मिट्टी में लगातार रसायनों के छिड़काव और रासायनिक उर्वरकों की बढ़ती मांग ने पर्यावरण को प्रदूषित करने के साथसाथ मिट्टी की उपजाऊशक्ति को भी घटाया है. इन रसायनों के प्रभाव से मिट्टी को उर्वरकता प्रदान करने वाले सूक्ष्म जीवों की संख्या में अत्यधिक कमी हो गई है. जैसे कि, हवा से नाइट्रोजन खींच कर जमीन में स्थिरीकरण करने वाले जीवाणु राइजोबियम, एजोटोबैक्टर, एजोस्पिरिलम, फास्फेट व पोटाश घुलनशील जीवाणु आदि, इसलिए मिट्टी में इन जीवाणुओं की संख्या बढ़ाने के लिए इन के कल्चर का उपयोग जैविक खादों के साथ मिला कर किया जाता है.
जैव उर्वरक या बायोफर्टिलाइजर को जीवाणु खाद भी कहते हैं. बायोफर्टिलाइजर एक जीवित उर्वरक है, जिस में सूक्ष्म जीव मौजूद होते हैं. इसे फसलों में इस्तेमाल करने से वायुमंडल में उपस्थित नाइट्रोजन पौधों को अमोनिया के रूप में आसानी से उपलब्ध हो जाती है.
पोषक तत्त्वों की कमी को पूरा करने और रासायनिक खादों के प्रभाव को दूर करने के लिए वैज्ञानिकों ने प्रकृति प्रदत्त जीवाणुओं को पहचान कर उन से विभिन्न प्रकार के पर्यावरण हितैषी जैव उर्वरक तैयार किए हैं.
जैव उर्वरक के प्रकार
राइजोबियम : यह जैव उर्वरक मुख्य रूप से सभी तिलहनी और दलहनी फसलों में सहजीवी के रूप में रह कर पौधों को नाइट्रोजन की पूर्ति करता है. राइजोबियम को बीजों के साथ मिश्रित करने के बाद बोआई करने पर जीवाणु जड़ों में प्रवेश कर के छोटीछोटी गांठें बना लेते हैं. इन गांठों में जीवाणु बहुत अधिक मात्रा में रहते हुए प्राकृतिक नाइट्रोजन को वायुमंडल से ले कर पोषक तत्त्वों में परिवर्तित कर पौधों को मुहैया कराते हैं.
पौधों की जितनी अधिक गांठें होती हैं, वह उतना ही स्वस्थ होता है. इस का उपयोग दलहनी और तिलहनी फसलों जैसे चना, मूंग, उड़द, अरहर, मटर, सोयाबीन, सेम, मसूर, मूंगफली आदि में किया जाता है.
एजोटोबैक्टर : यह मिट्टी और जड़ों की सतह में मुक्त रूप से रहते हुए वायुमंडलीय नाइट्रोजन को पोषक तत्त्वों में परिवर्तित कर पौधों को उपलब्ध कराता है. एजोटोबैक्टर सभी गैरदलहनी फसलों में प्रयोग होता है.
एजोस्पिरिलम : बैक्टीरिया और नीलहरित शैवाल जैसे कुछ सूक्ष्म जीवों में वायुमंडलीय नाइट्रोजन का उपयोग करने और फसली पौधों को इस पोषक तत्त्व को उपलब्ध करवाने की क्षमता होती है. यह खाद मक्का, जौ, जई, ज्वार और चारा वाली फसलों के लिए बहुत उपयोगी होती है.
इस के प्रयोग से फसल उत्पादन में तकरीबन 5 से 20 फीसदी तक वृद्धि होती है. बाजरा की 30 और चारा वाली फसलों की उत्पादन क्षमता 50 फीसदी तक बढ़ सकती है.
नीले और हरे शैवाल
चावल के लिए जैव उर्वरक के रूप में नीले और हरे शैवाल का उपयोग बहुत लाभदायक है. चावल के लिए यह नाइट्रोजन और पोषक तत्त्वों का भंडार है.
यह मिट्टी की क्षारीयता को भी कम करने में मदद करता है. इस को फसलों में प्रयोग कर तकरीबन 25 से 30 किलोग्राम नाइट्रोजन अथवा 50 से 60 किलोग्राम यूरिया प्रति हेक्टेयर की बचत कर सकते हैं.
माइकोराइजा : यह फास्फोरस को तेजी से पौधों को उपलब्ध कराने में मददगार है. यह फल वाली फसलों के लिए पैदावार में बहुत फायदेमंद है. जैसे पपीता.
फास्फोरस विलायक जीवाणु : फास्फोरस विलायक जीवाणु, मिट्टी के अंदर की अघुलनशील फास्फोरस को घुलनशील फास्फोरस में परिवर्तित कर पौधों को उपलब्ध करता है. इस का उपयोग सभी फसलों में किया जा सकता है. यह फास्फोरस की कमी को पूरा करता है.
प्रयोग में सावधानियां
* जैव उर्वरक खरीदते समय नाम, प्रयोग होने वाली फसल और अंतिम तारीख अवश्य जांचें.
* बायोफर्टिलाइजर को हमेशा छायादार जगह पर ही रखें.
* जैव उर्वरक को तारीख खत्म होने के बाद बिलकुल भी प्रयोग न करें.
* फसल के अनुसार ही खेत में जैव उर्वरक का चयन करें, नहीं तो उत्पादन प्रभावित हो सकता है.
* फसल और कंपनी के मापदंडों के अनुसार खाद का प्रयोग उचित मात्रा में करें.
जैव उर्वरक के लाभ
* यह जमीन की उपजाऊशक्ति को बढ़ाता है.
* जैव उर्वरक के प्रयोग से अंकुरण जल्दी होता है. पौधे की टहनियों की संख्या में बढ़ोतरी होती है या फुटाव ज्यादा होता है. इस से रासायनिक खादों के, विशेष रूप से नाइट्रोजन और फास्फोरस तकरीबन 15 से 25 फीसदी हिस्से की आपूर्ति होती है.
* रासायनिक खाद में निर्भरता कम होने से लागत में कमी आती है.
* मिट्टी में कार्बनिक पदार्थ ह्यूमस में वृद्धि, मिट्टी की भौतिक और रासायनिक स्थिति में सुधार होता है.
* इन के प्रयोग से फसलों में 10 से 15 फीसदी उत्पादन में वृद्धि होती है.
* जैव उर्वरक से तिलहन फसलों के तेल में वृद्धि होती है.
* मिट्टी की क्षारीय स्थिति में भी सुधार देखने को मिलता है.
जैव उर्वरकों की प्रयोग विधि
बीजोपचार विधि : एक लिटर पानी में 100 से 110 ग्राम गुड़ के साथ जैव उर्वरक अच्छी तरह मिला कर घोल बना लें. इस को 20 किलोग्राम बीज पर अच्छी तरह छिड़क दें और इस के बाद बीजों को छायादार जगह पर सुखा लें. जब बीज अच्छी तरह से सूख जाएं, उस के तुरंत बाद बिजाई कर दें.
कंद उपचार विधि : गन्ना, आलू, अरवी और अदरक जैसी फसलों में बायोफर्टिलाइजर के प्रयोग के लिए कंदों को उपचारित किया जाता है. एक किलोग्राम एजोटोबैक्टर और एक किलोग्राम फास्फोरस विलायक जीवाणु का 25 से 30 लिटर पानी में घोल तैयार कर लें. इस के बाद कंदों को 10 से 15 मिनट तक घोल में डुबो दें और फिर निकाल कर रोपाई कर दें.
पौध की जड़ उपचार विधि : सब्जी वाली फसलें, जिन के पौधों की रोपाई की जाती हैं जैसे : टमाटर, फूलगोभी, पत्तागोभी और प्याज इत्यादि फसलों में पौधों की जड़ों को जैव उर्वरक द्वारा उपचारित किया जाता है. इस के लिए चौड़ा और खुला बरतन लें. अब इस में तकरीबन 6 से 8 लिटर पानी लें. 1 किलोग्राम एजोटोबैक्टर और 1 किलोग्राम फास्फोरस विलायक जीवाणु व 250 से 300 ग्राम गुड़ मिला कर घोल बना लें. इस के बाद पौधों को उखाड़ कर उस की जड़ें साफ कर लें. इस के बाद उन को जैव उर्वरक के घोल में 10 से 15 मिनट के लिए डुबो दें और निकाल कर तुरंत रोपाई कर देते हैं.
मिट्टी उपचार विधि: इस विधि में 5 से 10 किलोग्राम बायोफर्टिलाइजर फसल के अनुसार, 80 से 100 किलोग्राम मिट्टी या कंपोस्ट खाद को मिला कर 10 से 12 घंटे के लिए छोड़ दें. इस के बाद अंतिम जुताई में खेत में मिला दें.
जैव उर्वरक खेती के लिए बहुत आसान व सुरक्षित है. बेहतर कल के लिए इस का प्रयोग करना चाहिए और लोगों को भी प्रेरित करना चाहिए. इस का प्रयोग करने से खेत, पानी, पर्यावरण और स्वास्थ्य को बचा सकते हैं. इस के अलावा फसल का उत्पादन कम लागत में ज्यादा ले सकते हैं.