एलोवेरा यानी ग्वारपाठा एक ऐसा औषधीय पौधा है जिस का इस्तेमाल अनेक तरह के आयुर्वेदिक उत्पादों में होता है. यह कम लागत में की जाने वाली और मुनाफा देने वाली फसल है. इस को लगाने से पहले बाजार की जानकारी जरूर ले लें क्योंकि लीक से हट कर कोई भी खेती करना आसान तो है, लेकिन उस के लिए बाजार ढूंढ़ना कठिन होता है. लेकिन आज के समय में अनेक आयुर्वेदिक कंपनियां ऐसी हैं जो किसानों से सीधे माल खरीदती हैं या उन से पहले ही ठेके पर खेती की बात कर ली जाती है.

एलोवेरा की खेती किसी भी तरह की मिट्टी में की जा सकती है. बंजर जमीन में भी इसे उगाया जा सकता है. ऐसी जगह का चुनाव न करें जहां पानी इकट्ठा होता हो. इस की खेती में खास दवा पड़ती है.

खास बात यह भी है कि पशु इसे नहीं खाते हैं इसलिए इस फसल में नुकसान होने की संभावना न के बराबर होती है. इस की एक बार फसल लगाने पर कई साल तक इस से पैदावार ली जा सकती है.

जलवायु : यह भारत के आमतौर पर सभी इलाकों में उगाया जा सकता है. इस को पानी की बहुत कम जरूरत पड़ती है. इस को राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और हरियाणा के शुष्क इलाकों में भी उगाया जा सकता है.

जमीन की तैयारी : 20-30 सैंटीमीटर तक की गहराई वाली 1-2 जुताई काफी हैं. इस की खेती के लिए खेत में छोटीछोटी क्यारियां बना लेनी चाहिए.

खाद : 5-6 टन गोबर की खाद प्रति एकड़ जमीन को तैयार करते समय अच्छी तरह से मिला देनी चाहिए. अगर राख मिल सके तो राख को बीजाई के समय और बाद में पौधों के चारों ओर बिखेर देना चाहिए.

बीजाई का समय : इस की बीजाई सर्दी के महीनों को छोड़ कर पूरे साल की जा सकती है, परंतु अच्छी पैदावार के लिए इस की बीजाई जुलाईअगस्त के महीनों में करनी चाहिए.

बीजाई का तरीका : 3-4 महीनों के पौधे 4 से 5 पत्तों वाले तकरीबन 20-25 सैंटीमीटर लंबाई के 60×60 सैंटीमीटर की दूरी पर लगाने चाहिए. पौधे के चारों तरफ जमीन को अच्छी तरह से दबा देना चाहिए जिस से पौधे मजबूती से जमीन पकड़ सकें. एक एकड़ जमीन के लिए 5000 से 5500 पौधे काफी हैं.

सिंचाई : पहली सिंचाई बीजाई के तुरंत बाद करनी चाहिए. 2-3 सिंचाई जल्दीजल्दी कर देनी चाहिए ताकि पौधों की जड़ें अच्छी तरह से जम सकें. 4-6 सिंचाइयां हर साल करनी चाहिए.

निराईगुड़ाई : बीजाई के एक महीने बाद पहली गुड़ाई करनी चाहिए. बाद में 2-3 गुड़ाइयां हर साल करनी चाहिए. खरपतवार बिलकुल नहीं होने चाहिए. बीमारी वाले और सूखे पौधों को निकाल देना चाहिए. निराईगुड़ाई के समय पौधों की जड़ों पर मिट्टी चढ़ा देनी चाहिए, जिस से पौधे गिरें नहीं.

बीमारी व कीड़े : अभी तक किसी बीमारी व कीड़ों का प्रकोप इस फसल पर नहीं पाया गया है. कभीकभी दीमक लग जाती है या छोटे कीड़े (मिलीबग) आ जाते हैं. इस को रोकने के लिए हलकी सिंचाई जरूर करनी चाहिए. जरूरत हो तो कीटनाशक का इस्तेमाल किसी विशेषज्ञ से सलाह ले कर करें.

कटाई : पौधा लगाने के एक साल बाद फसल काटने लायक हो जाती है. हर 3 माह में हर पौधे पर 3-4 छोटी पत्तियां छोड़ कर बाकी सभी पत्तियों को तेज धारदार हंसिए से काट लेना चाहिए. कटे हुए पत्तों में फिर से नई पत्तियां बननी शुरू हो जाती हैं. पत्तों की पैदावार एक बार लगाने से 5 साल तक फसल हासिल कर सकते हैं.

एलोवेरा की खास प्रजातियां

बारबेडेंसिस एलोवेरा : यह एलोवेरा की खास प्रजाति है जो ज्यादातर इलाकों में पाई जाती है.

इंडिका एलोवेरा : इस प्रजाति का पौधा छोटा होता है इसलिए इसे छोटा ग्वारपाठा भी कहते हैं. यह 6 इंच से ले कर 1 फुट तक लंबा होता है और किनारे नुकीले होते हैं.

रूपेसेंस एलोवेरा : यह प्रजाति पश्चिम बंगाल के आसपास के इलाकों में पाई जाती है. इसे लाल ग्वारपाठा भी कहा जाता है. इस पर नारंगी और लाल रंग के फूल आते हैं.

जाफराबादी एलोवेरा : इस प्रजाति का एलोवेरा गुजरात के सौराष्ट्र के समुद्री किनारों के इलाकों में पाया जाता है. इस के पत्ते तलवारनुमा होते हैं.

एबिसिनिका एलोवेरा : ज्यादा चौड़े पत्ते वाली यह प्रजाति गुजरात के काठियावाड़ व खंबात के खाड़ी इलाकों में मिलती है.

फीरोक्स एलोवेरा : यह अफ्रीकी प्रजाति है. पौधे की लंबाई दूसरी प्रजातियों के मुकाबले काफी ज्यादा होती है जो 9 से 10 फुट तक की होती है.

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