खेत में कार्बनिक पदार्थों जैसे फसलों के अवशेष, सूखी राख, सूखी पत्तियां या प्लास्टिक की तमाम तरह की फिल्म को इस तरह से बिछाना कि खेत की नमी ज्यादा दिनों तक बनी रहे, खरपतवारों की रोकथाम हो और मिट्टी की सूक्ष्म जलवायु को हम अपने अनुसार ढाल सकें, पलवार या मल्चिंग कहलाती है.
पलवार से कई फायदे हैं. एक तो जड़ के आसपास का इलाका ढका होने के चलते हम तापमान को अपने मुताबिक कम या ज्यादा रख कर बिना मौसम वाली अगेती फसलें ले कर ज्यादा फायदा कमा सकते हैं. वहीं दूसरी ओर जड़ीय इलाका ढका होने के चलते खरपतवारों की बढ़वार रुक जाती है. ज्यादा दिनों तक खेत या बाग में नमी बरकरार रहती है. हवा और पानी द्वारा होने वाला मिट्टी का कटाव भी रुकता है, जिस से खेती और बागबानी की लागत घटती है, पैदावार बढ़ती है.
मौजूदा समय में कार्बनिक पलवारों की भारी कमी है. नतीजतन, ज्यादातर प्लास्टिक पलवार (प्लास्टिक फिल्म) ही बिछाए जाने में इस्तेमाल की जा रही है. प्लास्टिक फिल्म एक ओर जहां आसानी से मिल जाती है, वहीं दूसरी ओर एक जगह से दूसरी जगह ले जाने में भी आसान है. उपयोगिता के आधार पर यह बाजार में अलगअलग तरह से मिल जाती है. इस की जानकारी हमें होनी चाहिए.
प्लास्टिक फिल्म के प्रकार : प्लास्टिक फिल्म मुख्यत: अलगअलग रंगों में मौजूद हैं:
दूधिया/सिल्वर : दूधिया या सिल्वर रंग की पौली फिल्म से प्रकाश का अपवर्तन यानी रीफ्रैक्शन हो जाता है, इस से पौली फिल्म के अंदर का तापमान कम हो जाता है. इस प्रकार जब हमें ऐसी फसलें उगानी हों, जिन में वर्तमान तापमान से कम तापमान की जरूरत हो तो दूधिया या सिल्वर रंग की फिल्म इस्तेमाल करनी चाहिए.
काली : काला रंग (आदर्श कृष्णिका) अपने मिजाज के चलते सूरज की गरमी को बहुत तेजी से अवशोषित करती है. फलस्वरूप फिल्म के अंदर का तापमान भी बढ़ जाता है. इस तरह जब हमें वर्तमान से ज्यादा तापमान की जरूरत हो तो काली रंग की पौली फिल्म प्रयोग करनी चाहिए.
पारदर्शी : इस पौली फिल्म में भी तापमान बढ़ जाता है. पारदर्शी रंग की पौली फिल्म खासतौर पर गरमियों के मौसम में मिट्टी सौर्यीकरण यानी सोलराइजेशन और सर्दियों के मौसम में तापमान बढ़ाने के लिए बहुत उपयोगी है.
ऐसे होगी मल्चिंग
आमतौर पर 90-120 सैंटीमीटर चौड़ी प्लास्टिक फिल्म मल्च के लिए चुननी चाहिए, जिस से खेती के काम आसानी से हो सकें. मल्च को बीजाई और रोपाई से पहले लगाया जाता है. खेत में क्यारी बनाने के साथ ही मल्च को बिछा कर किनारे से दबा देना ज्यादा बेहतर होता है. मौजूदा समय में ट्रैक्टर द्वारा मल्च बिछाने वाली मशीन भी बाजार में मौजूद है.
आक्सीजन की मात्रा सही तरीके से मिलती रहे, जबकि हानिकारक गैसें आसानी से बाहर हो जाएं. इस के लिए पलवार फिल्म में कुछ बड़े छेद पाइप वाले हथोड़े या पंच के जरीए बनाए जाते हैं.
ध्यान रखने वाली बात यह है कि खाद व उर्वरकों को पलवार से पहले ही इस्तेमाल कर लेना चाहिए, जबकि बीजों की बोआई और पौधों की रोपाई पलवार के छेदों में सीधे करनी चाहिए.
यों बरतें सावधानी
* फिल्म को दिन के अत्यधिक तापमान के समय नहीं बिछाना चाहिए, क्योंकि ज्यादा तापमान होने से फिल्म फैल जाती है.
* फिल्म को बिछाते समय बहुत तेजी से नहीं खींचना चाहिए क्योंकि तेजी के साथ खींचने से फिल्म के फटने का डर बना रहता है.
* पलवार बिछाए जाने पर बूंदबूंद सिंचाई यानी ड्रिप विधि सही रहती है. ड्रिप के लेटरल को पलवार के नीचे रखा जाता है, जिस से सिंचाई करने व उर्वरक देने में आसानी रहती है. साथ ही, जमीन में नमी भी बनी रहती है.
* निराईगुड़ाई करना हो तो लेटरल व डिपर को पलवार के ऊपर रखते हुए पतली पाइप के जरीए या पलवार में छेद कर के पानी के प्रवाह को सुनिश्चित किया जाता है.
* फसल की कटाई के बाद मल्च को खेत से सही तरह से हटा कर दोबारा इस्तेमाल करना चाहिए.
जानकार की राय में
कृषि जानकारों का कहना है कि ‘‘शुष्क खेती या फिर उन इलाकों में जहां सिंचाई की सुविधा नहीं है, ऐसी जगहों पर अगर फूल या कुछ सब्जियां उगाई जाती हैं तो खेत की नमी बचाए रखने के लिए पौलीथिन की थैलियों या पौलीथिन की चादर पलवार के रूप में इस्तेमाल की जा सकती है या फिर ज्यादा ठंड वाले इलाकों या उन जगहों पर, जहां मौसम से पहले सब्जी की जरूरत हो, ऐसी जगहों पर पौलीथिन की चादर से बने ग्रीनहाउस में सब्जी उगाई जा सकती है.’’