परंपरागत तरीकों से खेती में कदमकदम पर जोखिम रहता है. खाद, बीज और कैमिकल उर्वरकों की बढ़ती लागत के बावजूद फसल की सही कीमत किसानों को नहीं मिल पा रही है. जोखिम भरी खेतीकिसानी से हट कर अगर कुछ नए प्रयोग खेती में किए जाएं तो आमदनी में इजाफा होने के साथ ही दूसरों के लिए एक नजीर भी बन सकते हैं.
अपने खेत में रोपिणी यानी नर्सरी लगा कर भी किसान सरकार की कल्याणकारी योजनाओं का फायदा उठा कर अतिरिक्त आमदनी ले सकते हैं.
इसी को सच कर दिखाया है मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर जिले की गाडरवारा की पाराशर नर्सरी को चलाने वाले अशोक पाराशर ने.
50 साल पहले अशोक पाराशर के दादाजी रमेश पाराशर ने छोटी सी जगह में नर्सरी लगाने की शुरुआत की थी, जिसे उन के परिवार ने आज बड़ा रूप दे दिया है. गुलाब, चंपा, चमेली, डहलिया, जरवेरा, पिटुनिया, सेवंती जैसे विभिन्न प्रकार के सुगंधित फूलों, नीबू, अनार, संतरा, आम, आंवला, चीकू, मौसिमी अमरूद जैसे फलदार पौधों के साथ अशोक, बादाम, गुलमोहर, पाम ट्री, कदंब जैसे जल्दी बढ़ने वाले सभी आकार के पौधों को रोपने का काम पाराशर नर्सरी में किया जाता है. इन पौधों को बेच कर इसे एक कारोबार के रूप में अपनाया गया है.
कैसे तैयार करते हैं नर्सरी में पौध
गाडरवारा के तहसील दफ्तर के सामने तकरीबन 5000 वर्गफुट में पौलीहाउस को बना कर पौधों को रोपने का काम नर्सरी में किया जाता है. इस के लिए घर पर तैयार होने वाली गोबर की खाद और दवा से उपचारित खेत की मिट्टी को छोटेछोटे पौलीबैग या प्लास्टिक की पन्नी में भर कर रख दिया जाता है और खेत में बनी क्यारियों में उगाए गए विभिन्न प्रकार के फलदार, छायादार और फूलों के पौधे को इन पौलीबैग में रोप कर लाइन से इन्हें रखा जाता है.