राज मूंग (रैडबीन) यानी मोठ की खेती छत्तीसगढ़ के सरगुजा संभाग में की जाती है. आदिवासी इलाकों की यह एक दलहनी फसल है. यह फसल नेपाल में काफी प्रचलित है. यह अमान्य व अनुपजाऊ जमीन में मक्का और दूसरी दलहनी फसलों के साथ खेती करने के लिए काफी उपयोगी है.

अधिकतम पैदावार कूवत, पोषक तत्त्वों की मौजूदगी, कीटव्याधियों के प्रति सहनशील, हरी खाद, चारे वगैरह के रूप में इस का इस्तेमाल किया जाता है. यह खरीफ व ग्रीष्म में अकेले या मिश्रित खेती के रूप में उगाई जाती है.

राज मूंग की हर 100 ग्राम मात्रा में नमी 10.8 ग्राम, प्रोटीन 18.6 ग्राम, वसा 1.4 ग्राम, क्रूड फाइबर 1.0 ग्राम और ऊर्जा 332 किलोग्राम कैलोरी पाई जाती है. दाने के साथसाथ फसल की पत्तियों और तनों से सही मात्रा में भूसा मिलता है जो जानवरों के चारे के रूप में इस्तेमाल किया जाता है.

पौधों की जड़ों में जो गं्रथियां पाई जाती हैं जिन में राइजोबियम फेसीओलाई नामक जीवाणु पाए जाते हैं, ये वायुमंडल की नाइट्रोजन को इकट्ठा करते हैं जिस का इस्तेमाल आगामी फसल में किया जाता है.

शुष्क खेती के लिए यह विकल्प के रूप में अच्छी दलहन है. राज मूंग की दाल और आटे से विभिन्न प्रकार के खाने जैसे सूप, दाल, सब्जी, खिचड़ी, इडली, डोसा, पापड़, स्नैक्स वगैरह बनाने में होता है.

क्षेत्रफल और जलवायु

यह फसल गरम, आर्द्र व उष्ण कटिबंधीय पहाड़ी और मैदानी इलाकों में उगाई जाती है. इस की खेती के लिए ज्यादा बारिश नुकसानदायक है. यह फसल 1000 से 1500 मिलीमीटर बारिश और 25-30 डिगरी सैंटीग्रेड तापमान और 2000 मीटर समुद्र तल से ऊंचाई वाले इलाकों में आसानी से ली जा सकती है.

जमीन : दोमट और हलकी दोमट मिट्टी राज मूंग की खेती के लिए अच्छी होती है. खेत में बोआई के लिए एक जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करें और 1-2 जुताइयां देशी हल से करनी चाहिए.

लवणीय जमीन राज मूंग की खेती के लिए सही नहीं होती है. जमीन का पीएच मान 6.5-7.5 अच्छा माना गया है. यह बारिश आधारित सूखे व पहाड़ी ढलानी इलाकों में इस की खेती की जा सकती है. इस की मिश्रित खेती मक्का फसल के साथ भी की जा सकती है.

बोआई का समय : जुलाई के पहले हफ्ते तक इस की बोआई कर देनी चाहिए. आमतौर पर किसान छिड़कवां विधि से बोते हैं. पंक्ति में सीड ड्रिल या हल के पीछे बोने से ज्यादा पैदावार मिलती है. लाइन से लाइन की दूरी 30 से 40 सैंटीमीटर और पौधे से पौधे की दूरी 8 से 10 सैंटीमीटर रखी जाती है.

बीज दर : प्रति हेक्टेयर 20 किलोग्राम बीज पर्याप्त होता है. इसे थाइरम 2-3 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज द्वारा उपचारित करने के बाद राइजोबियम कल्चर का इस्तेमाल करना चाहिए. इस की बीज परत कठोर होती है इसलिए बोने से पहले रात में पानी में फुला कर अगले दिन इस की बोआई करनी चाहिए.

उर्वरक प्रबंधन : राज मूंग एक दलहनी फसल है. इस फसल में नाइट्रोजन की कम जरूरत पड़ती है, फिर भी 20 किलोग्राम नाइट्रोजन, 40 किलोग्राम सुपर फास्फेट और 20 किलोग्राम पोटाश बोआई के समय इस्तेमाल करना चाहिए या डीएपी 1 क्विंटल प्रति हेक्टेयर काफी होगा.

खरपतवार पर नियंत्रण : पहली निराई बोआई के 20 से 25 दिन के अंदर कर देनी चाहिए और दूसरी निराई जरूरत पड़ने पर करनी चाहिए. पेंडीमिथेलीन 30 ईसी 3 लिटर प्रति हेक्टेयर की दर से 800-1000 लिटर पानी में घोल कर बोआई के 2 दिन के भीतर छिड़काव कर के खरतपवारों को खत्म किया जा सकता है.

सिंचाई सुरक्षा : बरसात के मौसम में लंबी अवधि तक पानी न बरसे तो बीच में 1-2 सिंचाई की जरूरत पड़ सकती है.

फसल सुरक्षा : फलीछेदक, सफेद मक्खी, एफिड, टिड्डा वगैरह फसल को काफी नुकसान पहुंचाते हैं. फलीछेदक की रोकथाम के लिए इमिडाक्लोरोपिड 1 ग्राम प्रति लिटर पानी में और सफेद मक्खी व टिड्डा को मारने के लिए डाईमिथोएट 0.03 फीसदी का छिड़काव करना चाहिए.

इस फसल में बहुत से रोग लगते हैं, पर लीफ स्पौट, रस्ट, पाउडरी मिल्ड्यू और बैक्टीरियल ब्लाइट की संभावना पहाड़ी इलाकों में बनी रहती है.

रस्ट की रोकथाम के लिए इंडोफिल 3 ग्राम प्रति लिटर पानी में मिला कर, पाउडरी मिल्ड्यू की रोकथाम के लिए कार्बंडाजिम 0.5 ग्राम प्रति लिटर पानी में मिला कर छिड़काव कर सकते हैं. बैक्टीरियल ब्लाइट के लिए बाविस्टीन 3 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज में मिला कर बोना चाहिए.

फलियों की तुड़ाई और कटाई : जब 50 फीसदी फलियां पक जाएं तब पहली तुड़ाई कर लेनी चाहिए. पूरी तरह से फलियों के पकने पर तोड़ लिया जाना चाहिए.

आमतौर पर फसल 120 से 150 दिन में पक कर कटने लायक हो जाती है. ज्यादा ऊंचाई वाले इलाकों में ज्यादा दिन का समय लग सकता है. फसल को काट कर जमीन में मिला दिया जाए ताकि पौध खाद का काम करे और जमीन में जीवांश को बढ़ाए.

फलियों को साफसुथरे खलिहान में मड़ाई कर के दाना निकाल लें. जब दानों में 10 फीसदी नमी रह जाए तब भंडारण करें.

भंडारण में कीटों की रोकथाम के लिए एल्युमिनियम फास्फाइड 3 गोली प्रति टन की दर से इस्तेमाल में लानी चाहिए.

उपज : राज मूंग की पैदावार तकरीबन 9-13 क्विंटल प्रति हेक्टेयर आंकी गई है.

वर्तमान में राजमोहिनी देवी कृषि महाविद्यालय एवं अनुसंधान केंद्र, अंबिकापुर में इस की विभिन्न किस्मों पर काम जारी है. इस केंद्र में अनेक इलाकों के लिए भी कुछ किस्में तैयार की जा रही हैं.

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