धान की वैज्ञानिक खेती में गलत तरीके से सिंचाई करने या कैमिकल उर्वरक के ठीक तरह से इस्तेमाल न करने की वजह से धान की खेती से निकलने वाली ग्रीनहाउस गैसों में नाइट्रस औक्साइड और मिथेन खास हैं. ग्लोबल वार्मिंग को बढ़ावा देने में मिथेन 15 फीसदी और नाइट्रस औक्साइड का 5 फसदी योग है.

इसे निमस सस्य विधि से कम किया जा सकता है.

ग्रीनहाउस गैसों में मिथेन का वार्मिंग पोटैशियम कार्बन डाईऔक्साइड की तुलना में 21-25 गुना ज्यादा. 1880 में नाइट्रेट औक्साइड की मात्रा 270 थी जो अब 319 पीपीवी (2010) है जिस को निम्न विधि द्वारा कम किया जा सकता है:

* एसआरआई तकनीकी का इस्तेमाल.

* नाइट्रीफिकेशन व यूरियेज अवरोधक का इस्तेमाल : धान की खेती में नाइट्रीफिकेशन व यूरियेज अवरोधकों से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से नाइट्रीफिकेशन या डीनाइट्रीफिकेशन की प्रक्रिया प्रभावित होती है. इस के लिए नीम तेल, अमोनियम थायोसल्फेट, थायोयूरिया, लेपित यूरिया का इस्तेमाल करना चाहिए.

* एकीकृत पोषण प्रबंधन : टिकाऊ फसल उत्पादन के लिए एकीकृत पोषण प्रबंधन के तहत संतुलित खाद उर्वरकों का इस्तेमाल करना चाहिए.

* जैविक उर्वरकों का इस्तेमाल.

* कम पानी में एरोबिक धान उगाने की पद्धति अपना कर.

किस्मों का चयन : ऐसी प्रजातियों को चुनना चाहिए जिस में अच्छी क्वालिटी, कीट व रोग के प्रति प्रतिरोधी, कम ऊंचाई व कम समय में पकने वाली, बाजार में ज्यादा मांग व अच्छी कीमत हो.

जल्दी पकने वाली : नरेंद्र 80, पंत धान 12.

मध्यम समय के लिए : पंत 10, पंत 4, सरजू 52, पूसा 44.

सुगंधित : पूसा संकर धान 10, पूसा 1121 (सुगंधा 4) बासमती, पूसा 217, पूसा बासमती 1, पूसा 1509, पूसा बासमती 6, बल्लभ बासमती 21, 22, बासमती सीएसआर 30.

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