अपने पोषण के लिए मक्का जमीन से बहुत ज्यादा तत्त्व लेती है. जैविक खेती के लिए खेत में जीवाणुओं के लिए खास हालात का होना बहुत जरूरी है. मुख्य फसल से पहले दाल वाली फसल या हरी खाद जैसे ढैंचा, मूंग आदि लेनी चाहिए और बाद में इन फसलों को खेत में अच्छी तरह मिला दें.
खेत तैयार करने के लिए 12 सैंटीमीटर से 15 सैंटीमीटर गहराई तक खूब जुताई करें, ताकि सतह के जीवांश, पहली फसल के अवशेष, पत्तियां आदि और हरी खाद कंपोस्ट नीचे दब जाएं.
इस के लिए मिट्टी पलटने वाले हल से एक गहरी जुताई करनी चाहिए. इस के बाद 4-5 जुताई कर के 2 बार सुहागा लगाना चाहिए. ऐसा करने से उस में घासफूस नष्ट हो जाते हैं और मिट्टी भुरभुरी हो जाती है. आखिरी जुताई से पहले खेत में 100 किलोग्राम घन जीवामृत खाद डालें व अच्छी तरह से मिला दें.
बीज की मात्रा व बिजाई का तरीका
समतल भूमि पर बिजाई के बजाय मेंड़ों पर बिजाई करना फायदेमंद रहता है. मेंड़ों पर बिजाई करने से फसल का सर्दी से बचाव रहता है व अंकुरण भी जल्दी होता है.
मेंड़ पूर्व से पश्चिम दिशा में बनाएं. बीज मेंड़ पर दक्षिण दिशा की ओर 5-6 सैंटीमीटर गहरा बोएं और समतल बिजाई में 3-4 सैंटीमीटर गहरा बोएं. ऐसा करने से जमाव ज्यादा और जल्दी होगा.
आमतौर पर साधारण मक्का व उच्च गुणवत्ता मक्का के लिए 8 किलोग्राम, शिशु मक्का के लिए 12 किलोग्राम व मधु मक्का के लिए 3-5 किलोग्राम बीज प्रति एकड़ काफी होता है. बिजाई के लिए प्लांटर का इस्तेमाल करना चाहिए.
बीजोपचार
जैविक प्रबंधन में केवल समस्याग्रस्त क्षेत्रों/अवस्था में बचाव के उपाय किए जाते हैं. रोगरहित बीज व प्रतिरोधी प्रजातियों का प्रयोग सब से बढि़या विकल्प है. बीजजनित रोगों से बचाव के लिए बीजामृत से बीजोपचार बहुत जरूरी है. शाम को 8 किलोग्राम बीज को किसी ड्रम में लें या तिरपाल पर बिछा कर उस में 800 मिलीलिटर बीजामृत मिलाएं. बीज को हथेलियों के बीच लें व अच्छी तरह दबा कर उपचारित करें. रातभर सूखने दें व सुबह बिजाई करें.