यहां जीवाणु खाद का मतलब उन सूक्ष्म जीवों से है जहां हवा में मौजूद नाइट्रोजन को अपने में इकट्ठा कर या मिट्टी में जमा फास्फोरस को घुलनशील बना कर खेत में उगाई जा रही फसल के लिए मुहैया कराते हैं. प्रयोगशाला में इन जीवाणुओं को अनुकूल भोज्य पदार्थ के साथ पैकेट में बंद कर इस्तेमाल के लिए मुहैया कराया जाता है. इन्हें जीवाणु या शाकाणु खाद कहते हैं. वर्तमान समय में जैविक खेती की तरफ रुझान बढ़ने से जीवाणु खाद का महत्त्व और भी बढ़ गया है.
जीवाणु खाद का महत्त्व
* रासायनिक खाद की उपलब्धता न सिर्फ कम है बल्कि यह महंगी भी है.
* जीवाणु खाद बनाने की प्रक्रिया न सिर्फ जल्दी होती है बल्कि इस में ऊर्जा की खपत औद्योगिक क्रिया के अनुपात में कम होती है.
* जीवाणु खाद प्रदूषणमुक्त है.
* कुदरत में होने वाली कार्बनिक क्रिया में यह मददगार होती है.
* जीवाणु खाद के इस्तेमाल में आसानी.
* भूमि की उर्वराशक्ति पर कोई बुरा असर नहीं.
* जमीन का उपजाऊपन बनाए रखती है.
जीवाणु खाद के प्रकार
* नाइट्रोजन जमा करने वाले जीवाणु.
* फास्फोरस विलेयक जीवाणु.
वायुमंडल से नाइट्रोजन इकट्ठा करने वाले जीवाणु 2 तरह के होते हैं:
असहजीवी जीवाणु
ये जीवाणु मिट्टी में मौजूद कार्बनिक पदार्थों से अपना भोजन बना कर स्वतंत्र रूप से जीवनयापन करते हैं जैसे एजोटोबैक्टर, एजोस्पाइरिलम.
एजोटोबैक्टर : गेहूं, जौ, मकई, बाजरा, धान, जई, सरसों, तोरिया, तिल, कपास, गन्ना, तंबाकू, आलू, प्याज, लहसुन, मिर्च, टमाटर, बैगन, गोभी, पपीता, अंगूर, केला वगैरह फसलों में इस्तेमाल किया जाता है.
एजोस्पाइरिलम : ज्यादा नमी वाली मिट्टियों के इस्तेमाल के लिए यह सही है. इन का इस्तेमाल गन्ना, मक्का, गेहूं व चावल में किया जाता है.