पानी का दिनोंदिन गिरता लैवल और घटती क्वालिटी किसानों के लिए परेशानी का सब से बड़ा सबब है. ऐसे में एक प्रगतिशील किसान राकेश रमन कुक्कड़ ने पश्चिमी राजस्थान के बीकानेर जिले में जोजोबा की खेती कर के किसानों के लिए नई राह खोली है.
राकेश रमन कुक्कड़ को उन के प्रयासों के लिए जिला प्रशासन, बीकानेर द्वारा साल 2017 में सम्मानित भी किया गया. पानी की कमी से जूझता राजस्थान का उत्तर पूर्वी और उत्तर पश्चिमी इलाका जोजोबा की खेती के सभी मापदंडों पर खरा उतरता है.
जोजोबा एक ऐसा पौधा है जिस के बीजों से तेल निकाला जाता है जो सौंदर्य प्रसाधन में इस्तेमाल होता है. जोजोबा के पौधों के बारे में राकेश रमन कुक्कड़ से हुई बातचीत के कुछ खास अंश:
आप को जोजोबा की खेती करने का खयाल कैसे आया?
साल 1992 में भारत में जोजोबा की खेती को बढ़ावा देने के लिए राजस्थान सरकार ने काजरी यानी सैंट्रल एरिड जोन रिसर्च इंस्टीट्यूट के सहयोग से जोधपुर में एक कार्यशाला आयोजित की थी. वहां मैं ने भी हिस्सा लिया था. लेकिन तब मैं ने इस के प्रति ज्यादा रुचि नहीं ली थी. उस के बाद एजोर्प यानी एसोसिएशन औफ दी राजस्थान जोजोबा प्लांटेशन ऐंड रिसर्च प्रोजैक्ट के मार्गदर्शन और तकनीकी सहयोग से मैं ने साल 2006 में बीकानेर के नजदीक स्थित झझू गांव में अपने फार्महाउस पर इस की उन्नत खेती की शुरुआत की. यह पूरी तरह से ड्रिप इरिगेशन यानी बूंदबूंद सिंचाई तकनीक पर आधारित थी.
इस के पौधे के बारे में कुछ बताइए?
जोजोबा या होहोबा एक झाड़ीनुमा शुष्क जलवायु का पौधा है. यह रेतीली मिट्टी में उगाया जा सकता है लेकिन इसे कंकरीली या पथरीली मिट्टी में भी उगाया जा सकता है. इस की उम्र 150 साल होती है.
यह पौधा 3 डिगरी से ले कर 54 डिगरी सैल्शियस तक का तापमान सहने की क्षमता रखता है. मिट्टी का पीएच मान 6 से 8 इस की खेती के लिए सही है.
यह एकलिंगीय पौधा है यानी इस में नर और मादा के फूल अलगअलग पौधों पर आते हैं. मादा फूल दिसंबर से जनवरी में खिलते हैं और मई के आखिरी हफ्ते से जून के पहले हफ्ते तक बीज तैयार हो जाते हैं.
क्या जोजोबा के पौधों को इन की शुरुआती अवस्था या बाद में भी किसी खास देखभाल की जरूरत होती है?
यों तो इसे ज्यादा देखभाल की जरूरत नहीं होती क्योंकि इस के पौधों में किसी भी तरह की कोई बीमारी नहीं लगती और न ही कीटपतंगे लगते हैं.
लेकिन ध्यान रहे कि खेत में खरपतवार न हों क्योंकि इस से सूंड़ी और दीमक का प्रकोप हो सकता है. इस के लिए खरपतवार और पौधों पर फेनवलरेट 20 मिलीलिटर प्रति 16 लिटर पानी में घोल कर छिड़काव करना चाहिए या फेनवैल डस्ट 0.4 या क्विनालफास डस्ट 1.5 फीसदी का छिड़काव 8 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर के हिसाब से डस्टर से करना चाहिए.
क्या इस की खेती को बढ़ावा देने के लिए किसी सरकारी अनुदान की भी व्यवस्था है?
जी हां. पहले जोजोबा पौधारोपण पर उद्यान विभाग द्वारा केवल 4 हेक्टेयर पर अनुदान दिया जा रहा था, लेकिन साल 2014-15 से कृषि (विस्तार) विभाग, राजस्थान द्वारा वृक्षजनित तिलहन पौधारोपण योजना के तहत जोजोबा पौधारोपण पर असीमित इलाके के लिए अनुदान दिया जा रहा है.
अगर पेड़ों की तादाद 1,513 प्रति हेक्टेयर है तो अनुदान की राशि 35,000 रुपए प्रति हेक्टेयर है. इस के अलावा ड्रिप सिस्टम पर निर्धारित मापदंडों के मुताबिक अलग से सहायता भी देय होगी.
आप ने कितनी जमीन पर इस की काश्त शुरू की?
बीकानेर जिले में झझू और किलचू में हमारे 2 फार्महाउस हैं. यहां 25 हेक्टेयर जमीन पर हम ने जोजोबा की खेती की है. किलचू स्थित फार्महाउस पर हम ने अति उन्नत किस्म की पौध तैयार करने के लिए नर्सरी भी बनाई है. किसान भाई यहां से इस के पौधे हासिल कर सकते हैं. यहीं हम ने जोजोबा के बीजों से तेल निकालने का प्लांट भी लगाया है.
आप एक संपन्न किसान हैं. क्या एक मध्यम या औसत दर्जे का किसान भी जोजोबा की खेती से फायदा उठा सकता है?
जी हां. बिलकुल फायदा उठा सकता है. अगर किसी किसान के पास 2 बीघा जमीन भी है तो उसे सभी सरकारी अनुदानों का फायदा मिलेगा. इन के बीजों को वह हमजैसे किसानों को बेच सकता है.
क्या आप जोजोबा की खेती से होने वाले अनुमानित फायदे की गणना हमारे किसान भाइयों के साथ साझा करेंगे?
जोजोबा के बीजों से तेल निकाला जाता है. इस का इस्तेमाल सौंदर्य प्रसाधन बनाने वाली कंपनियां करती हैं. किसान जोजोबा के बीज उन्हें सीधे या फिर संगठन के जरीए भी बेच सकते हैं.
किसान चाहें तो खुद भी तेल का उत्पादन कर बेच सकते हैं लेकिन यह अपेक्षाकृत थोड़ा महंगा होता है.
अगर प्रति बीघा 5,896 पौधे लगाए जाएं तो चौथे साल से तकरीबन 6,637 रुपए प्रति बीघा आमदनी शुरू होती है जो 10वें साल तक आतेआते 1,65,825 रुपए प्रति बीघा तक पहुंच जाती है.
यह गणना एजोर्प द्वारा पिछले 5 सालों में घोषित बीजों के समर्थन मूल्य और बीज के बाजार भाव के औसत मूल्य को आधार मान कर की गई है.
यह पौधा 4 साल बाद फलना शुरू होता है. क्या इस बीच किसान को कोई दूसरी आमदनी हासिल नहीं होगी?
इस समय में और इस के बाद भी कतारों के बीच बारिश से होने वाली फसलों में ग्वार, मोंठ और तारामीरा वगैरह और सिंचाई से होने वाली फसलों में चना, मूंगफली व सब्जियों की पैदावार ली जा सकती है.
इस दौरान बाजरा और सरसों की फसल नहीं करनी चाहिए. अंतरकाश्त फसलों की सिंचाई भी स्प्रिंकलर या ड्रिप तकनीक से की जानी चाहिए.
आप अपने उत्पादों यानी बीजों और तेल वगैरह को कहां सप्लाई करते हैं?
राजस्थान के अलावा हरियाणा, पंजाब, गुजरात, महाराष्ट्र, ओडिशा, आंध्र प्रदेश वगैरह राज्यों में भी जोजोबा की खेती की जाती है. हम अपनी नर्सरी में तैयार पौधे इन राज्यों के किसानों को मुहैया कराते हैं. इस के बीज और तेल विभिन्न सौंदर्य उत्पाद बनाने वाली कंपनियों जैसे लोरियल, डाबर, इमामी, आईटीसी वगैरह को सप्लाई करते हैं. विदेशों में यूरोप और अमेरिका में भी निर्यात करते हैं.
ज्यादा जानकारी के लिए आप राकेश रमन कुक्कड़ से उन के मोबाइल फोन नंबर 9414139811 पर संपर्क कर सकते हैं.