जल, जंगल और जमीन कैमिकल उर्वरकों के अंधाधुंध इस्तेमाल से संकट में हैं. इस के इस्तेमाल से एक ओर जहां हमारी खेती की लागत बढ़ती चली जा रही है, वहीं दूसरी ओर समूचा जीवजगत भी संकट का सामना कर रहा है. खेती, बागबानी की लागत घटाने और सभी जीव, निर्जीव को सुरक्षित रखने के लिए अब वक्त आ गया है कि ज्यादा से ज्यादा जैव उर्वरकों का इस्तेमाल किया जाए.

जैव उर्वरक बेहद सस्ते होने के साथ ही साथ मिट्टी में पड़े कैमिकल उर्वरकों की घुलनशीलता बढ़ा कर फसलों तक पहुंचाते हुए पैदावार में बढ़ोतरी करते हैं. इस के इस्तेमाल से उर्वरकों की मात्रा घटती है, जिस से आयात किए जाने वाले उर्वरकों पर खर्च होने वाली धनराशि की बचत होती है.

क्या है जैव उर्वरक

जैव उर्वरक जीवाणु खाद होती है. 1 ग्राम जैव उर्वरक में 10 करोड़ जीवाणु या सूक्ष्म जीव रहते हैं. इस में मौजूद लाभकारी सूक्ष्म जीवाणु वायुमंडल की नाइट्रोजन को पकड़ कर फसल को मुहैया कराते हैं.

इसी तरह मिट्टी में मौजूद अघुलनशील फास्फोरस को घुलनशील बना कर पौधों को देते हैं. इस तरह जैव उर्वरकों के इस्तेमाल से कैमिकल उर्वरकों की मात्रा कम हो जाती है, जिस से लागत भी कम हो जाती है.

क्या होगा फायदा

फसलों में जैव उर्वरकों का इस्तेमाल उसी तरह से जरूरी है, जैसे सभा में आम लोगों का शामिल होना. मिट्टी में पहुंचे उर्वरकों की फसल में प्राप्यता यानी मौजूदगी बहुत कम हो पाती है.

इस बात का अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि कैमिकल उर्वरकों में सब से ज्यादा प्राप्यता यानी उर्वरकों की वह मात्रा, जो पौधों को मिलती है तकरीबन 40-50 फीसदी नाइट्रोजन की है, बाकी सभी उर्वरकों का मसलन डीएपी, पोटाश का इस से कम रहता है.

ऐसे में इन जैव उर्वरकों के इस्तेमाल से मिट्टी में सूक्ष्म जीवों की तादाद बढ़ जाती है. ये सूक्ष्मजीव मिट्टी में मौजूद उर्वरकों की घुलनशीलता बढ़ा देते हैं.

मिट्टी में कैमिकल उर्वरकों के घटने और सूक्ष्मजीवों के बढ़ने से फायदेमंद कीटों की तादाद तेजी से बढ़ती है. यही नहीं, जैव उर्वरक कई तरह के हार्मोंस भी छोड़ते हैं, इस से पैदावार में सकारात्मक असर पड़ता है.

राइजोबियम कल्चर : इस का इस्तेमाल दलहनी फसलों में किया जाता है.

वैसे भी अलगअलग दलहनी फसलों के लिए अलगअलग राइजोबियम कल्चर होता है.

दरअसल, राइजोबियम कल्चर में राइजोबियम जीवाणु पाए जाते हैं. वायुमंडल में 78 फीसदी नाइट्रोजन पाया जाता है. इस नाइट्रोजन को मिट्टी में इकट्ठा करने की कूवत सिर्फ दलहनी फसलों में होती है, क्योंकि दलहनी फसलों की जड़ों में कुछ लाल रंग की गांठें होती हैं, जिस पर राइजोबियम नाम का जीवाणु पाया जाता है.

बोआई के पहले बीजोपचार कर लेने से खेत में पहले से ही मौजूद राइजोबियम जीवाणु रहता है, जिस से पैदावार में बढ़ोतरी होती है.

एजेटोबैक्टर : जो काम राइजोबियम कल्चर करता है, वही काम सभी गैरदलहनी फसलों के लिए एजेटोबैक्टर करता है.

एजोस्पाइरिलम : यह खासतौर पर गन्ना, मोटा अनाज, बाजरा के लिए बहुत ही उपयोगी है. इस का भी काम एजेटोबैक्टर सरीखा है.

पीएसबी कल्चर : इसे फास्फोरस सोल्यूब्लाइजिंग बैक्टीरिया या फास्फोरस सोल्यूब्लाइजिंग माइक्रोब्स (पीएसबी / पीएसएम) कल्चर कहते हैं.

फास्फोरस वाले उर्वरक को विकलांग उर्वरक कहते हैं. विकलांग इसलिए क्योंकि उर्वरकों में सब से धीमी घुलनशीलता फास्फोरस वाले उर्वरकों की है. पीएसबी/पीएसएम कल्चर के इस्तेमाल से फास्फोरस की घुलनशीलता बढ़ जाती है.

एजोला फर्न : यह सर्द मौसम में ठहरे हुए पानी के ऊपर रहता है. यह दूर से देखने पर हरे या लाल रंग का चटाईनुमा लगता है. इस की पत्तियां अत्यधिक छोटी और मोटी होती हैं. इन्हीं पत्तियों के नीचे के छेदों में सहजीवी साइनोबैक्टीरिया नाम का जीव पाया जाता है, जो नाइट्रोजन स्थिरीकरण यानी बनाए रखने में मददगार है. यह पानी में डूबे धान के खेतों में बोआई के एक हफ्ते बाद 10 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की दर से उगाया जा सकता है, जो 2 किलोग्राम नाइट्रोजन रोजाना की दर से स्थिर कर सकता है.

एजोला का इस्तेमाल कंपोस्ट खाद बनाने या 10 टन प्रति हेक्टेयर की दर से हरी खाद के रूप में जमीन में मिला कर किया जा सकता है. इस के इस्तेमाल से धान में खरपतवार कम पनपते हैं और नाइट्रोजन की बचत 40-80 किलोग्राम तक प्रति हेक्टेयर हो जाती है.

नील हरित शैवाल : इसे ब्लू ग्रीन या नील हरित शैवाल के नाम से जानते हैं. इसे धान के खेत या तालाबों में उगाया जाता है. इस से तमाम तरह की बढ़वार रोकने वाले हार्मोंस, विटामिन बी12, तमाम तरह के एमीनो एसिड निकलते हैं. नतीजतन, धान के पौधों में अच्छी बढ़वार के साथसाथ दानों की क्वालिटी भी बेहतर होती है. बीजीए के उपयोग से धान में 15-20 फीसदी तक बढ़ोतरी हो जाती है, साथ ही नाइट्रोजन की 30 किलोग्राम तक प्रति हेक्टेयर बचत हो जाती है.

प्रयोग विधि और मात्रा : एजोला फर्न, नील हरित शैवाल, एजोस्पाइरिलम का इस्तेमाल खेत की स्थिति के हिसाब से अलगअलग होता है. बेहतर होगा कि आप मिट्टी की जांच करा कर अपने निकटतम खेती के माहिरों से मिलें. उन के परामर्श के मुताबिक खेत में इन का इस्तेमाल करें, जबकि राइजोबियम कल्चर, एजेटोबैक्टर, पीएसबी कल्चर का इस्तेमाल करने की विधि व मात्रा एकसमान है.

बीजोपचार के लिए 200 ग्राम जैव उर्वरकों का आधा लिटर पानी में घोल बनाने के बाद जैव उर्वरकों के घोल को 10 किलोग्राम बीज के ढेर पर धीरेधीरे डाल कर हाथों से मिलाएं ताकि जैव उर्वरक समान रूप से बीजों पर चिपक जाएं. इस के बाद उपचारित बीज को छाया में सुखा कर बोआई कर सकते हैं.

जड़ उपचार जो कि रोपाई वाली फसलों के लिए ज्यादा सही होता है.  एक एकड़ की फसल के लिए 1-2 किलोग्राम जैव उर्वरकों का 10-15 लिटर पानी में घोल बनाने के बाद 15-20 मिनट तक जड़ों को डुबो कर रोपाई की जा सकती है.

एक एकड़ खेत में मिट्टी उपचार के लिए 2 किलोग्राम जैव उर्वरक यानी 10 पैकेट की जरूरत पड़ती है. 25 किलोग्राम खूब सड़ी हुई कंपोस्ट खाद या 25 किलोग्राम मिट्टी में 2 किलोग्राम जैव उर्वरकों को खूब अच्छी तरह से मिला कर बोआई के समय या 24 घंटे पहले समान रूप से खेत में मिला दिया जाता है.

सावधानियां

* जैव उर्वरकों का इस्तेमाल हमेशा शाम के समय ही करना चाहिए, क्योंकि सुबह या दोपहर में करने पर तेज धूप होने के कारण इन के अंदर मौजूद सूक्ष्म जीव मर सकते हैं, वहीं शाम के वक्त प्रयोग करने पर रातभर और अगले दिन सुबह तक सूक्ष्म जीवों को नए वातावरण में तालमेल बनाने में दिक्कत नहीं होती है.

* जैव उर्वरकों का कैमिकल खादों के साथ बिलकुल भी इस्तेमाल नहीं करना चाहिए, क्योंकि जैव उर्वरकों के अंदर सूक्ष्म जीव होते हैं. इन सूक्ष्म जीवों को कैमिकल उर्वरकों के साथ नुकसान होता है.

* ऐक्सपायर डेट निकल जाने के बाद जैव उर्वरकों का इस्तेमाल बिलकुल न करें.

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