गन्ना बहुवर्षीय फसल है, जोकि भारत की महत्त्वपूर्ण नकदी फसलों में से एक है. भारत विश्व में गन्ना उत्पादन में क्षेत्रफल व उत्पादन की दृष्टि से दूसरा स्थान रखता है. गन्ने की खेती व प्रसंस्करण द्वारा जहां करोड़ों लोगों को रोजगार मिलता है, वहीं दूसरी ओर देश को हर साल 50,000 करोड़ रुपए से भी अधिक का का राजस्व प्राप्त होता है.

यह देखा गया है कि गन्ने की खेती से किसानों की आर्थिक स्थिति में काफी हद तक सुधार हुआ है. एक अनुमान के अनुसार, एक टन मिल योग्य गन्ना प्राप्त करने में प्रति हेक्टेयर खेत से 2.0 किलोग्राम नाइट्रोजन, 0.5 किलोग्राम फास्फोरस, 2.8 किलोग्राम पोटाश, 0.3 किलोग्राम गंधक और 0.03 किलोग्राम लौह तत्त्व का अवशोषण किया जाता है. इस के चलते मिट्टी की उर्वरकता में उपयोगी तत्त्वों का दिनप्रतिदिन नुकसान होता जा रहा है.

गन्ने में मुख्यतया प्रयोग होने वाली जैविक खादें, गोबर की खाद, मैली की खाद व जैव उर्वरक एसीटोबैक्टर का मिश्रण शामिल है. अध्ययनों से पता चला है कि जैविक खादों के प्रयोग से गन्ने में बहुपेड़ी खेती उपज में बिना गिरावट के सफलतापूर्वक की जा सकती है. इस में देखा गया है कि मिट्टी की भौतिक व रासायनिक संरचना में भी गिरावट नहीं आती है.

एक अन्य अध्ययन के अनुसार पता चला है कि रासायनिक उर्वरकों की तुलना में कार्बनिक खादों के प्रयोग से मिट्टी में एंजाइमों की क्रियाशीलता में लगभग दो गुना तक वुद्धि पाई गई है और उत्पादन भी बढ़ा है.

अत: अब समय आ गया है कि गन्ने की खेती में मिट्टी व फसल दोनों के स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए जैविक खादों का प्रयोग कर के अधिक मुनाफा प्राप्त कर सकते हैं.

गन्ने की खेती में जैविक खादों का प्रयोग अकेले या जैव उर्वरकों के साथ बावक फसल की बोआई से पहले एवं प्रत्येक पेड़ी फसल को प्रारंभ करते समय करें. इस के लिए कार्बनिक खादों को मिट्टी में अच्छी तरह मिला कर सिंचाई कर देते हैं, ताकि पौधों को पोषक तत्त्व जल्दी से जल्दी प्राप्त हो सकें.

कार्बनिक खादों के प्रयोग से लंबे समय तक पोषक तत्त्वों की संतुलित मात्रा प्राप्त होती रहती है, जिस से आगामी पेड़ी फसलों की संख्या व बढ़वार रासायनिक उर्वरकों की तुलना में बेहतर होती है.

मैली खाद या प्रेसमड गन्ने से चीनी बनने की प्रक्रिया में एक उपउत्पाद के रूप में प्राप्त होता है, जिसे जैविक खादों के रूप में उपलब्ध करा कर चीनी मिलें अपने क्षेत्र में गन्ना उत्पादन में वृद्धि करा सकती हैं. जैविक खादों के प्रयोग द्वारा अधिक संख्या में पेड़ी फसलें ली जा सकती हैं एवं गन्ने की खेती से अधिक से अधिक लाभ लिया जा सकता है.

गन्ने में जैविक उर्वरक

जैविक खाद लाभकारी जीवाणुओं का एक ऐसा जीवित समूह है, जिन को बीज जड़ों या मिट्टी में प्रयोग करने पर पौधे और अधिक मात्रा में पोषक तत्त्व मिलने लगते हैं. साथ ही, मिट्टी की जीवाणु क्रियाशीलता एवं सामान्य स्वास्थ्य में भी वृद्धि होती है.

गन्ने में नाइट्रोजन पोषक तत्त्वों की आपूर्ति के लिए विभिन्न जैविक खाद

यह जीवाणु वातावरण में उपस्थित नाइट्रोजन का प्रवर्तन कर उसे पौधों के योग्य बना देते हैं. साथ ही, यह पौधे के लिए वृद्धि हार्मोन बनाते हैं. इन में मुख्य एसीटोबैक्टर एजोस्पिरिलम एजोटोबैक्टर.

एजोटोबैक्टर जैविक खाद
* यह जैविक खाद एजोटोबैक्टर क्रोकोकम से बनी है.
* यह जीवाणु मिट्टी में कहीं भी पाया जाता है.
* यह नाइट्रोजन परिवर्तन करता है एवं वृद्धि हार्मोन बनाता है, जिस से जड़ों में वृद्धि होती है.
* कुछ कीटनाशक पदार्थ छोड़ता है, जिस से जड़ों की रोगों से रक्षा होती है.
* यह पौधों की वृद्धि एवं उत्पादकता में 25 फीसदी तक बढ़ोतरी करता है.

एजोस्पिरिलम जैविक खाद

* यह जैविक खाद एजोस्पिरिलम ब्राजिलैंस से बनी होती है.
* यह जीवाणु जड़ों के समीप पाया
जाता है.
* यह 30 से 35 फीसदी रासायनिक नाइट्रोजन खाद की बचत कर सकता है और साथ में वृद्धि तत्त्व भी देता है.
* यह पौधे के जमाव एवं बढ़ने में मदद कर उत्पादकता में 25 फीसदी तक की वृद्धि कर सकता है.

फास्फोरस घुलनशील जैविक खाद
* यह जैविक खाद बेसिलस एस्परजिलस से बनी है.
* यह जीवाणु पौधों की जड़ों के पास रह कर अनुपलब्ध फास्फोरस को घुलनशील कर उपलब्ध करवाते हैं.
* यह पौधों की वृद्धि को बढ़ाते हैं और उत्पादकता को 20 फीसदी तक बढ़ाते हैं.
* जीवाणु को किसी भी कैरियर जैसे कि लिग्नाइट गोबर खाद वर्मी कुलाइट पिट एवं चारकोल में रखा जा सकता है.

जीवाणु खाद की मात्रा और प्रयोग विधि

गन्ने के टुकड़ों का उपचार : 5 किलोग्राम जीवाणु खाद एक एकड़ के लिए पर्याप्त होती है. 100 लिटर पानी में इस का घोल बना कर गन्ने के टुकड़ों को भिगो कर कूड़ों में लगाएं. इस के बाद कूड़ों को ढक दें.
मिट्टी का उपचार : प्रति एकड़ 5 किलोग्राम उर्वरक को 10 लिटर पानी में घोल लें और इस को 80-100 किलोग्राम फार्मयार्ड खाद के साथ अच्छी तरह मिला लें. गन्ना रोपण के समय पंक्तियों में इस मिश्रण का छिड़काव कर के कूड़ों को भली प्रकार से ढक दें.

सावधानियां
* जीवाणु खाद को ठंडी और सूखी जगह पर रखें. सूरज की किरणों और गरमी से बचाए रखें.
* जीवाणु खाद और रासायनिक खाद को एकसाथ मिला कर प्रयोग न करें.
* जैविक खाद के थैले पर जीवाणु खाद एवं फसल का नाम, उस के बनने एवं अंतिम प्रयोग विधि, तिथि, बनने के नंबर की संख्या प्रयोग विधि एवं बनाने वाले का नाम और पता देख कर ही खरीदें.
* जैविक खाद और रासायनिक खाद को उचित मात्रा एवं तरीके से उपयोग में लाना चाहिए.
* जैविक खाद को उस की अंतिम तिथि से पहले ही उपयोग में लाएं. अंतिम तिथि निकल जाने के बाद कोई भी जीवाणु सक्रिय नहीं रहता, इसलिए अंतिम तिथि से पहले ही जीवाणु खाद का प्रयोग किया जाना चाहिए.

विशेषताएं
एसीटोबैक्टर जैविक खाद : यह जैविक खाद जीवाणु एसीटोबैक्टर डाईएजोट्रफिक्स से बनी है.
* यह जीवाणु गन्ने के अंदर रहता है और इस के सभी भागों जड़, तना और पत्ते में पाया जाता है.
* यह सामान्यत: फसल उत्पादन में 5 से 20 टन प्रति हेक्टेयर और चीनी परता में 5 से 15 फीसदी तक की वृद्धि करता है.
* इस के प्रयोग के 5 से 6 सप्ताह बाद इस का प्रभाव दिखाई देता है. यह मुख्यत: गन्ने की लंबाई और मोटाई को बढ़ाता है.

लाभ
* फसल उत्पादन को 10 से 30 फीसदी तक बढ़ाता है.
* कृत्रिम रसायनों का 25 फीसदी उपयोग कम करता है.
* पौधों की वृद्धि में सहायक है.
* मृदा की क्रियाशीलता को बढ़ाता है.
* पौधों को कीटाणुओं के प्रकोप से भी बचाता है.

प्रभावहीन होने के कारण
* जैविक खाद के प्रभावहीन जीवाणु का उपयोग.
* जीवाणु की संख्या कम होना.
* अनचाहे जीवाणुओं का ज्यादा होना.
* जीवाणु खाद को उच्च तापमान या सूरज की किरणों में रखना.
* मिट्टी में जीवाणुओं एवं वायरस का अधिक होना.
* मिट्टी का अति क्षारीय और अम्लीय होना.
* प्रयोग के समय मिट्टी में 30 डिगरी तेज तापमान अथवा कम पानी का होना.
* जीवाणु खाद को रसायनों के साथ प्रयोग नहीं करना चाहिए.

चोटी बेधक कीट
* चोटी बेधक कीट के नियंत्रण के लिए अप्रैलमई माह में कीट से ग्रसित पौधों को निकालते रहें. जून के अंतिम सप्ताह से जुलाई के प्रथम सप्ताह तक खेत में पर्याप्त नमी होने की दशा में 30 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से कार्बंडाजिम गन्ने की लाइनों में डालें.
* चोटी बेधक कीट के जैविक नियंत्रण के लिए 51,000 ट्राइकोडर्मा परजीवी प्रति हेक्टेयर की दर से जुलाई से सितंबर माह तक 15 दिन के अंतराल पर खेत में मुक्त करना चाहिए.
* जलभराव वाले क्षेत्रों में यूरिया का 5-10 फीसदी घोल बना कर छिड़काव करना लाभदायक पाया गया है.
* वर्षाकाल में 20 दिन तक वर्षा न होने पर सिंचाई अवश्य करनी चाहिए.

गन्ने के साथ अंत:फसलों का चुनाव
* अंत:खेती के लिए कम समय में पकने वाली फसलों का चुनाव करना चाहिए.
* इन में वृद्धि प्रतिस्पर्धा न हो और जिस की छाया से गन्ना फसल पर विपरीत प्रभाव न पड़ता हो.
* प्रमुख फसलें शरदकालीन गेहूं, मटर, आलू, प्याज, धनिया, लहसुन, मूली, गोभी, शलजम आदि.

 

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