हलदी का इस्तेमाल काफी समय से अलगअलग तरीके से किया जाता रहा हैं, क्योंकि इस में रंग, महक और की औषधीय गुण पाए जाते हैं. ‘प्रसार्ड ट्रस्ट’, मल्हनी, भाटपार, रानी देवरिया के डायरैक्टर प्रो. रवि प्रकाश मौर्य (रिटायर्ड सीनियर कृषि वैज्ञानिक) ने बताया कि भोजन में खुशबू और रंग लाने के अलावा हलदी का मक्खन, पनीर, अचार आदि खाने के सामान में इस्तेमाल करते हैं. यह भूख बढ़ाने वाली और उत्तम पाचक में सहायक होती है. इस का रंगाई के काम और कई दवाओं में भी इस्तेमाल होता है. कौस्मैटिक का सामान बनाने में भी इस का इस्तेमाल किया जाता है.

परिवार के लिए जरूरी

एक सामान्य परिवार को रोजाना 15-20 ग्राम हलदी की जरूरत रहती है. इस तरह से महीने मे 600 ग्राम और साल में 7 किलोग्राम सूखी हलदी की जरूरत होती है.

मिलावटी हलदी की पहचान

बाजार में ज्यादातर मिलावटी हलदी आ रही है, जिस में पीला रंग मिला रहता हैेै. अगर हलदी का दाग कपडे़ पर लगता है, तो साबुन से धोने पर उस का रंग लाल हो जाता है और धूप में डालने पर दाग हट जाता है. अगर हलदी में मिलावट है तो दाग बना रहता है.

मिलावट से बचने के लिए यहां कम क्षेत्रफल एक बिस्वा/कट्ठा (125 वर्गमीटर) जगह में हलदी की खेती करने की तकनीकी जानकारी दी जा रही है.

खेत की मिट्टी

हलदी की खेती करने के लिए दोमट मिट्टी, जिस में जीवांश की मात्रा ज्यादा हो, बहुत बढ़िया रहती है.

हलदी की मुख्य प्रजातियां ,अवधि और उत्पादकता

राजेंद्र सोनिया, सुवर्णा, सुगंधा, नरेंद्र हलदी -1, 2, 3, 98 और नरेंद्र सरयू आदि मुख्य किस्में हैं, जो 200 से 270 दिन में पक कर तैयार होती हैं.
इन की उत्पादन क्षमता 250 से 300 किलोग्राम प्रति बिस्वा है और सूखने पर 25 फीसदी हलदी मिलती है.

बोआई का समय और खेत की तैयारी

हलदी की रोपाई का उचित समय मध्य मई से जून का महीना होता है. बोआई करने से पहले खेत की 4-5 जुताई कर के उसे पाटा लगा कर मिट्टी को भुरभुरा व समतल कर लेना चाहिए.

बीज की मात्रा और बोआई की विधि

25 से 30 किलोग्राम प्रकंद प्रति बिस्वा लगता है. हर प्रकंद में कम से कम 2-3 आंख होनी चाहिए. 5 सैंटीमीटर गहरी नाली में 30 सैंटीमीटर कतार से कतार और 20 सैंटीमीटर प्रकंद की दूरी रख कर रोपाई करें.

सिंचाई

हलदी की फसल में रोपाई के 20-25 दिन बाद हलकी सिंचाई की जरूरत पड़ती है. गरमी में 7 दिन के अंतर पर और सर्दी में 15 दिन के अंतराल पर सिंचाई करनी चाहिए.

खाद और उर्वरक

मृदा परीक्षण के आधार पर खाद और उर्वरक का प्रयोग करें. 250 किलोग्राम कंपोस्ट या गोबर की खूब सड़ी हुई खाद प्रति बिस्वा की दर से जमीन में मिला देनी चाहिए. रासायनिक उर्वरक सिंगल सुपर फास्फेट 6.25 किलोग्राम और म्यूरेट औफ पोटाश 1.06 किलोग्राम रोपाई के समय जमीन में मिला दें. यूरिया की 1.37 किलोग्राम मात्रा 2 बार रोपाई के 45 और 90 दिन बाद मिट्टी चढ़ाते समय डालें.

मल्चिंग और अंत:फसल

हलदी की रोपाई के बाद हरी पत्तियां और सूखी घास क्यारियों के ऊपर फैला देनी चाहिए. अंतःफसल के रूप में बगीचों में आम, कटहल, अमरूद लगा कर ऐक्स्ट्रा आमदनी हासिल की जा सकती है.

हलदी की खुदाई

हलदी फसल की खुदाई 7 से 10 माह में की जाती है. यह सब बोई गई प्रजाति पर निर्भर करता है. आमतौर पर जनवरी से मार्च के मध्य तब खुदाई की जाती है, जब पत्तियां पीली पड़ जाएं और ऊपर से सूखना शुरू कर दें.

खुदाई के पहले खेत में घूम कर निरीक्षण कर लें कि कौनकौन से पौधे बीमार हैं. उन की निशानदेही कर अलग से खुदाई कर के अलग कर दें और बाकी को अलग अगले साल के बीज हेतु रखें. खुदाई कर हलदी छाया में सुखा कर मिट्टी आदि साफ कर लें.

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