लैमन मारे देश में लैमन ग्रास की खेती अपनेआप में कई तरह की खूबियों को समेटे हुए है. इस की खेती की सब से बड़ी खूबी यह है कि यह ऐसी जगहों पर भी उगाई जा सकती है, जहां सूखा पड़ता है.

दुनिया की एक बड़ी आबादी लैमन टी पीने लगी है, लेकिन लैमन ग्रास औयल का सब से ज्यादा इस्तेमाल परफ्यूम और कौस्मैटिक उद्योग में होता है. एंटीऔक्सीडैंट का सब से बेहतर जरीया लैमन ग्रास में विटामिन सी की भारी मात्रा में होता है.

लैमन ग्रास की वर्तमान समय में तेजी से मांग बढ़ती जा रही है, क्योंकि लैमन ग्रास का सब से ज्यादा इस्तेमाल परफ्यूम में होता है. इस के अलावा तेल, डिटर्जैंट, वाशिंग पाउडर, हेयर औयल, मच्छर लोशन, कास्मैटिक, सिरदर्द की दवा समेत कई प्रोडक्ट में इस का इस्तेमाल किया जा रहा है.

जैसेजैसे ये इंडस्ट्री बढ़ रही है, लैमन ग्रास की भी मांग बढ़ी है इसलिए किसानों के लिए यह फायदे की खेती बनती जा रही है. किसानों की आमदनी बढ़ाने की कवायद में जुटी सरकार पूरे देश में ‘एरोमा मिशन’ के तहत इस की खेती को बढ़ावा भी दे रही है.

लैमन ग्रास की खूबी यह भी है कि इसे सूखा प्रभावित इलाकों में भी लगाया जा सकता है. लैमन ग्रास को नीबू घास, मालाबार या कोचिन घास भी कहते हैं.

लैमन ग्रास की पेराई

देश में तकरीबन 700 टन सालाना लैमन ग्रास के तेल का उत्पादन किया जा रहा है. इस के उत्पादन का एक बड़ा भाग बाहर के देशों में भी भेज दिया जाता है.

भारत से निर्यात होने वाले लैमन ग्रास तेल की विशेषता यह है कि किट्रल की उच्च गुणवत्ता के चलते इस की मांग हमेशा बनी रहती है. इस का सीधा सा मतलब है कि किसानों को दूसरी फसलों के मुकाबले ज्यादा आमदनी हो रही है.

केंद्र सरकार पहले ही किसानों की आमदनी को साल 2022 तक दोगुना करने का वादा कर चुकी है, अब इसी कवायद में भारत सरकार ‘एरोमा मिशन’ के तहत जिन औषधीय पौधों की खेती का रकबा बढ़ा रही है, उस में से एक लैमन ग्रास भी है.

लैमन ग्रास की खेती सूखा प्रभावित इलाकों जैसे मराठवाड़ा, विदर्भ और बुंदेलखंड तक में की जा रही है. गरीब किसानों को इस की खेती करने में थोड़ी परेशानी जरूर आएगी, क्योंकि लैमन ग्रास की फसल करने में खर्चा काफी आता है. इसे हर किसान बरदाश्त नहीं कर सकता. अगर फायदे की बात करें तो दूसरी फसलों की अपेक्षा यह काफी फायदेमंद है.

सीमैप के गुणाभाग और शोध के मुताबिक, 1 हेक्टेयर खेत में लैमन ग्रास की खेती करने पर शुरू में तकरीबन 30,000 से 40,000 रुपए की लागत आती है. एक बार फसल लगने के बाद साल में 3 से 4 कटाई ली जा सकती हैं, जिस से तकरीबन 100-150 लिटर तेल निकलता है.

इस तरह से 1 लाख से डेढ़ लाख रुपए तक आमदनी हो सकती है. खर्चा निकालने के बाद 1 हेक्टेयर खेत में किसान को हर साल 70,000 से 1 लाख रुपए तक का खालिस मुनाफा हो सकता है. लैमन ग्रास की मैंथा और खस की तरह पेराई की जाती है. इस का पेराई संयंत्र यानी फ्लोर भी तकरीबन एकजैसा ही होता है.

नर्सरी और रोपाई

अगर नर्सरी तैयार कर के खेतों में लगाएं, तब इस में खर्च कम आता है. लैमन ग्रास की जड़ लगाई जाती हैं. इस के लिए पहले नर्सरी तैयार की जाती है. अप्रैल से मई तक इस की नर्सरी तैयार की जाती है.

1 हेक्टेयर खेत की नर्सरी के लिए तकरीबन 10 किलोग्राम बीज की जरूरत होगी. 55-60 दिन में नर्सरी रोपाई के लिए तैयार हो जाती है. जुलाईअगस्त में तैयार नर्सरी (जड़ समेत एक पत्ती) को कतार में 2-2 फुट की दूरी पर लगाना चाहिए.

निराईगुड़ाई

लैमन ग्रास हर तरह की मिट्टी में उगाई जा सकती है. किसानों को चाहिए कि वे इस में कैमिकल खाद के बजाय गोबर की सड़ी हुई खाद और लकड़ी की राख डालें. इस से फायदा ज्यादा होगा.

आमतौर पर यह माना जाता है कि फसल तैयार करने में निराईगुड़ाई काफी करनी पड़ती है, जिस से किसानों का बजट गड़बड़ा जाता है. लेकिन लैमन ग्रास में ज्यादा निराईगुड़ाई की जरूरत नहीं होती. इस में सिर्फ साल में 2 से 3 निराईगुड़ाई सही होती हैं. कुछ ज्यादा ही सूखा इलाका हो तब पूरे साल में 8 से 10 सिंचाई की जरूरत होगी, वरना कम ही सिंचाई की जरूरत पड़ती है.

लैमन ग्रास (Lemon Grass)

कई चीजों में इस्तेमाल

लैमन ग्रास का तेल परफ्यूम या क्रीम वगैरह में इस्तेमाल होता है. इस्तेमाल करने वाले को उस के इस्तेमाल से ताजगी का एहसास होता है. इसे सिरदर्द, पेटदर्द में इस्तेमाल किया जाता है. यह तेल मुंहासे ठीक करने में काम आता है.

भारत में सर्दीजुकाम के दौरान काफी लोग इस का काढ़ा बना कर पीते हैं. किसानों के लिए राहत की बात यह है कि इस फसल में कीटपतंगे नहीं लगते हैं, लेकिन अगर किसी रोग के लक्षण दिखें तो नीम की पत्तियों को गोमूत्र में मिला कर छिड़काव कर के बचाव किया जा सकता है.

उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, बिहार, असम, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, केरल और कर्नाटक समेत कई राज्यों में इस की बड़े पैमाने पर खेती हो रही है.

लैमन ग्रास का तेल

लैमन ग्रास तेल का सब से ज्यादा इस्तेमाल परफ्यूम उद्योग में किया जाता है. इस के साथ ही इस का तेल डिटर्जैंट, वाशिंग पाउडर, हेयर औयल, मच्छर लोशन, कौस्मैटिक, सिरदर्द व पेटदर्द की दवा समेत कई प्रोडक्ट में इस्तेमाल हो रहा है. इस की खेती से किसानों को काफी फायदा मिल रहा है. यही वजह है कि जो किसान इस की खेती कर रहे हैं, वे साल में लाखों रुपए आसानी से कमा लेते हैं.

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