई जा सकती है. फसल में कम पानी की जरूरत होती है. किसान अगर खुद केंचुआ खाद बनाए तो उसे काफी सस्ता पड़ता है.

कृषि पैदावार पर भी खर्च घटता है और कृषि उत्पाद की क्वालिटी भी अच्छी होती है, जबकि कैमिकल खाद के ज्यादा इस्तेमाल से खेत की मिट्टी भी खराब होती है और पैदावार क्षमता भी कम हो जाती है.

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