किसानों को खेती में इसलिए ज्यादा नुकसान होता है, क्योंकि कृषि लागत दिनोंदिन बढ़ती जा रही है. अगर इस लागत को कम कर दिया जाए तो उन्हें पहले की अपेक्षा ज्यादा फायदा मिलने लगेगा. इस के लिए देश के मशहूर कृषि विशेषज्ञ सुभाष पालेकर ने जीरो बजट खेती नाम दिया है.
क्या है जीरो बजट खेती
‘हींग लगे न फिटकरी रंग आए चोखा’. जीरो बजट खेती का मतलब है कि चाहे कोई भी फसल हो, उस की लागत का मूल्य जीरो होगा. मुख्य फसल का लागत मूल्य अंतर्वर्तीय फसलों या सहफसली उत्पादन से निकाल लेना और मुख्य फसल को बोनस के रूप में लेना.
फसलों को बढ़ने और अधिक उपज लेने के लिए जिनजिन संसाधनों की जरूरत होती है, वे सभी घर में ही उपलब्ध करना. किसी भी हालत में मंडी या बाजार से खरीद कर नहीं लाना.
हमारा नारा है, गांव का पैसा गांव में. गांव का पैसा शहरों में नहीं बल्कि शहर का पैसा गांव में लाना ही जीरो बजट खेती है.
इस तरह की खेती में कीटनाशक, कैमिकल खाद या हाईब्रिड बीज किसी भी आधुनिक उपाय का इस्तेमाल नहीं होता है. यह पूरी तरह से प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भर है. इस तकनीक में किसान भरपूर फसल उगा कर फायदा कमा रहे हैं, इसलिए इसे जीरो बजट खेती नाम दिया गया है.
किसान कैमिकल के स्थान पर घर पर खुद से तैयार की हुई देशी खाद बनाते हैं जिस का नाम ‘घन जीवामृत’ है. यह खाद गाय के गोबर, गौमूत्र, बेसन, गुड़, मिट्टी और पानी से बनती है.
फसल में कीटों के प्रकोप से बचाव के लिए अभी तक किसान कैमिकल कीटनाशकों का भरपूर इस्तेमाल करते थे, लेकिन इस में कैमिकल कीटनाशक न इस्तेमाल कर के घर पर बनाया गया कीटनाशक इस्तेमाल किया जाता है. इस में नीम, गोबर और गौमूत्र होता है, इसे ‘नीमास्त्र’ कहते हैं. इस से फसल को कीड़ा नहीं लगता है. संकर प्रजाति के बीजों के स्थान पर देशी बीज डालते हैं.
देशी बीज चूंकि हमारे खेतों की पुरानी फसल के ही होते हैं इसलिए हमें उस के लिए पैसे नहीं खर्च करने पड़ते हैं जबकि हाईब्रिड बीज हमें बाजार से खरीदने पड़ते हैं जो काफी महंगे होते हैं.
जीरो बजट खेती में खेतों की सिंचाई, मड़ाई और जुताई का सारा काम बैलों की मदद से किया जाता है. इस में किसी भी तरह के डीजल या ईंधन से चलने वाले संसाधनों का इस्तेमाल नहीं होता है. इस से काफी बचत होती है.
एक तरफ बैलों से जुताई करने में पैसे बचते हैं तो वहीं दूसरी ओर उस के गोबर से उपले और देशी खाद बना कर खेतों में इस्तेमाल की जाती है. ऐसे में किसानों को बाजार से ऊंची कीमत पर डीएपी या यूरिया नहीं खरीदना होता.
कृषि विशेषज्ञ सुभाष पालेकर बताते हैं कि हमें फसलों को बढ़ने के लिए अलग से कुछ देने की जरूरत नहीं है, क्योंकि जो संसाधन चाहिए वह उन की जड़ों के पास जमीन में और पत्तों के पास वातावरण में ही सही मात्रा में मौजूद हैं, क्योंकि हमारी भूमि अन्नपूर्णा है. हमारी फसलें जमीन से बमुश्किल 1.5 से 2.0 फीसदी जरूरी चीजें लेती हैं, बाकी का 98 से 98.5 फीसदी तो हवा, सूरज की रोशनी और पानी से लेती हैं.
जीरो बजट खेती का मकसद
* खेती की लागत कम करना और फायदा बढ़ाना.
* मिट्टी की उर्वराशक्ति बढ़ाना.
* कैमिकल खाद और कीटनाशकों का इस्तेमाल कम कर के घरेलू खाद का इस्तेमाल करना.
* कम सिंचाई से ज्यादा उत्पादन लेना.
* किसानों की बाजार निर्भरता में कमी लाना.
ये हैं मुख्य घटक
आच्छादन : हम जब 2 बैलों से खींचने वाले हल या कुलटी (जोत) से खेत की जुताई करते हैं, तब मिट्टी का आच्छादन ही करते हैं ताकि नमी और उष्णता वातावरण में उड़ कर नहीं जाती, बची रहती है.
फसलों की कटाई के बाद दाने छोड़ कर फसलों के जो अवशेष बचते हैं, अगर उसे जमीन पर आच्छादन यानी ढकने के लिए डालते हैं, तो मित्र कीट, जीवजंतु और केंचुए जमीन के अंदरबाहर लगातार चक्कर लगाते रहते हैं. इस से जमीन बलवान, उर्वरा और समृद्ध बनने लगती है. इस से फायदा यह होता है कि आप के खेत में फसल का उत्पादन पहले की तुलना में बढ़ जाता है.
बाफसा : कृषि विशेषज्ञ डाक्टर अरविंदर खरे कहते हैं कि जमीन में हर 2 मिट्टी के कणों के बीच जो खाली जगह होती है, उन में पानी का वजूद बिलकुल नहीं होना ही बापसा है. उन में हवा और वाष्प कणों का समान मात्रा में मिश्रण बनता है.
वास्तव में जमीन में पानी नहीं, बाफसा चाहिए यानी हवा 50 फीसदी और वाष्प 50 फीसदी होना चाहिए, क्योंकि कोई भी पौधा या पेड़ अपनी जड़ों के जरीए जमीन से पानी नहीं लेता, बल्कि वाष्प के कण और हवा के कण लेता है.
जमीन में केवल उतना ही पानी देना है, जिस से उष्णता से उस पानी का भाप बन जाए. यह तभी हो सकता है, जब आप पौधों या फल के पेड़ों को उन के दोपहर की छांव के बाहर पानी देते हो.
कोई भी पेड़ या पौधे की खादपानी लेने वाली जड़ें छांव के बाहरी सरहद पर होती हैं तो पानी और पानी के साथ जीवामृत पेड़ की दोपहर को 12 बजे जो छांव पड़ती है, उस छांव की आखिरी सीमा के बाहर 1-1.5 फुट अंतर पर नाली निकाल कर उस नाली में से पानी देना चाहिए.
बीजामृत या बीज शोधन 100 किलोग्राम बीज के लिए सामग्री :
5 किलोग्राम गाय का गोबर, 5 लिटर गाय का गौमूत्र, 20 लिटर पानी, 50 ग्राम चूना, 50 ग्राम मेड़ की मिट्टी.
बनाने की विधि : इन सारी चीजों को 24 घंटे के लिए पानी में डाल कर रखें और दिन में 2 बार लकड़ी से घोल को हिला दें. बाद में बीजों पर इस घोल यानी बीजामृत का छिड़काव करें. छाया में सुखाएं और बाद में बीज बोएं.
इस से किसानों को यह फायदा होगा कि बीज जल्दी और ज्यादा तेजी से उगते हैं. जड़ें तेजी से बढ़ती हैं और जमीन से पेड़ों पर जो बीमारियां फैलती हैं, वह नहीं हो पाती हैं. इस में यह ध्यान देने की बात है कि बीज शोधन बोआई के 24 घंटे पहले करना चाहिए.
जीवामृत
सामग्री : 100 किलोग्राम गाय का गोबर, 1 किलोग्राम गुड़ या फलों के गूदे की चटनी, 2 किलोग्राम बेसन (चना, उड़द, अरहर, मूंग), 50 ग्राम मेड़ या जंगल की मिट्टी, 1 लिटर गौमूत्र.
बनाने की विधि
सब से पहले आप 100 किलोग्राम गाय के गोबर को किसी पक्के फर्श या पौलीथिन पर फैलाएं, फिर इस के बाद 1 किलोग्राम गुड़ या फलों के गूदे की चटनी व 1 किलोग्राम बेसन डालें. इस के बाद खेत की मेंड़ या जंगल की मिट्टी डाल कर और 1 लिटर गौमूत्र सभी चीजों को फावड़ा से मिलाएं. इस के बाद 48 घंटे के लिए किसी छायादार जगह पर जूट के बोरे से ढक कर रख दें. 48 घंटे बाद उस का चूर्ण बना कर भंडारण करें.
इस जीवामृत का इस्तेमाल 6 महीने तक कर सकते हैं. इस में इस बात की सावधानी रखनी है कि 7 दिन तक छाया में सूखा हुआ गोबर ही इस्तेमाल करना है. इस के अलावा गौमूत्र को किसी धातु के बरतन में न लें या रखें. एक बार खेत की जुताई के बाद इस घोल का छिड़काव कर के अपने खेत तैयार करें.
नीमास्त्र
सामग्री : 5 किलोग्राम नीम की टहनियां, 5 किलोग्राम नीम फल या नीम खरी, 5 लिटर गौमूत्र, 1 किलोग्राम गाय का गोबर.
बनाने की विधि
प्लास्टिक के बरतन में 5 किलोग्राम नीम की पत्तियों की चटनी, 5 किलोग्राम नीम के फल पीस कर या कूट कर डालें.
5 लिटर गौमूत्र व 1 किलोग्राम गाय का गोबर डालें. अब सभी चीजों को डंडे से चला कर जालीदार कपड़े से ढक दें. यह घोल 48 घंटे में तैयार हो जाएगा. इस दौरान 4 बार लकड़ी के डंडे से चलाएं.
नीमास्त्र का इस्तेमाल 6 महीने तक किया जा सकता है. इसे बनाने में इस बात का खास खयाल रखें कि सारी चीजों को छायादार जगह पर रखें और धूप से बचाएं.
गौमूत्र को प्लास्टिक के बरतन में रखें. 100 लिटर पानी में तैयार नीमास्त्र को छान कर मिलाएं और स्प्रे मशीन से छिड़काव करें.
फफूंदनाशक दवा 100 लिटर पानी में 3 लिटर खट्टी छाछ को अच्छी तरह से मिला कर फसल पर छिड़काव करें.
किसान अगर अपनी लागत को कम कर के ज्यादा मुनाफा कमाना चाहते हैं तो उन्हें जीरो बजट खेती करनी चाहिए. इसे आम बोलचाल में प्राकृतिक यानी कुदरती खेती भी कहा जाता है.
आज के समय में ज्यादातर किसान अच्छे उत्पादन के लिए हाईब्रिड बीजों पर निर्भर हैं, जो काफी महंगे होने के साथ ही नकली होने का डर बना रहता है. साथ ही, ज्यादातर सिंचाई, कैमिकल खाद, कीटनाशक वगैरह से लागत भी काफी ज्यादा होती है, जिस से मुनाफा नहीं कमाया जा सकता और किसानों को नुकसान हो जाता है.