हमारे देश में हर साल काफी बारिश होती है, फिर भी गरमियों के दिनों में खासकर सिंचाई के लिए पानी का संकट बना रहता है. इस से खेतीबारी लगातार घाटे का सौदा होती जा रही है. ऐसी हालत में किसानों के सामने एक ही रास्ता बचता है कि वे जरूरतभर बारिश का पानी किसी भी कीमत पर समय से जमा कर लिया करें.
खेतीकिसानी में पानी के संकट से जूझ रहे राजस्थान के मारवाड़ इलाके के जागरूक किसान अब लाखों रुपए की लागत से पौलीथिन बिछा कर बारिश का पानी सालभर की खेती के लिए जमा करने लगे हैं.
इसी तरह सरवाड़ खुर्द के रहने वाले 40 बीघा जमीन के युवा काश्तकार हरचरन रेबारी ने खेतों में बरसाती पानी जमा करने के लिए पौली पोंड बनाया है. गांव में अब तक ऐसे 13 तालाब बन चुके हैं. वहीं इसी साल बीकानेर जिले में गांव वालों ने ऐसे तकरीबन 1,740 तालाब बनाए हैं, जो इस बरसात के पानी से लबालब हो रहे हैं.
हरचरन रेबारी ने एक बीघा से ज्यादा के क्षेत्रफल में अपना तालाब बनाया है. वे बताते हैं कि पोक लैंड मशीन से यह डेढ़ करोड़ लिटर पानी की कूवत वाला 165 फुट लंबा, 185 फुट चौड़ा और 20 फुट गहरा तालाब महज 2 हफ्ते में बन कर तैयार हो गया. अब वे आने वाले सीजन में इस तालाब के पानी से दूसरी फसल की भी आराम से सिंचाई कर सकेंगे. वे मान कर चल रहे हैं कि रबी की एक ही फसल से इस तालाब की खुदाई की पूरी लागत निकल आएगी.
हरचरन रेबारी का कहना है कि अपने तालाब के पानी से वे 2 फसलों की भरपूर सिंचाई करने के साथ ही इस में मछलीपालन भी कर सकते हैं. साइफन विधि का इस्तेमाल कर के इस पानी से सिंचाई का काम और खेती दोनों एकसाथ हो सकेंगी.
सब से बड़ी बात यह है कि इस से किसान ट्यूबवैल आधारित बिजली या पंप के डीजल के खर्च से बच सकते हैं. एकमुश्त रकम खर्च होने के बावजूद उन के इलाके में अब बरसाती पानी जुटाने के लिए तमाम किसान तेजी से तालाब बना रहे हैं.
मालवा इलाके में हर साल गरमी आते ही जमीनी पानी का लैवल तेजी से नीचे गिरने लगता है. पानी के लिए हाहाकार मच जाता है. पहले बड़े पैमाने पर किसान बैंकों से कर्ज ले कर ट्यूबवैल से काम चलाते रहे हैं. अब जमीनी पानी का लैवल गिर जाने से सफेद हाथी हो चुके हैं.
जागरूक किसान रामधन भीचर बताते हैं कि पौली पोंड बनाने पर कुछ सरकारी सब्सिडी मिल जाने से तालाबों में पानी जुटाने की जुगत भी बड़े काम की साबित हुई है. बोरिंग सिस्टम से एक तो जरूरतभर पानी नहीं मिल रहा था, दूसरे हजारों किसान ट्यूबवैल लगाने की होड़ में कर्ज से लद गए हैं.
हम सरकार से इस पर सब्सिडी बढ़ाने की मांग कर रहे हैं. कृषि अधिकारी भी पौली पोंड बनाने के लिए बढ़ावा देने के पक्ष में हैं. मशीन और पौलीथिन पर एकमुश्त ज्यादा खर्च जरूर आ रहा है, फिर भी अब इलाके के ज्यादातर बड़े किसान तेजी से पौली पोंड बनवा रहे हैं.
30 बीघा के काश्तकार रामदयाल ने भी अपने खेत पर 60,000 वर्गफुट में पौली पोंड बना लिया है. तालाब तैयार होने में जितना पैसा खर्च हुआ, वह डेढ़ साल में ही फसल के बिकने से निकल आया. इस के बावजूद कमाई हुई सो अलग.
रामदयाल ने अपने खेत में 18 फुट गहरा तालाब खुदवाया है. वे बताते हैं कि जाड़े के दिनों में जब उन के खेत के कुएं सूखने लगते हैं तो वे उन का पानी मोटर के जरीए अपने तालाब में भर लेते हैं. तालाब की सतह पर पौलीथिन बिछा रहता है, इसलिए पानी का कम से कम वाष्पीकरण होता है. यही वजह है कि अब गरमी में भी फसल की सिंचाई के लिए उन के सामने पानी का संकट नहीं होता है.
जब लगातार पानी का संकट रहने लगा तो कुछ साल पहले रामदयाल ने एक बार सोच लिया था कि खेत बेच देंगे. उस दौरान वे सिंचाई की दिक्कत से एक फसल भी ठीक से नहीं ले पाते थे. पानी का लैवल हजार फुट नीचे चला जाता था. उन को पता चला कि पूर्वी और उत्तरी राजस्थान में किसान पौलीथिन बिछा कर अपने कृत्रिम तालाबों में काम भर पानी जुटा ले रहे हैं. उस के बाद उन्होंने अपने खेत में तालाब बना लिया. अब वे सालभर प्याज, गेहूं, तरबूज, कद्दू, बेर वगैरह की खेती कर रहे हैं.
अब रामदयाल को अपनी खेती से हर साल लाखों रुपए की कमाई हो रही है. जिस साल उन्होंने तालाब बनवाया था, उस पर कुल 2 लाख रुपए का खर्च आया था, लेकिन महज 2 साल की फसल की बिक्री से उन की 3 लाख रुपए की कमाई हो गई. इस तरह तालाब की लागत भी निकल गई और 1 लाख रुपए की बचत भी हो गई.
रामदयाल की खुशहाली को देख कर आसपास के गांवों के किसान भी बरसात का पानी जमा करने में लगे हैं. उन के इलाकों में ऐसे 2 दर्जन किसानों ने बारिश का पानी जुटा लिया है. उन के भी तालाब बारिश के पानी से लबालब हो चुके हैं, जिस से वे आने वाली गरमियों तक अपनी फसलों की आराम से सिंचाई कर लेंगे.