पशुधन और खेती दोनों एकदूसरे पर निर्भर हैं. भारत की 70 फीसदी आबादी गांवों में रहती है और खेती के कामों से जुड़ी है. खेती के कामों में पशुओं का काफी महत्त्व है. पशुधन ने पिछले साल भारतीय सकल घरेलू उत्पाद में 4 फीसदी और कृषि सकल घरेलू उत्पाद में 21 फीसदी योगदान दिया है.
यह सच है कि पशुओं पर जलवायु का बहुत गहरा असर पड़ता है और उन के मुताबिक ही उन की शारीरिक बनावट भी होती है. ज्यादा बारिश होने वाली जगहों के पशु सूखी जगहों के अपेक्षा छोटे कद के होते हैं. इन जगहों के पशु ज्यादा सेहतमंद होते हैं जबकि कम बारिश होने वाली जगहों के पशु छोटे व कमजोर होते हैं.
स्थानीय जलवायु में बदलाव लाना तो इनसान के लिए मुमकिन नहीं है, पर वैज्ञानिक विधि को अपना कर हम अपने पशुओं की सेहत को ज्यादा सही रख सकते हैं.
पशुओं की वैज्ञानिक तरीके से देखरेख व प्रबंधन कर पशुओं को सेहतमंद रखने के लिए संतुलित भोजन, अच्छी तरह से देखभाल करना बहुत जरूरी है. धूप, ठंड और बारिश से भीगने से बचाने के लिए उन्हें पशुशालाओं में रखने की जरूरत होती है.
हमारे देश में पशुओं को अंधेरी बंद और छोटी कोठरियों में रखने का चलन है जहां न तो हवा, पानी और रोशनी का कोई पुख्ता इंतजाम होता है और न ही पशुओं द्वारा किए गए मलमूत्र को जाने के लिए कोई नाली होती है.
इतना ही नहीं, पशुओं को भीगे कच्चे फर्श पर बैठना होता है जिस से उन्हें बड़ा कष्ट होता है और वे सेहतमंद नहीं रह पाते हैं. इसलिए जरूरी है कि पशुओं के ठहरने का समुचित इंतजाम किया जाए. हर पशु के रहने के लिए खुली जगह होनी चाहिए. इस के लिए जरूरी है कि पशुशालाएं आरामदेह, साफसुथरी, खुली जगह पर हों, जिन में रोशनी और हवा आजा सके.
बारिश में खुले आंगन की कीचड़ से पशुओं को बचाने के लिए ईंट बिछवा लेनी चाहिए. पशुओं के बैठने की जगह पर कीचड़ होने से अनेक तरह की बीमारियां हो सकती हैं. रोजाना पशुशाला की साफसफाई की जाए. इस के लिए सुबहशाम दोनों समय पशुशाला साफ पानी से धो कर साफ रखनी चाहिए. पशुशाला में रोजाना फिनाइल भी डाली जानी चाहिए.
भोजन की व्यवस्था
पशुओं के खाने के लिए संतुलित भोजन की व्यवस्था करनी चाहिए. पशुओं का भोजन पौष्टिक, मुलायम, रुचिकर व साफ होना चाहिए. हरा चारा, खली, भूसा और लवण मिश्रण, नमक को सही मात्रा में देने से उन की सेहत अच्छी बनी रहती है. साथ ही, दूध भी ज्यादा देते हैं.
पशुओं को बासी या जूठा खाना नहीं खिलाना चाहिए. पशु को खिलाने के लिए दाने का मिश्रण सही अवयवों को ठीक अनुपात में मिला कर बनाना जरूरी है.
साफ पानी का प्रबंधन
पशुओं को साफ पानी पिलाएं. पानी की अहमियत इस बात से और भी साफ हो जाती है कि पशुओं के शरीर में 57 फीसदी पानी होता है.
इतना ही नहीं, पशुओं के दूध में 80 फीसदी पानी होता है. गंवई इलाकों में पशुओं को पानी पिलाने की बड़ी दिक्कत रहती है.
ज्यादातर पशु पोखरों का गंदा पानी पीते हैं. यही वजह है कि वहां के पशु तमाम बीमारियों से पीडि़त रहते हैं. आमतौर पर गांवों में साफ पानी की कमी नहीं होती लेकिन पशुपालक अपनी नासमझी के चलते पशुओं को मैला और सड़ा हुआ गंदा पानी पीने के लिए देते हैं. इस से पशुओं की सेहत पर बुरा असर पड़ता है, इसलिए पशुओं को अपनी इच्छानुसार ही हैंडपंप या कुएं का साफ पानी पीने को देना चाहिए.
खुरैरा करना
पशुओं पर खुरैरा करने पर शरीर की धूल और उखड़े बाल अलग हो जाते हैं. इस के अलावा खुरैरा करने से गायों को बड़ा आराम मिलता है और उन के शरीर में खून के दौरे की गति बढ़ जाती है, इसलिए पशुपालकों को नियमित रूप से खुरैरा करना चाहिए.
व्यायाम
पशुओं को सेहतमंद रखने के लिए उन्हें थोड़ाबहुत व्यायाम देने की बहुत जरूरत होती है लेकिन व्यायाम का यह मतलब कतई नहीं है कि उन को इधरउधर भगाया जाए. अगर गाय या भैंस हर दिन चारागाह में चरने के लिए भेजी जाती हैं तो उन का व्यायाम हो जाता है.
रोगी पशु की जांच
पशु किसी रोग से पीडि़त तो नहीं है, इस बात की जांच अच्छी तरह से कर लेनी चाहिए और जो पशु किसी भी बीमारी से पीडि़त हों उसे वहां से हटा कर उपचार करना चाहिए, वरना किसी एक पशु के भी रोगी होने पर यह बीमारी दूसरे पशुओं में बड़ी जल्दी फैल सकती है. समयसमय पर पशुओं को जरूर टीका लगवाएं.
सर्दी के मौसम में पशुओं को ठंड, ओस व कुहरे से बचाने के लिए उन्हें गरम जगह पर, छत के नीचे, फूस व छप्पर के नीचे रखना चाहिए. रात में पशुओं को कभी भी खुले में नहीं बांधना चाहिए. ठंड से बचाव के लिए फर्श पर पुआल बिछा दें. ज्यादा ठंड होने पर पशु के शरीर को गरम रखने के लिए उस के शरीर पर कपड़ा या जूट की बोरी बांध दें. पशुशाला को गरम रखने के लिए अलाव का इस्तेमाल सावधानी से करना चाहिए.
समय की पाबंदी
यह जरूरी है कि पशुओं को समय पर भोजन मिले, समय पर पानी पिलाया जाए और उस के दूध दुहने का भी एक तय समय हो. चारा खिलाने व दूध दुहने के समय में जरा सी भी देरी होने पर पशु चंचल हो उठेगा और उस के उत्पादन पर उलटा असर पड़ेगा.
जो आदमी पशु को पानी पिलाता है, चारादाना खिलाता है या उसे एक जगह से हटा कर दूसरी जगह ले जाता है, उस से वह जल्दी ही हिलमिल जाता है इसलिए बारबार ग्वालों का उलटफेर जरूरी नहीं है. यदि उन्हें हर दिन एक ही ग्वाले से दुहाया जाए तो और भी सही रहेगा. पशु को मारनापीटना भी नहीं चाहिए.