चूहा आदमी का सब से बड़ा शत्रु है. यह खेतखलिहानों, घरों और गोदामों में अनाज खाने के साथसाथ अपने मलमूत्र से अनाज बरबाद कर देता है. दुनियाभर में चूहों की 500 से अधिक जातियां हैं. इन में से 110 जातियां हमारे देश में पाई जाती हैं. इन्हें 4 कैटेगरी में बांटा जा सकता है.
1. घरेलू चूहे
2. पड़ोसी चूहे
3. खेत के चूहे
4. जंगली चूहे
एक जोड़ी चूहा एक वर्ष में 800 से 1,200 की संख्या में बढ़ जाता है. इन का जीवनकाल 1 से 2 साल तक का होता है. चूहों में स्पर्श, सुनने एवं सूंघने की तीव्र क्षमता होती है. चूहे अच्छी तरह से पानी में तैरते भी हैं. चूहों की 25 से 30 जीवित बिल प्रति हेक्टेयर में पाए जाने पर उन के द्वारा होने वाली हानि सब से ज्यादा होती है.
चूहा नियंत्रण अभियान : चूहों की तादाद मईजून माह में कम होती है. यही समय चूहा नियंत्रण अभियान के लिए उपयुक्त रहता है. यह अभियान क्षेत्र विशेष/गांव के लोगों को मिल कर सामूहिक रूप में चलाना चाहिए.
पहला दिन : बिलों का सर्वे करना चाहिए. जहां बिल मिले, उसे मिट्टी से बंद कर दें और वहां निशान के लिए एक डेढ़ फुट का डंडा लगा.
दूसरा दिन : जो बिल खुले हों, वहां प्रलोभन चुंगा (दाना चना, चावल भुना आदि) 8 से 10 ग्राम प्रतिदिन की दर से कागज की अधखुली पुड़िया में रख दें और जो बिल बंद हो, वहां का डंडा उखाड़ लें.
तीसरा दिन : सादा दाना दूसरे दिन की भांति प्रयोग करें.
चौथा दिन : विष चारा दें. यह विष चारा निम्न प्रकार बनाएं :
दाना – 96 ग्राम
सरसों का तेल – 2 ग्राम
जिंक फास्फाइड – 2 ग्राम
सभी को मिला कर विष चारा बना लें और शाम को 8 से 10 ग्राम प्रति बिल की दर से रखें.
पांचवा दिन : सुबह मरे हुए चूहे और बचे हुए विष चारों को एकत्र कर जमीन में गड्ढा खोद कर गहराई में दबा देना चाहिए.
छठे या सातवें दिन : सभी बिलों को पुनः बंद करना चाहिए.
आठवें दिन : 3 ग्राम एलुमिनियम फास्फाइड प्रति ताजे (खुले) बिल के हिसाब से प्रातःकाल डाल कर बंद कर देना चाहिए. इस से बचे हुए चूहों की संख्या को नियंत्रित किया जा सकता है.