हमारे देश में महिला किसानों और खेत में काम करने वाली महिलाओं की संख्या पर अगर गौर करें, तो इन की कुल संख्या  84 फीसदी है. लेकिन मुख्य धारा की मीडिया में इन महिला किसानों की चर्चा बहुत कम होती है या कह लिया जाए कि न के बराबर होती है, जबकि देश में मुट्ठीभर बिजनैस वुमन की खबरें अकसर मीडिया के जरीए हम लोगों के सामने आती रहती हैं.

 

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यह अफसोस की बात है कि जलवायु परिवर्तन के इस दौर में भी कड़ी धूप या कह लिया जाए, 45 से 50 डिगरी सैल्सियस से भी अधिक के तापमान में खेतों में काम कर के, तेज बारिश में फसल की रोपाई कर फसल को बचाने और फसल उगाने की जद्दोजेहद करती महिलाओं की कहानियां लोगों के सामने न के बराबर आ पाती हैं, जबकि ये महिलाएं खेत तैयार करने से ले कर फसल की बोआई, रोपाई, मड़ाई और भंडारण में बड़ी भूमिका में होती हैं.

देश में कई ऐसी महिला किसान हैं, जो बड़े कारपोरेट और बिजनैस घरानों की महिलाओं को भी पीछे छोड़ती नजर आती हैं. उन्हीं महिला किसानों में एक नाम है 10वीं पास संतोष देवी खेदड़ का, जो सीकर झुंझनु  राष्ट्रीय राजमार्ग से सटे बेरी गांव में रहते हुए महज सवा एकड़ खेत से साल का 30 लाख रुपए मुनाफा कमा रही हैं.

सवा एकड़ खेत से सवा लाख रुपए कमाने की बात हो सकती है. पहली बार सुन कर कुछ अटपटा लगे, लेकिन जब आप उन की खेती की तकनीकी के बारे में जानेंगे, तो आप खुद संतोष देवी के जज्बे को बिना सलाम किए नहीं रहेंगे.

हालात से नहीं मानी हार

संतोष देवी की शादी महज 15 साल की उम्र में साल 1990 में राजस्थान के सीकर जिले के बेरी गांव में एक संयुक्त परिवार में रामकरण खदेड़ से हो गई थी. मन में कई सपने ले कर आई संतोष देवी का शुरुआती दौर तो बहुत अच्छा रहा, क्योंकि उन के पति के दोनों भाई एकसाथ थे और वे खेती में रुचि रखती थीं. ऐसे में वे अपना खाली समय खेतों में दे कर अपने खेती के शौक को पूरा करती रहीं.

लेकिन साल 2008 में जब 2 भाइयों की नौकरी लग गई, तो भाइयों ने बंटवारा कर लिया, जिस से उन की माली हालत खराब होने लगी थी, क्योंकि उन के पति रामकरण खेदड़ 3,000 रुपए की मामूली तनख्वाह पर होमगार्ड की नौकरी कर रहे थे, जिस से उन का परिवार चलाना मुश्किल हो गया था.

जब बंटवारे से पहले रामकरण और उन की पत्नी संतोष देवी 5 एकड़ के पुश्तैनी खेत में काम करते थे, तब भी उन की मुश्किल से ही इतनी आमदनी होती थी कि वे परिवार चला पाएं. बंटवारे के बाद अब तो उन के पास केवल सवा एकड़ बंजर जमीन बची थी, जिस पर खेती किया जाना मुश्किल काम था.

संतोष देवी ने इन मुश्किल हालात में भी हार नहीं मानी और अपनी सवा एकड़ बंजर जमीन पर ही खेती करने का फैसला कर लिया. उन्होंने यह बात अपने पति रामकरण को बताई, तो उन्होंने सवा एकड़ बंजर जमीन में खेती किया जाना मुश्किल बताया, लेकिन पत्नी संतोष देवी की जिद को देखते हुए उन्होंने खेती करने की हामी भर दी.

अब तो संतोष देवी ने ठान लिया था कि उन के पास भले ही सवा एकड़ बंजर जमीन है, लेकिन वह इसी बंजर जमीन को उपजाऊ बना कर एक दिन दुनिया के सामने मिसाल बन कर सामने आएंगी.

रामकरण खदेड़ परिवार चलाने के लिए अब और भी मेहनत करने लगे थे, जबकि संतोष देवी अपने हिस्से में आई सवा एकड़ जमीन को उपजाऊ बनाने में लग गई थीं. उन्होंने सब से पहले खेत से खरपतवार साफ किए और मिट्टी में रासायनिक खाद डालना बंद कर जैविक खाद डालना शुरू कर दिया. इधर पत्नी संतोष देवी की खेती में ललक देख उन के पति रामकरण भी अपनी नौकरी के बाद खेत में हाथ बंटाने लगे थे.

किसान संतोष देवी (Farmer Santosh Devi)

सिंदूरी अनार की खेती

संतोष देवी ने अपने संपर्क में आने वाले सभी लोगों से चर्चा की कि कोई उन्हें ऐसी खेती बताए, जिस से कम जमीन में ही अधिक मुनाफा लिया जा सके. इस दौरान उन की मुलाकात सीकर जिले के एक कृषि अधिकारी से हो गई.

उस कृषि अधिकारी नें संतोष देवी के पति रामकरण को यह सलाह दी कि अगर उस जमीन में अनार उगाया जाए, तो काफी आमदनी हो सकती है. चूंकि उस दौर में अनार का बाजार रेट बहुत अच्छा था, इसलिए उस अधिकारी की बात संतोष देवी को जम गई.

संतोष देवी ने अधिकारी की सलाह मान कर साल 2008 में 8,000 रुपए में अनार की सिंदूरी किस्म के 220 पौधे खरीदे. इस में से कुछ राशि उद्यान महकमे से सब्सिडी के रूप में मिल गई थी.

संतोष देवी जहां अनार की खेती कर रही थीं, वह इलाका रेतीला और पानी की बेहद कमी वाला है. ऐसे में पौधों को पानी देने की समस्या उन के सामने मुंहबाए खड़ी थी. उन्हें पौधों को पानी देने के लिए नलकूप की जरूरत थी, लेकिन उस के लिए उन के पास पैसे नहीं थे, इसलिए उन्होंने अपनी एकमात्र भैंस बेच कर नलकूप लगाने का फैसला कर लिया.

संतोष देवी ने अपनी भैंस बेच कर नलकूप तो लगवा लिया, लेकिन खेतों में बिजली नहीं आई थी. ऐसे में उन्होंने नलकूप चलाने के लिए उसे जनरेटर से कनैक्ट कर दिया, जिस से उन के अनार के पौधों को नियमित रूप से पानी मिलने लगा था.

आखिरकार वह समय भी आ गया, जब संतोष देवी की मेहनत रंग लाई. पौध रोपने के 3 साल बाद यानी साल 2011 में उन के अनार के पौधे फल देने लगे.

संतोष देवी द्वारा रोपी गई अनार की इस किस्म का फल जैविक खेती के चलते दूसरी किस्मों से एकदम अलग था. फिर भी जब उन्होंने पहली बार फलों को बाजार भेजा, तो दुकानदारों ने काफी कम रेट लगाया. ऐसे में संतोष देवी ने अनार के फलों को बिचौलियों को न बेच कर खुद ही मार्केटिंग करने का फैसला किया.

इस के लिए संतोष देवी ने अपने पति रामकरण खदेड़ के जरीए फलों को सभी अधिकारियों, शोरूम मालिकों और हरसंभव व्यक्ति के पास चखने के लिए भेजा. उन के खेत में उगाए गए अनार बाजार में उपलब्ध अनारों से बड़े और मीठे थे, जिस से जो भी उन के अनार को एक बार चखता, वह उन का नियमित ग्राहक बनता गया.

मां से सीखी थी खेतीबारी

राजस्थान के रेतीले इलाके में बागबानी में सफल होने के बारे में जब संतोष देवी से पूछा गया, तो उन्होंने बताया कि वे झुंझनु जिले के कलसिया गांव में एक किसान परिवार में जनमी थीं. उन के मन में खेती का शौक तो बचपन से ही आ गया था. लेकिन पिता की दिल्ली पुलिस में नौकरी लगने पर वे अपने परिवार के साथ वहां चली गईं. लेकिन उन का मन दिल्ली में नहीं लग रहा था, इसलिए वे अपने पिता से गांव वापस जाने की जिद करने लगीं.

संतोष देवी ने बताया, ‘‘पिता चाहते थे कि मैं दिल्ली में रह कर पढ़ूं, लेकिन मुझे गांव में रहना ज्यादा पसंद था, इसलिए उन की अनुमति के बाद मैं मां के साथ अपने गांव आ कर अपने पुश्तैनी 10 एकड़ में काम कर महज 12 साल की उम्र में ही खेती से जुड़ी बारीकियां सीख ली थीं, जो शादी के बाद मेरी कामयाबी का कारण बन गया.’’

पानी की अहमियत

यह बात सब जानते हैं कि रेतीली भूमि वाले राजस्थान में पीने के पानी की किल्लत है. ऐसे में संतोष देवी के लिए बागबानी के लिए भरपूर मात्रा में पानी की उपलब्धता एक चुनौती ही थी. वह अपने खेत में पानी की एक बूंद भी जाया नहीं जाने देना चाहती हैं, इसलिए उन्होंने सोलर पंप के साथ ड्रिप तकनीक को जोड़ा और पानी की बूंदबूंद का उपयोग अपने रोपे गए पौधों में किया.

इस के लिए संतोष देवी पौधों के चारों ओर 3 फुट की परिधि बना कर ड्रिप सिंचाई करती हैं, जिस से मिट्टी लंबे समय तक नम बनी रहती है. इस के अलावा उन के द्वारा की जा रही जैविक खेती भी मिट्टी की नमी बनाए रखने में मददगार साबित हो रही है.

पौधों से अधिक फलत

संतोष देवी अपने फलदार पौधों से अधिक फलत लेने के लिए लेयर कटिंग तकनीक अपनाती हैं. इस के लिए जब फल लगने शुरू हो जाते हैं, तो वे सिर्फ एक फुट की बची हुई नई शाखाओं को काट कर अलग कर देती हैं, जिस से पौधे को दिया जाने वाला पोषण फलों को मिलता है.

संतोष देवी पौधों की नियमित रूप से छंटाई करती रहती हैं, जिस से पौधे से बेहतर और भारी फल आते हैं. वह जैविक कीटनाशकों में गुड़ भी मिलाती हैं. यह तकनीक मधुमक्खियों को फूलों की ओर आकर्षित करती है और इस तरह परागण अधिक होता है. साथ ही, जैविक खादों के निरंतर उपयोग से मिट्टी उपजाऊ हो गई और अधिक केंचुए भी आ गए. उन्होंने जैविक खाद बनाने के लिए देशी नस्ल की गाएं भी पाल रखी हैं, जिन के गोबर और मूत्र से जैविक खाद तैयार करती हैं.

इन फलदार पौधों को उगाने में भी पाई सफलता

संतोष देवी ने शुरुआत में अपने खेत में अनार के पौधों को 15×15 की दूरी पर रोपा था, लेकिन नियमित प्रूनिंग के चलते बीच की जमीनें खाली छूट जाती थीं. ऐसे में उन्होंने जमीन की एकएक इंच का उपयोग करने का फैसला किया और अनार के बीच खाली पड़ी जमीनों पर बादाम, आडू, सेब, बादाम, नीबू, किन्नू, बेल आदि के पौधे भी लगाए. अब इन सभी फलदार पौधों से व्यावसायिक उत्पादन मिलने लगा है.

संतोष देवी बताती हैं कि आने वाले समय में उन की आमदनी में और भी अधिक इजाफा होने वाला है.

गरम इलाके में सेब की खेती

संतोष देवी राजस्थान के उस इलाके में सेब की खेती कर रही हैं, जहां का तापमान अकसर 45 से 50 डिगरी सैल्सियस के करीब रहता है. उन्होंने अपने अनार के पौधों के बीच में पहली बार भारत सरकार के नैशनल इनोवेशन फाउंडेशन द्वारा उपलब्ध कराए गए हिमाचल प्रदेश के हरमन शर्मा द्वारा गरम इलाकों के लिए ईजाद की गई सेब की नई किस्म एचआरएमएन-99 के पौधों को रोपा था.

संतोष देवी के यहां सेब के इन पौधों को ट्रायल के तौर पर लगाया गया था. इस के अलावा भी सेब की एचआरएमएन-99 किस्म को देश के अलगअलग इलाकों में ट्रायल के तौर पर लगाया गया. लेकिन संतोष देवी के यहां सेब की खेती सब से सफल रहीं.

संतोष देवी बताती हैं कि उन के यहां रोपे गए सेब के पौधों में फलत तो जबरदस्त आई है. साथ ही, सेब का रंग भी खूब खिल कर आया, जबकि अन्य जगहों पर रोपे गए सेब में इस तरह के रंग नहीं आ पाए थे.

कभी केवल ठंडे प्रदेशों में उगाए जाने वाले सेब की खेती को गरम इलाकों में सफलतापूर्वक उगाए जाने के बाद संतोष देवी का उत्साह कई गुना बढ़ गया और उन्होंने खुद ही उन्हीं पौधों की कटिंग से नए पौधे तैयार कर डाले.

संतोष देवी ने इन तैयार पौधों को अपने अनार के पौधों के बीच रोपा, तो अगले साल ही उन पौधों में फूल आने शुरू हो चुके थे. लेकिन उन्होंने पौधों की उम्र को देखते हुए उस साल फलत लेना उचित नहीं समझा , इसलिए उन्होंने इन पौधों से तीसरे साल से फलत लेना शुरू किया.

इस बार संतोष देवी के सेब के इन पौधों के फल कम लाल हुए, लेकिन जब यह पौधे 3 साल की उम्र पूरी कर चुके और इस में उन्होंने अगली फलत ली, तो जून के अंत में जब फल पकने शुरू हुए, तो फलों का रंग गाढ़ा लाल होने लगा और पूरी तरह से पकने पर उन के द्वारा रेत में रोपे गए सेब के फल न केवल लाल हो गए, बल्कि इन की मिठास भी ठंडे प्रदेशों में उगाए जाने वाले सेब की किस्मों से बेहतर रही.

इस के बाद संतोष देवी के उत्साह का ठिकाना न रहा. उन्होंने अपने बाग में खाली पड़ी जगह पर सेब के नए पौधे रोपे और उन्हीं सेब के नए पौधे भी तैयार करना शुरू कर दिया. धीरेधीरे जब लोगों को मीडिया में छपी खबरों के जरीए राजस्थान के रेत में सेब की सफल खेती की जानकारी मिली, तो लोग इन के खेत को देख कर सेब के पौधों की डिमांड भी करने लगे.

संतोष देवी अपने ‘शेखावटी नर्सरी’ के जरीए हर साल तकरीबन 25,000 पौधे तैयार कर बेचती हैं. इस के चलते आज राजस्थान के तमाम हिस्सों में किसान सेब की सफल खेती कर अपनी आमदनी बढ़ाने में कामयाब रहे हैं.

किसान संतोष देवी (Farmer Santosh Devi)

खुद की शुरू की नर्सरी

संतोष देवी की इस सफलता में उन के पति रामकरण खेदड़, बेटे राहुल और दोनों बेटियां कदम से कदम मिला कर चल रहे थे. संतोष देवी बागबानी में मिली सफलता से काफी उत्साहित थीं, जिस से उन्हें काफी आमदनी हो रही थी. पानी की किल्लत वाले राजस्थान में बागबानी की सफलता की चर्चा पूरे देश में होने लगी थी, जिस के चलते अब लोग उन के खेतों में उगाए गए अनार सहित दूसरे फलों की सफल खेती देखने आ रहे थे और उन के द्वारा उगाई गई किस्मों की मांग भी करने लगे थे.

पौधों की ज्यादा मांग को देखते हुए संतोष देवी ने परिवार के साथ मिल कर यह निर्णय लिया कि वह खुद के खेतों में उगाए जा रहे सिंदूरी अनार की किस्म के पौधे तैयार कर अब दूसरे किसानों को भी मुहैया कराएंगी, क्योंकि इस किस्म के फल दूसरी किस्मों से वजन में अधिक होने के साथ ही अधिक फलत देने वाले होते हैं.

इस के बाद परिवार के साथ मिल कर उन्होंने साल 2013 में ‘शेखावटी कृषि फार्म एवं उद्यान नर्सरी’ की शुरुआत की. पौधों की नर्सरी शुरू होते ही उन के यहां किसानों की भीड़ बढ़नी शुरू हो गई. अब हर दिन सैकड़ों की तादाद में दूरदूर से बागबान इन के यहां पौधों की खरीदारी के लिए आते हैं और जरूरत के पौधे खरीद कर ले जाते हैं.

साल 2013 में अनार के पौधों की नर्सरी से शुरू किए गए उन की नर्सरी से हर साल लाखों की संख्या में फलदार पौधों की बिक्री हो जाती है. वे नर्सरी में ज्यादातर वही पौध तैयार करती हैं, जिन के उन्होंने मदर प्लांट लगा रखे हैं.

संतोष देवी के यहां अनार, सेब, किन्नू, मौसंबी, आम, अमरूद, बेर, खेजड़ी, कटहल, जामुन, नीबू, चीकू आदि की कई उन्नत किस्में तैयार करते हैं, जिस में संतोष देवी के काम में उन का पूरा परिवार मदद कर रहा है.

मिल गया लाइसैंस

संतोष देवी अपने खेतों में किसी तरह की रासायानिक खाद और उर्वरकों का उपयोग नहीं करती हैं. साथ ही, पौधों में कीट व बीमारियों के नियंत्रण के लिए वह खुद के द्वारा तैयार जैव कीटनाशकों का उपयोग करती हैं.

खेत और नर्सरी में किए जैविक तरीकों का राजस्थान राज्य सरकार जैविक प्रमाणीकरण संस्थान  द्वारा किया गया है, जबकि उन के द्वारा नर्सरी में जिन फलों के पौध तैयार किए जाते हैं, उस की गुणवत्ता का सत्यापन राष्ट्रीय बागबानी बोर्ड द्वारा भी किया गया है. ऐसे में संतोष देवी द्वारा स्थापित ‘शेखावटी कृषि फार्म एवं उद्यान नर्सरी’ राष्ट्रीय बागबानी बोर्ड द्वारा लाइसैंसप्राप्त और पंजीकृत है. यहां से पौधे की खरीद करने वाले किसान राज्य और केंद्र सरकार की अनुदान योजनाओं का लाभ भी ले सकते हैं.

बच्चों को दिलाई कृषि शिक्षा

संतोष देवी बागबानी और नर्सरी में मिली सफलता से यह बात अच्छी तरह समझ चुकी हैं कि अगर खेती में तकनीकी और उन्नत जानकारी का उपयोग किया जाए, तो कम जमीन से भी इतनी आमदनी की जा सकती है, जो बड़ी सरकारी नौकरियों को भी पीछे छोड़ सकती है.

उन्होंने इस बात को ध्यान में रख कर अपनी दोनों बेटियों और बेटे राहुल को कृषि विषय में ग्रेजुएट कराया. इस का फायदा यह हुआ कि उन के बच्चे फसल में सिंचाई प्रबंधन, कीट और बीमारियों के प्रबंधन को वैज्ञानिक तरीके से करने में मदद करने लगे. इस के चलते संतोष देवी द्वारा उगाए जा रहे अनार, आम, सेब, किन्नू, नीबू जैसे फलदार पौधों को हर तरह के जोखिम से बचाने में कामयाब रही हैं.

आज संतोष देवी की बड़ी बेटी शादी के बाद अपने ससुराल में खुद बागबानी से आमदनी कर रही हैं, तो दूसरी बेटी कृषि के क्षेत्र में नौकरी कर रही हैं, जबकि बेटा राहुल परिवार के साथ ‘शेखावटी फार्म’ में नर्सरी और बागबानी के बिजनैस में मार्केटिंग और प्रबंधन का काम संभाल रहा है.

उपहार में दिए पौधे

संतोष देवी ने अपनी दोनों बेटियों और बेटे राहुल को अपने साथ खेती में पूरी तरह रचाबसा दिया है. इसी का परिणाम है कि उन के बच्चे बागबानी से जुड़े हर काम में बखूबी माहिर हो चुके हैं.

संतोष देवी ने साल 2017 में जब कृषि ग्रेजुएट बड़ी बेटी की शादी की, तो उन्होंने बरात में आए सभी बरातियों को 2 नीबू और एक मौसंबी के पौधे उपहार में दिए. साथ ही, अपने बेटी और दामाद को 551 फलों के पौधे उपहार में देते हुए यह कहा कि जिस तरह उन्होंने खुद बागबानी कर एक मुकाम हासिल किया है, उसी तरह वे भी अपने ससुराल में जा कर इन पौधों को रोप कर बागबानी के जरीए अपनी किस्मत चमका सकते हैं.

संतोष देवी की बड़ी बेटी, जो कृषि विषय में ग्रेजुएट है, उन्होंने अपनी मां संतोष देवी की बातों को गांठ बांध कर उपहार में दिए पौधे ससुराल में आ कर रोपे और आज वह मां के उपहार में दिए पौधे और संतोष देवी के साथ रह कर सीखे बागबानी के गुणों का उपयोग कर अच्छी आमदनी करने में सफल हैं.

पुरस्कार और सम्मान

संतोष देवी की महज सवा एकड़ रेतीली जमीन से साल में 30 लाख रुपए मुनाफा कमाने की बात जब कृषि, बागबानी और अन्य महकमों के साथ सरकार को पता चली, तो लोग इन के इस सफल मौडल को देखने आने लगे और उन के द्वारा अपनाई जा रही विधि को दूसरे किसानों को भी अपनाए जाने के लिए प्रेरित करना शुरू किया.

संतोष देवी की खेती में लगन को देखते हुए उन्हें तमाम मंचों पर अनुभव साँझा करने के लिए बुलाया जाने लगा और सम्मानित भी किया जाने लगा. बीते सालों में उन्हें ब्लौक, जिला, राज्य और नैशनल लैवल पर कई बड़े पुरस्कारों से नवाजा जा चुका है.

साल 2016 में संतोष देवी द्वारा खेती और बागबानी में लिखी जा रही नई इबारत के लिए ‘कृषि मंत्र पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया था. यह पुरस्कार उन्हें ‘सिंदूरी अनार’ के बेहतरीन उत्पादन के लिए तत्कालीन केंद्रीय मंत्री वेंकैया नायडू द्वारा एक लाख का नकद पुरस्कार प्रदान किया गया था.

इस के अलावा जैविक खेती राज्य स्तरीय पुरस्कार, केशवानंद कृषि विश्वविद्यालय द्वारा सम्मान, भारतीय किसान संघ द्वारा किसान वैज्ञानिक सम्मान, साल 2019 में अंतर्राष्ट्रीय विज्ञान महोत्सव कोलकाता में सम्मान प्रदान किए जाने के साथ ही सैकड़ों पुरस्कार मिल चुके हैं.

किसान संतोष देवी (Farmer Santosh Devi)

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली भारत सरकार द्वारा भी संतोष देवी को 6 जून, 2024 को साल 2024 के लिए इनोवेटिव फार्मर अवार्ड मिल चुका है.

साल की कमाई

संतोष देवी ने जब खेती की शुरुआत की थी, तब उन के पति रामकरण खदेड़ के पास महज 3,000 रुपए ही थे, लेकिन आज उसी 3,000 रुपए से शुरू की गई खेती से वह तकरीबन 30 लाख रुपए की आमदनी करने में कामयाब रही हैं.

वे अपने बाग में अनार, मौसंबी, किन्नू, सेब से तकरीबन 10 लाख रुपए की आमदनी कर लेती हैं, जबकि नर्सरी में तैयार फलदार पौधों को बेच कर तकरीबन 20 लाख रुपए की आमदनी हो जाती है. इस तरह वे साल के 30 लाख रुपए मुनाफे के रूप में कमाती हैं.

वैबसाइट से पहुंच हुई आसान

पति रामकरण खदेड़ अब होमगार्ड की नौकरी छोड़ अपनी पत्नी संतोष देवी के साथ बागबानी में हाथ बंटाते हैं, जब कि उन के बेटे राहुल अपनी कृषि के पढ़ाई का उपयोग मां द्वारा शुरू की गई बागबानी को आगे बढ़ाने में कर रहे हैं.

उन्होंने नर्सरी में तैयार होने वाले पौधों से जुड़ी पूरी जानकारी के लिए खुद की वैबसाइट ‘शेखावटी कृषि फार्म एवं उद्यान नर्सरी’ https://shekhawatikrishifarm.com  भी बना रखी है, जिस पर पौधों की उपलब्धता से ले कर उस के गुण, लगाने के तरीके, पौधों के रेट सहित सभी जरूरी जानकारी साँझा की गई है.

संतोष देवी फेसबुक और यूट्यूब के जरीए खेती के अनुभवों को नियमित रूप से साँझा  करती रहती हैं, जिस का फायदा देश के तमाम हिस्सों के किसान भी उठा रहे हैं.

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