राजस्थान के पश्चिमी इलाकों में जहां बारिश कम होती है, अब तक मूंग, मोंठ, बाजरा वगैरह की फसलें ही ली जाती रही हैं, पर अब वहां खजूर की खेती करने की सोच पिछले कुछ सालों से सच होने लगी है.
दरअसल, खजूर शुष्क जलवायु में उगाया जाने वाला एक प्राचीन पौधा है, मगर फिर भी यहां इस का व्यावसायिक रूप से उत्पादन नहीं हो रहा था. इस की मुख्य वजह थी, इस के सकर्स का कम होना.
हमारे देश में सब से पहले साल 1955 से 1962 के बीच भारतीय कृषि अनुंसधान परिषद के क्षेत्रीय केंद्र, अबोहर (पंजाब) द्वारा संयुक्त राज्य अमेरिका और पाकिस्तान से खजूर की कुछ व्यावसायिक किस्मों के पौधे मंगवाए गए थे. मगर अबोहर में मानसून की बारिश राजस्थान से पहले ही आ जाती है इसलिए यह प्रयोग यहां कामयाब नहीं हुआ. इस के बाद अखिल भारतीय खजूर अनुसंधान परियोजना, बीकानेर (राजस्थान) द्वारा साल 1978 से खजूर के सकर्स का आयात शुरू किया गया था.
चूंकि एक खजूर के पौधे से 5-7 सकर्स ही लिए जा सकते हैं और ये ज्यादा उन्नत किस्म के भी नहीं होते. इसलिए यह तकनीक किसानों को ज्यादा रास नहीं आई. तब वैज्ञानिकों को इन्हें टिशू कल्चर से पैदा करने का विचार आया और तकरीबन 5 साल पहले सऊदी अरब से इस तकनीक से तैयार पौधे मंगवा कर किसानों को प्रयोगात्मक रूप से सब्सिडी सहित मुहैया कराए गए. नतीजे अच्छे रहे और अब ये पौधे व्यावसायिक रूप से फलने को तैयार हैं.
ऐसे हों भौगोलिक हालात
कहावत है ‘खजूर के पांव पानी में और सिर धूप में रहना चाहिए.’ यों तो 7 डिगरी सैंटीग्रेड तापमान से ले कर 32 डिगरी सैंटीग्रेड तापमान तक खजूर की पैदावार के लिए बेहतर है, मगर यह गरमियों में 50 डिगरी सैंटीग्रेड तक तापमान और सर्दियों में 5 डिगरी सैंटीगे्रड से भी नीचे का तापमान सहन कर लेता है. भूमिगत खारा पानी जहां दूसरी फसलों के लिए अनुपयुक्त है, वहीं यह खजूर के लिए वरदान साबित होता है.
भूगोल, तापमान, बारिश और जलवायु की अनुकूल परिस्थितियों और अतिआधुनिक अनुसंधान के चलते आने वाले सालों में बीकानेर खजूर उत्पादन का सब से बड़ा केंद्र बन सकता है.
न केवल बीकानेर की गरमी और भूमिगत खारा पानी खजूर के उत्पादन के लिए सही है बल्कि यही हालात पश्चिमी राजस्थान के दूसरे जिलों में सहज उपलब्ध हैं इसलिए अगले कुछ सालों में परंपरागत खेती से हट कर बीकानेर शहर के आसपास के कई निजी कृषि फार्म खजूर के फलों से लदे नजर आने लगेंगे.
कैसे लगाएं पौधे
बीकानेर में खजूर की व्यावसायिक खेती के लिए किसानों को बढ़ावा देने का जिम्मा स्वामी केशवानंद कृषि विश्वविद्यालय के साथसाथ शुष्क उद्यानिकी संस्थान, बीकानेर के वैज्ञानिक डाक्टर अतुल चंद्रा की समझ और मेहनत को भी जाता है. उन्होंने टिशू कल्चर से खजूर के पौधे लगवाए. 1 मीटर के गड्ढे में गोबर की खाद और दीमकनाशक दवा का इस्तेमाल किया. 2 साल तक पौधों को तेज गरमी से बचा कर रखा. तकरीबन 5 साल की मेहनत के बाद अब ये पौधे फल देने के लिए तैयार हैं.
डाक्टर अतुल चंद्रा के मुताबिक, खजूर के पौधे लगाने के लिए 1 मीटर गहरा, इतना ही लंबा और इतना ही चौड़ा गड्ढा कर एक महीने पहले ही तैयार कर लेना चाहिए. इन में गोबर की सड़ी खाद के अलावा सिंगल सुपर फास्फेट के साथ क्विनालफास या फैनवलरेट मिला कर गड्ढे को भर देना चाहिए.
पौधा लगाते समय ध्यान रहे कि बल्ब का केवल 3/4 भाग ही मिट्टी में रहे, क्राउन न दबे.
कतार से कतार और पौधे से पौधे के बीच में 8 मीटर का फासला रखना चाहिए.
ऐसे करें देखभाल
यों तो इस पौधे की ज्यादा देखभाल नहीं करनी पड़ती, पर कुछ सामान्य देखभाल किसी भी पौधे की अच्छी बढ़त के लिए जरूरी होती है. समयसमय पर इस की पीली पड़ी पत्तियों को हटा देना चाहिए. इस के फूल फरवरीमार्च महीने में आते हैं, उस समय सही समय पर परागण का होना जरूरी है.
अप्रैलमई में फलने के समय अगर बारिश आ जाए तो इस के फलों को नुकसान पहुंच सकता है. फलों को पक्षियों से बचाने के लिए उन्हें जाली से ढकना जरूरी है.
अंतरकाश्त की संभावना
इन कतारों के बीच की खाली जगह में अंतरकाश्त यानी दूसरी फसलें भी ली जा सकती है यानी फल आने से पहले ही अतिरिक्त आमदनी ली जा सकती है.
मसलन, ग्वार, मोंठ, बाजरा, सब्जियां, चारा वगैरह की पैदावार ली जा सकती है. अनार भी लगाया जा सकता है. अगर पानी की उपलब्धता हो तो चना, सरसों भी उगाई जा सकती है. याद रहे कि पौधे के बेसिन में काश्त नहीं करनी चाहिए.
लागत और मुनाफा
तकरीबन 5 साल पहले टिशू कल्चर तकनीक से लगाई गई खजूर की बरही, मेडजूल और खुनैजी किस्में अब फलने की तैयारी में हैं. इस समय 5 साल के हरेक पेड़ पर 25 से 30 किलोग्राम खजूर का उत्पादन होने की संभावना है. इन से प्रति बीघा तकरीबन 75,000 रुपए की आमदनी लिए जाने की उम्मीद है. टिशू कल्चर तकनीक के इस्तेमाल से अब किसानों का रुझान इस ओर बढ़ने लगा है.
स्वामी केशवानंद कृषि विश्वविद्यालय के उद्यानिकी वैज्ञानिक डाक्टर इंद्रमोहन वर्मा के मुताबिक, खजूर के पौधों में 10 फीसदी नर पौधे होते हैं. नर से परागण इकट्ठा कर मादा के फूलों को निषेचित किया जाता है. यह परागण मनुष्य द्वारा ही किया जाता है. इस के बाद इस पर फल लगते हैं.
खजूर के एक पौधे पर तकरीबन 25,000 रुपए का खर्च आता है. इस के बाद 5 साल तक इस पर ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ती. जब इस के फलने का समय आता है, तब फिर से खाद वगैरह डालनी पड़ती है, जिस का खर्चा भी कुछ खास नहीं होता. इस के बाद यह पौधा अपनी उम्र के 60-70 सालों तक फलता है. इस में ड्रिप सिस्टम द्वारा सिंचाई की जाती है.
खजूर के फायदे
हालांकि खजूर जलवायु विशेष का फल है, मगर इसे पूरी दुनिया में बहुत ही चाव से खाया जाता है इसलिए पश्चिमी राजस्थान और गुजरात के कच्छ इलाकों के किसानों के लिए यह वरदान साबित हो सकता है. इसे डंडी के साथ ही तोड़ना चाहिए. इसे देश में या देश से बाहर भेजना आसान है क्योंकि यह कमरे के तापमान पर भी हफ्तेभर तक ताजा रहता है और कोल्ड स्टोरेज में इसे सालभर तक रखा जा सकता है.
यह फल खाने में बहुत ही स्वादिष्ठ होता है. कहा जाता है कि एक खजूर का फल और एक गिलास दूध एक शख्स की दिनभर की न्यूट्रीशन की जरूरत को पूरा करने के लिए काफी होता है.
दूसरे उपयोग भी हैं
खजूर से छुआरा और पिंड खजूर जैसे पोस्ट प्रोडक्ट तो पुराने समय से बनते आए हैं. इन दिनों नवाचार के रूप में इस से जूस, जैम और अचार वगैरह भी बनाए जा रहे हैं जो पौष्टिक होने के साथसाथ स्वादिष्ठ भी होते हैं.
खजूर शुष्क जलवायु वाले इलाकों के किसानों के लिए एक वरदान साबित हो सकता है. सीमित इलाकों का फल होने के चलते दूसरी जगहों पर इस की मांग ज्यादा होती है. इस पर किसानों का एकाधिकार भी कहा जा सकता है.
यों तो स्थानीय बाजार में इस की कीमत 100 रुपए प्रति किलोग्राम है मगर यह 200 से 250 रुपए किलोग्राम तक भी बेचा जाता है.
इस के उत्पादन से कम लागत और न के बराबर देखभाल में ज्यादा मुनाफा कमाया जा सकता है. ज्यादा जानकारी के लिए आप डाक्टर अतुल चंद्रा के मोबाइल फोन नंबर 9414138923 या डाक्टर इंद्रमोहन वर्मा से भी उन के मोबाइल फोन नंबर 9414230566 पर संपर्क कर सकते हैं.