आजादी के बाद से अब तक हम ने देश में जितने भी पौधे रोपित किए, अगर उन में से  50 फीसदी भी जिंदा होते और जंगल बचाए जाते, तो हरित संपदा में हम  दुनिया में नंबर वन होते. यहां मनुष्य को खड़े होने के लिए जगह नहीं बचती.

डेढ़ 2 महीने की चुनावी कवायद के बाद देश की  सरकार बनने की आपाधापी के दरमियान 5 जून का ‘विश्व पर्यावरण दिवस’ कब दबे पांव आया और निकल लिया, यह आम अवाम को तो पता भी न‌ चला. किंतु सोशल मीडिया व दूसरे दिन के समाचारपत्रों से पता चला कि देशभर में विभिन्न संस्थाओं, सरकारी कार्यालयों में हीट वेव में भी जबरदस्त वृक्षारोपण कार्य संपन्न हुआ है.

पिछले 30 वर्षों से हम खुद पेड़ लगा रहे हैं, पर आज तक यह नहीं समझ पाए कि हमारे देश के किस विद्वान के दिमाग की उपज थी कि यहां ‘विश्व पर्यावरण दिवस’ 5 जून के दिन ही हो और इस दिन वृक्षारोपण किए जाएं, जबकि विशेषज्ञों का मत है कि असिंचित क्षेत्रों में वृक्षारोपण का आदर्श समय जुलाईअगस्त माह होना चाहिए.

अब चूंकि यह रिवाज बन गया है, इसलिए शासकीय कार्यालयों में, स्कूलों में, अधिकारी, नेता, शिक्षक, बच्चे सभी 5 जून को वृक्षारोपण कर रहे हैं, वन विभाग इस में सब से आगे है,  जबकि देश के ज्यादातर हिस्सों में अभी भी नौतपा का ताप उतरा नहीं है. कई जगहों पर लू चल रही है.

लू से बचने के तमाम तरीकों की जानकारी रखते हुए पढ़ेलिखे जानकार तमाम डाक्टर एवं दवाओं के रहते भी मौत के मुंह में समा रहे हैं. ऐसी हालत में 5 जून को लगाए गए ये नन्हे पौधे 48 घंटे भी जिंदा रह पाएंगे, यह कहना कठिन है.

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