भारत सब से बड़ा हलदी उत्पादक देश है. हलदी का इस्तेमाल पुराने समय से ही किसी न किसी रूप में होता आ रहा है. हलदी का इस्तेमाल खाने के अलावा औषधियों में भी किया जाता है. सौंदर्य प्रसाधन के लिए भी हलदी का इस्तेमाल खूब जम कर हो रहा है इसलिए इस की खेती किसानों के लिए फायदे का सौदा साबित हो सकती है.

हलदी में स्टार्च की मात्रा सब से ज्यादा होती है. इस के अलावा इस में 13.1 फीसदी पानी, 6.3 फीसदी प्रोटीन, 5.1 फीसदी वसा, 69.4 फीसदी कार्बोहाइड्रेट, 2.6 फीसदी रेशा और 3.5 फीसदी खनिज लवण पोषण तत्त्व पाए जाते हैं. इस में वोनाटाइन औरेंज लाल तेल 1.3 से 5.5 फीसदी पाया जाता है.

भारत से हलदी को यूनाइटेड किंगडम, फ्रांस, जापान, जरमनी, नीदरलैंड, यूएसए, सऊदी अरब और आस्ट्रेलया भेजा जाता है.

जलवायु

हलदी का इस्तेमाल ज्यादातर मसालों के तौर पर किया जाता है. जिन इलाकों में जहां 1200 से 1400 मिलीमीटर बारिश होती है या जहां बारिश ज्यादा होती है, वहां पर इस की अच्छी खेती होती है.

हलदी की खेती के लिए 450 से 900 मीटर ऊंचाई वाले इलाके सही होते हैं. हलदी उष्ण कटिबंधीय क्षेत्र की फसल है. 30 से 35 डिगरी सैंटीग्रेड तापमान अंकुरण के समय, 25 से 30 डिगरी सैंटीग्रेड तापमान कल्ले निकलते समय, 20 से 30 डिगरी सैंटीमीटर प्रकंद बनने के दौरान और 18 से 20 डिगरी सैंटीग्रेड तापमान हलदी की मोटाई के लिए सब से अच्छा तापमान माना जाता है.

मिट्टी कैसी हो

आमतौर पर हलदी की खेती सभी तरह की मिट्टी में की जा सकती है, लेकिन पानी निकलने का बेहतर इंतजाम होना चाहिए. जिस जगह पानी भरने का खतरा हो, वहां पर इस की खेती नहीं की जा सकती. इस का पीएच मान 5 से 7.5 होना चाहिए. इस की खेती दोमट, जलोढ़, लैटेराइट मिट्टी, जिस में जीवांश की मात्रा ज्यादा हो, काफी अच्छी मानी गई है.

उन्नत प्रजातियां

सीएल 326 माइडुकुर : यह लीफ स्पौट बीमारी की अवरोधक प्रजाति है. लंबे पंजे वाली, चिकनी, 9 महीने में तैयार होती है. उत्पादन कूवत 200 से 300 क्विंटल प्रति हेक्टेयर और सूखने पर 19.3 फीसदी हलदी मिलती है.

सीएल 327 ठेकुरपेंट : इस के पंजे लंबे, चिकने और चपटे होते हैं. पकने की अवधि 5 महीने और उत्पादन कूवत 200-250 क्विंटल प्रति हेक्टेयर और सुखाने पर 21.8 फीसदी हलदी हासिल होती है.

कस्तूरी : इस किस्म की हलदी जल्दी तैयार होती है. इस के पंजे पतले और खुशबूदार होते हैं. उत्पादन कूवत 150-200 क्विंटल प्रति हेक्टेयर और सुखाने पर 25 फीसदी हलदी मिलती है.

रोपने का सही समय

अप्रैल और मई का महीना हलदी के रोपने का सब से अच्छा होता है. अगर बेहतर उत्पादन लेना हो तो हलदी की फसल के लिए सही समय का खास खयाल रखें, इस से फसल का उत्पादन ज्यादा होता है.

खेत की तैयारी

ज्यादा फसल लेने के लिए खेत की जुताई काफी अच्छी तरह से करनी चाहिए. हलदी की बोआई करने से पहले खेत को 4 से 5 बार जोत लें, फिर पाटा लगा कर मिट्टी को एकदम भुरभुरा और समतल कर लेना चाहिए. खेत में पहले फसल के अवशेषों को बाहर कर जला देना जरूरी होता है.

बोने की विधि

हलदी बोने के लिए 15 सैंटीमीटर ऊंची, एक मीटर चौड़ी और सुविधानुसार लंबी (3-4 मीटर) क्यारियां, 30 सैंटीमीटर की दूरी पर क्यारी से क्यारी बना लेनी चाहिए.

हलदी रोपते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि क्यारियों की दूरी बराबर हो.

प्रकंद की मात्रा

हलदी का रोपण प्रकंद (राइजोम) से होता है, जो 20 से 25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर लगता है. इस बात का ध्यान रखें कि प्रकंद में कम से कम 2-3 आंखें हों. प्रकंदों को 0.25 फीसदी इंडोफिल एम 45 घोल में कम से कम आधा घंटे तक डुबो कर उपचारित करें. अगर कटे, सड़े और सूखे व दूसरे रोग से ग्रसित हों, तब उन प्रकंदों को छांट कर अलग कर लेना चाहिए.

ध्यान रखें कि एक वजन, एक आकार के प्रकंद एक ही कतार में लगाएं, क्योंकि छोटाबड़ा प्रकंद लगाने पर पौधे की बढ़वार भी अलगअलग होती है. 5 सैंटीमीटर गहरी नाली में 30 सैंटीमीटर कतार से कतार की दूरी और 20 सैंटीमीटर प्रकंद की दूरी रख कर रोपें. मदर राइजोम को ही बीज के रूप में इस्तेमाल करना चाहिए. रोपने के बाद नाली को मिट्टी से ढक दें.

सिंचाई : अप्रैलमई में बोने के एक हफ्ते बाद सिंचाई करनी चाहिए अन्यथा 15 दिनों के अंतराल पर सिंचाई की जा सकती है. पूरे फसल के दौरान 20-25 हलकी सिंचाई की जरूरत पड़ती है.

खाद और उर्वरक : हलदी की फसल के लिए जीवाश्म खाद की काफी जरूरत रहती है. 25 टन कंपोस्ट या गोबर की सड़ी खाद प्रति हेक्टेयर की दर से जमीन में मिला देनी चाहिए. नाइट्रोजन 60 किलोग्राम, फास्फोरस 30 किलोग्राम और पोटाश 90 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर जरूरी है.

फास्फोरस की पूरी मात्रा और पोटाश की आधी मात्रा रोपने के दौरान जमीन में मिला दें. नाइट्रोजन की आधी मात्रा रोपने के 45 दिन बाद और बाकी बची नाइट्रोजन और पोटाश की मात्रा 90 दिन बाद मिट्टी चढ़ाते समय डालें.

हलदी रोपने के तुरंत बाद 12.5 टन प्रति हेक्टेयर की दर से हरी पत्ती, सूखी घास या दूसरे जैविक अवरोध की परत क्यारियों के ऊपर फैला देनी चाहिए. दूसरी और तीसरी 5 टन प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव कर देने के बाद किसी भी अवरोध परत को बिछा दें. खरपतवार हटाने के लिए समयसमय पर निराईगुड़ाई करना जरूरी होता है, वरना उत्पादन प्रभावित होता है.

हलदी (Turmeric)

हलदी की मिश्रित खेती : सरकार का इस पर काफी जोर है कि किसान अपनी आमदनी बढ़ाने के लिए सहफसली प्रणाली का इस्तेमाल करें, जिस से एकसाथ 2 फसलें तैयार हों और मुनाफा भी ज्यादा हो.

मैदानी क्षेत्र में हलदी के साथसाथ मिर्च और इस की फसलों के साथ मुख्यतया सब्जी वाली फसलों में इसे मिश्रित फसल के रूप में लगाया जाता है. इसे अरहर, सोयाबीन, मूंग, उड़द की फसल के साथ लगाया जा सकता है.

हलदी की खेती एक तरफ जहां दूसरी फसलों के साथ की जा सकती है, वहीं इसे बगीचों में भी लगाया जा सकता है. हलदी को आम, कटहल, अमरूद, चीकू, केले वगैरह के साथ लगा कर अलग से आमदनी हासिल की जा सकती है.

फसल की खुदाई : हलदी की फसल कब तक तैयार हो जाती है, यह उस की प्रजाति पर निर्भर करता है. हलदी की खुदाई 7 महीने से शुरू हो कर 10 महीने तक कभी भी की जा सकती है. वैसे आमतौर पर हलदी की खुदाई जनवरी से मार्च के मध्य तक की जा सकती है जब पत्तियां पीली पड़ जाएं और ऊपर से सूखने लगें.

भंडारण : हलदी की खुदाई करने के बाद उसे छाया में सुखा कर मिट्टी वगैरह साफ करना जरूरी होता है. प्रकंदों को 0.25 फीसदी इंडोफिल एम 45 या 0.15 फीसदी बाविस्टिन या 0.05 फीसदी मैलाथियान के घोल में आधा घंटे तक उपचारित करें. इसे छाया में सुखा कर रखें.

हलदी के भंडारण के लिए छायादार जगह पर एक मीटर चौड़ा, 2 मीटर लंबा और 30 सैंटीमीटर गहरा गड्ढा खोदें. जमीन की सतह पर धान का पुआल या रेत 5 सैंटीमीटर नीचे डाल दें, फिर उस पर हलदी के प्रकंद रखें. इसी तरह रेत की दूसरी सतह बिछा कर हलदी की तह मोड़ाई करें. गड्ढा भर जाने पर मिट्टी से ढक कर गोबर से लीप दें.

हलदी की क्योरिंग

हलदी के प्रकंदों को सुखाने के बाद उसे बड़े कड़ाहे में उबलने के लिए डालना होता है. फिर उस कड़ाहे में चूने का पानी या सोडियम बाई कार्बोनेट को पानी में घोल लें. पानी की मात्रा उतनी ही डालें, जिस से हलदी के प्रकंद डूब जाएं. उसे 45 से 60 मिनट तक उबालें, जब सफेद झाग उठने लगें और उस में महक आनी शुरू हो जाए, तब उसे पानी से निकाल कर अलग करें.

सुखाना : उबली हुई हलदी को बांस की चटाई पर रोशनी में 5-7 सैंटीमीटर मोटी तह पर सुखाएं. शाम को ढक कर रख दें. 10-15 दिन तक पूरी तरह सुखाना होता है.

प्रमुख कीट और बीमारियां

शूटबोरर : यह कीट हलदी के तना और प्रकंद में छेद कर देता है. इस से पौधों में भोजन सामग्री तंतुओं के नष्ट होने से ठीक तरीके से अपना काम नहीं कर पाती है, जिस से पौधे कमजोर हो कर झुक जाते हैं. इस का नियंत्रण 0.05 प्रतिशत डाइमिथोएट या फास्फोमिडान का छिड़काव करने से किया जाता है.

साफ्ट रौट : यह बीमारी हलदी को काफी नुकसान पहुंचाती है. यह पीथियम स्पेसीज के प्रकोप से होती है. इस के प्रकोप से प्रकंद सड़ जाता है. इस रोग पर नियंत्रण के लिए 0.25 फीसदी इंडोफिल एम 45 से मिट्टी की ड्रेचिंग करें. प्रकंद का उपचार कर के ही लगाना बेहतर होता है.

लीफ स्पौट : यह रोग कोलिटोट्राइकम स्पेसीज फफूंद की वजह से होता हैं. इस में छोटे अंडाकार अनियमित या नियमित भूरे रंग के धब्बे पत्तियों के दोनों तरफ पड़ जाते हैं, जो बाद में धूमिल पीले या गहरे भूरे रंग के होते हैं.

इस बीमारी के प्रकोप से पौधों को बचाने के लिए पहले से ही 1 फीसदी बोर्डो मिश्रण का छिड़काव 15 दिन के अंतराल पर सितंबर के पहले हफ्ते में करना अहम माना जाता है.

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