आम (Mango) के प्रमुख कीट, रोग और उन की रोकथाम

भारत दुनिया के सब से बड़े आम निर्यातक देशों में से है लेकिन पिछले कुछ सालों में अंतर्राष्ट्रीय बाजार में निर्यात को गहरा धक्का लगा है. वजह थी, भारतीय आम में कीटनाशक की बहुत ज्यादा मात्रा का पाया जाना.

कीटनाशक के बहुत ज्यादा इस्तेमाल से निबटने का अव्वल तरीका यह है कि सही समय पर ही कीट की पहचान कर कीटनाशक या दूसरे तरीकों से उस से निबटा जाए. कीट की समस्या गंभीर होने और फिर कीटनाशक के छिड़काव से बचा जाए.

गुठली का घुन (स्टोन बीविल) : यह कीट घुन वाली इल्ली की तरह होता है जो आम की गुठली में छेद कर के घुस जाता है और उस के अंदर अपना भोजन बनाता रहता है. कुछ दिनों बाद ये गूदे में पहुंच जाता है और उसे नुकसान पहुंचाता है. इस की वजह से कुछ देशों ने इस कीट से ग्रसित बागों से आम का आयात पूरी तरह से प्रतिबंधित कर दिया था.

रोकथाम : इस कीड़े को नियंत्रित करना थोड़ा कठिन होता है इसलिए जिस भी पेड़ से फल नीचे गिरे, उस पेड़ की सूखी पत्तियों और शाखाओं को नष्ट कर देना चाहिए. इस से कुछ हद तक कीड़े की रोकथाम हो जाती है.

जाला कीट (टैंट केटरपिलर) : शुरुआती अवस्था में यह कीट पत्तियों की ऊपरी सतह को खाता है. उस के बाद पत्तियों का जाल या टैंट बना कर उस के अंदर छिप जाता है और पत्तियों का खाना जारी रखता है.

रोकथाम : पहला उपाय तो यह है कि आजादीरैक्टिन 3000 पीपीएम ताकत का 1 मिलीलिटर को पानी में घोल कर छिड़कें.

दूसरा उपाय यह है कि जुलाई में क्विनालफास 0.05 फीसदी या मोनोक्रोटोफास 0.05 फीसदी का 2-3 बार छिड़काव करें.

दीमक : यह सफेद, चमकीले और मिट्टी के अंदर रहने वाला कीट है. यह जड़ को खाता है, उस के बाद सुरंग बना कर ऊपर की ओर बढ़ता जाता है. यह तने के ऊपर कीचड़ का जमाव कर अपनेआप को सुरक्षित करता है.

रोकथाम : इन उपायों से अपने पेड़ों को बचाएं:

* तने के ऊपर से कीचड़ के जमाव को हटाना चाहिए.

* तने के ऊपर 5 फीसदी मैलाथियान का छिड़काव करें.

* दीमक से छुटकारा पाने के 2 महीने बाद पेड़ के तने को मोनोक्रोटोफास (1 मिलीलिटर प्रति लिटर पानी) से मिट्टी पर छिड़काव करें.

* 10 ग्राम प्रति लिटर ब्यूवेरिया बेसिआना का घोल बना कर छिड़काव करें.

फुदका या भुनगा कीट : ये कीट आम की फसल को सब से ज्यादा नुकसान पहुंचाते हैं. इस कीट के लार्वा और व्यस्क दोनों ही कोमल पत्तियों व पुष्पों का रस चूस कर नुकसान पहुंचाते हैं. इस की मादा 100-200 अंडे नई पत्तियों व मुलायम प्ररोह में देती हैं और इन का जीवनचक्र 12-22 दनों में पूरा हो जाता है. इस का प्रकोप जनवरीफरवरी महीने से शुरू हो जाता है.

रोकथाम : इस कीट से बचने के लिए ब्यूवेरिया बेसिआना फफूंद के 0.5 फीसदी घोल का छिड़ाकव करें. नीम का तेल 3000 पीपीएम प्रति 2 मिलीलिटर प्रति लिटर पानी में मिला कर घोल का छिड़काव कर के भी नजात पाई जा सकती है. इस के अलावा कार्बोरिल 0.2 फीसदी या क्विनालफास 0.063 फीसदी का घोल बना कर छिड़काव करने से भी राहत मिल जाएगी.

आम (Mango)

फल मक्खी (फ्रूट फ्लाई) : यह कीट आम के फल को बड़ी मात्रा में नुकसान पहुंचाने वाला है. इस कीट की सूंडि़यां आम के अंदर घुस कर गूदे को खाती हैं, जिस से फल खराब हो जाता है.

रोकथाम : यौन गंध के प्रपंच का इस्तेमाल किया जा सकता है. इस में मिथाइल यूजीनौल 0.08 फीसदी और मैलाथियान 0.08 फीसदी बना कर डब्बे में भर कर पेड़ों पर लटका देने से नर मक्खियां आकर्षित हो कर मर जाती हैं. एक हेक्टेयर के बाग में 10 डब्बे लटकाना सही रहेगा.

गाल मीज : इन के लार्वा बौर के डंठल, पत्तियों, फूलों और छोटेछोटे फलों के अंदर रह कर नुकसान पहुंचाते हैं. इन के प्रभाव से फल और फूल नहीं लगते. फलों पर प्रभाव होने पर फल गिर जाते हैं. इन के लार्वा सफेद रंग के होते हैं जो पूरी तरह विकसित होने पर जमीन में प्यूपा या कोसा में बदल जाते हैं.

रोकथाम : इस कीट की रोकथाम के लिए गरमियों में गहरी जुताई करें. रासायनिक दवा 0.05 फीसदी फोस्फोमिडान का छिड़काव बौर घटने की स्थिति में करना चाहिए.

आम पर लगने वाले रोग व उन से बचाव के उपाय

सफेद चूर्णी रोग : बौर आने की अवस्था में अगर मौसम बदलने वाला हो या बरसात हो रही हो तो यह बीमारी अकसर लग जाती है. इस बीमारी के प्रभाव से रोगग्रस्त भाग सफेद दिखाई पड़ने लगता है. मंजरियां और फूल सूख कर गिर जाते हैं.

इस रोग के लक्षण दिखाई देते ही आम के पेड़ों पर 5 फीसदी वाले गंधक के घोल का छिड़काव करें. इस के अलावा 500 लिटर पानी में 250 ग्राम कैराथेन घोल कर छिड़काव करने से भी इस बीमारी पर काबू पाया जाता है.

जिन क्षेत्रों में बौर आने के समय मौसम असामान्य रहा हो, वहां हर हाल में सुरक्षात्मक उपाय के आधार पर 0.2 फीसदी वाले गंधक के घोल का छिड़काव करें और जरूरत के मुताबिक दोहराएं.

श्यामवर्ण (एंथ्रेक्नोज) : यह बीमारी ज्यादा नमी वाले इलाकों में अधिक पाई जाती है. इस का हमला पौधों की पत्तियों, शाखाओं और फूलों जैसे मुलायम भागों पर ज्यादा होता है. प्रभावित हिस्सों में गहरे भूरे रंग के धब्बे आ जाते हैं. 0.2 फीसदी जिनकैब का छिड़काव करें. जिन इलाकों में इस रोग की संभावना ज्यादा हो, वहां सुरक्षा के तौर पर पहले से ही घोल का छिड़काव करें.

ब्लैक टिप (कोएलिया रोग) : यह रोग ईंट के भट्ठों के आसपास के क्षेत्रों में उस से निकलने वाली गैस सल्फर डाईऔक्साइड के चलते होता है. इस बीमारी में सब से पहले फल का आगे का हिस्सा काला पड़ने लगता है. इस के बाद ऊपरी हिस्सा पीला पड़ता है. इस के बाद गहरा भूरा और अंत में काला हो जाता है.

यह रोग दशहरी आम में ज्यादा होता है. इस रोग से फसल को बचाने का सब से अच्छा उपाय यह है कि ईंट के भट्ठों की चिमनी आम के पूरे मौसम के दौरान 50 फुट ऊंची रखी जाए.

इस रोग के लक्षण दिखाई देते ही बौरोक्स 10 ग्राम प्रति लिटर पानी की दर से बने घोल का छिड़काव करें. फलों की बढ़वार की विभिन्न अवस्थाओं के दौरान आम के पेड़ों पर 0.6 फीसदी बोरोक्स के 2 छिड़काव फूल आने से पहले करें और तीसरा फूल बनने के बाद. जब फल मटर के दाने के बराबर हो जाए तो 15 दिन में 2 छिड़काव करने चाहिए.

आम (Mango)गुच्छा रोग : इस बीमारी का मुख्य लक्षण यह है कि इस में पूरा बौर नपुंसक फूलों का एक ठोस गुच्छा बन जाता है. बीमारी का नियंत्रण प्रभावित बौर और शाखाओं को तोड़ कर किया जा सकता है.

अक्तूबर महीने में 200 प्रति 10 लक्षांश वाले नेप्थालिन एसिटिक एसिड का छिड़काव करें और कलियां आने की अवस्था में जनवरी महीने में पेड़ के बौर तोड़ देना भी फायदेमंद रहता है क्योंकि इस से न केवल आम की उपज बढ़ जाती है बल्कि इस बीमारी के आगे फैलने की संभावना भी कम हो जाती है.

पत्तों का जलना : उत्तर भारत में आम के कुछ बागों में पोटेशियम की कमी और क्लोराइड की अधिकता से भी पत्तों के जलने की गंभीर समस्या पैदा हो जाती है.

इस रोग से ग्रसित पेड़ के पुराने पत्ते दूर से ही जले हुए जैसे दिखाई देते हैं. इस समस्या से फल को बचाने के लिए पौधों पर 5 फीसदी पोटेशियम सल्फेट के छिड़काव की सिफारिश की जाती है.

यह छिड़काव उसी समय करें, जब पौधों पर नई पत्तियां आ रही हों. ऐसे बागों में पोटेशियम क्लोराइड उर्वरक का इस्तेमाल न करने की सलाह भी दी जाती है. 0.1 फीसदी मैलाथियान का छिड़काव भी प्रभावी होता है.

डाईबैक : इस रोग में आम की टहनी ऊपर से नीचे की ओर सूखने लगती है और धीरेधीरे पूरा पेड़ सूख जाता है. यह फफूंदजनित रोग होता है, जिस से तने की जलवाहिनी में भूरापन आ जाता है और वाहिनी सूख जाती है. जल ऊपर नहीं चढ़ पाता है.

रोकथाम के लिए रोग से ग्रसित टहनियों के सूखे भाग को 15 सैंटीमीटर नीचे से काट कर जला दें. कटी जगह पर बोर्डो पेस्ट लगाएं और अक्तूबर माह  में कौपर औक्सीक्लोराइड का 0.3 फीसदी घोल का छिड़काव करें.

घर में तैयार आम की नर्सरी

मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर जिले के साईंखेड़ा के शिक्षक भानु प्रताप सिंह राजपूत ने  दशहरी आम के पौधों की नर्सरी तैयार की है. भानु प्रताप सिंह बताते हैं कि उन्होंने 5 साल पहले अपने घर के आंगन में दशहरी आम का एक पौधा लगाया था, जिस में इस साल खूब फल लगे. इस साल लौकडाउन में जब घर से निकलना मुश्किल हो रहा था, तभी आम में लगे फलों की चटनी, अचार बना कर भोजन के स्वाद का आनंद पूरे परिवार ने लिया. जून महीने में आम के फलों को तोड़ कर नीम की पत्तियों से ढक कर रख दिया. तकरीबन एक हफ्ते में ये फल पक कर तैयार हुए, तो इन्हें चूस कर खाने के साथ ही इन का रस भी तैयार कर लिया.

बड़े पैमाने पर निकली आम की गुठलियों को देख कर भानु प्रताप सिंह के मन में यह खयाल आया कि आम की इन गुठलियों से आम की पौध तैयार की जाए. इसी पौध को बरसात होने पर पौधारोपण कर उन की देखभाल कर पेड़ तैयार हो सकेंगे.

Mango Nursaeryकैसे तैयार करें नर्सरी

प्राइमरी स्कूल के शिक्षक भानु प्रताप बताते हैं कि सब से पहले आम की नर्सरी तैयार करने के लिए प्लास्टिक की पन्नी या घर में पड़ी सीमेंट की बोरी की थैलियों में गोबर की खाद मिला कर मिट्टी भर लेते हैं. फिर आम को चूसने या काटने के बाद जो गोही (गुठली) बच जाती है, उसे काट कर उस के अंदर का बीज निकाल लेते हैं.

गुठली को काटते समय इस बात का ध्यान रखें कि गुठली के अंदर निकले बीज में एक पतली झिल्ली होती है, उसे न हटाएं. आम के बीज को मिट्टी और गोबर की खाद भर कर तैयार की गई प्लास्टिक की पन्नी या बोरियों में थोड़ी गहराई तक लगा दें.

दूसरेतीसरे दिन इन थैलियों में पानी डालते रहें. तकरीबन एक हफ्ते के बाद इन में अंकुरण हो जाता है. एक से 2 महीने बाद इस तरह तैयार किए गए आम के पौधों को जमीन में गड्ढा खोद कर लगा देना चाहिए.

कहां से मिली प्रेरणा

नरसिंहपुर जिले के साईंखेड़ा में अरविंद राजपूत पिछले 5 सालों से अपनी ‘कल्पतरु’ संस्था के माध्यम से पौधारोपण कर रहे हैं. हर शनिवार को नगर के तालाब के किनारे पौधारोपण का कार्यक्रम किया जाता है.

लोगों के जन्मदिन, विवाह की वर्षगांठ पर पौधे लगाए जाते हैं. इस अभियान के लिए पौधे नर्सरी से खरीद कर लाए जाते थे, जिस से संस्था पर आर्थिक बोझ पड़ता था. इसी संस्था से जुड़े भानु प्रताप के मन में यह विचार आया कि यदि घर पर ही पौधे तैयार कर उन्हें पौधारोपण के लिए काम में लाया जाए, तो पैसों की बचत होगी.

गरमियों में करें गड्ढों की तैयारी

वर्षाकाल को आम के पेड़ों को लगाने के लिए हमारे देश में सही माना गया है. इसलिए मई के महीने में ही तकरीबन 50 सैंटीमीटर व्यास और एक मीटर गहराई के गड्ढे 10 से 12 मीटर की दूरी पर खोद लेने चाहिए. खोदे गए गड्ढों में

सड़ी गोबर की खाद मिट्टी में मिला कर और 100 किलोग्राम क्लोरोपाइरीफास पाउडर बुरक कर गड्ढोें को भर देना चाहिए. बरसात होते ही पौधों का रोपण कर देना चाहिए. पौधों की सुरक्षा के लिए ट्री गार्ड या जाली का उपयोग करना चाहिए.

खाद व उर्वरक

रोपे गए पौधे 1-2 साल में जब पेड़ की शक्ल लेने लगें, तो हर साल 100-100 ग्राम नाइट्रोजन, पोटाश और फास्फोरस को प्रति पेड़ जुलाई के महीने में पेड़ के चारों तरफ बनाई गई नाली में डाल देनी चाहिए. इस के अलावा मिट्टी की उर्वराशक्ति बढ़ाने के लिए 25 से 30 किलोग्राम गोबर की सड़ी खाद प्रति पौधा के हिसाब से देनी चाहिए.

जैविक खाद के लिए जुलाईअगस्त में 250 ग्राम एजोस्पिरिलम को 40 किलोग्राम गोबर की खाद के साथ मिला कर थालों में डालने से उत्पादन बढ़ाया जा सकता है. समयसमय पर पौधों के आसपास की घास निकाल कर निराईगुड़ाई करने से खरपतवार व भूमिगत कीट नष्ट हो जाते हैं.

कलम विधि से तैयार करें आम की नर्सरी

भारत में फलदार वृक्षों की बागबानी में सर्वाधिक आम की ही बागबानी की जाती रही है. लेकिन आम की बागबानी शुरू करने के लिए जरूरत होती है अधिक पैदावार देने वाली अच्छी प्रजाति के आम के पौधों की. ये पौधे उद्यान विभाग की नर्सरी या प्राइवेट नर्सरियों से खरीद कर लाते हैं, जि सके लिए आम की किस्मों के अनुसार 30 रुपए से ले कर 500 रुपए प्रति पौधों की दर से भुगतान कर के खरीदना पड़ता है.

अगर हमारे किसान स्वयं आम की प्रजाजियों की नर्सरी तैयार कर बागबानी के लिए उपयोग में लाएं, तो उन्हें विश्वसनीय प्रजाति के साथ अच्छे उत्पादन देने वाले पौधे कम लागत में प्राप्त हो सकते हैं. इसी के साथ आम की नर्सरी को कारोबारी स्तर पर तैयार कर अन्य किसानों में बेच कर अच्छी आमदनी प्राप्त की जा सकती है.

आम की नर्सरी तैयार करने की सब से उपयुक्त कलम विधि होती है, क्योंकि इस विधि से हम जिस प्रजाति के पौधों को तैयार करना चाहते हैं, वह कम समय और कम लागत में तैयार हो जाती है. साथ ही, पौधे में फल भी जल्दी आना शुरू हो जाता है. इस के लिए जरूरत होती है कि जिस प्रजाति के पौधे तैयार करने हों, उस प्रजाति के 5-6 साल पुराने पौधे आप के पास लगे हों. इन्हीं पुराने पौधों के कल्ले को कलम कर बीज से तैयार पौधों में संवर्धित किया जाता है. कलम से आम की नर्सरी तैयार करने के लिए निम्न तरीके अपनाने पड़ते हैं :

आम की गुठलियों से पौध तैयार करना

आम से कलम विधि से नर्सरी तैयार करने के लिए बीजू पौधों की जरूरत पड़ती है, जिस के लिए आम की गुठलियों को जमीन में रोप कर तैयार किया जाता है.

बीज से पौध तैयार करने के लिए भूमि के चयन पर ध्यान देना जरूरी होता है. इस के लिए दोमट या बलुई दोमट मिट्टी उपयुक्त होती है, जिस में गोबर की सड़ी खाद या उपलब्धता के अनुसार वर्मी कंपोस्ट मिला कर मिट्टी को भुरभुरी बना लेते हैं. इस में यह भी ध्यान देना होता है कि जिस स्थान पर हम आम की गुठलियों को नर्सरी में डाल रहे हैं, वहां की जमीन समतल व ऊंची हो, जहां बरसात का पानी न लगे.

नर्सरी में आम की गुठलियों से पौध तैयार करने के लिए हमें देशी प्रजाति के बीजों की आवश्यकता पड़ती है, जो हमें जिला उद्यान विभाग या लखनऊ के मलीहाबाद के बीज उपलब्ध कराने वाली फर्मों से मिल सकते हैं.

देशी आम की गुठलियां, जिन्हें हम पपैया कहते हैं, को जुलाई के प्रथम सप्ताह से ले कर अगस्त के प्रथम सप्ताह तक 8X8 फुट की क्यारियां बना कर डालनी चाहिए. ध्यान रखें कि क्यांरियों में डाली जाने वाली गुठलियां मिट्टी में दबने न पाए, क्योंकि इस से पौध के स्थान बदलने पर जड़ के टूटने का डर रहता है. इसलिए गुठलियों को क्यारी में डालने के बाद उन को गोबर की खाद व आम की पत्तियों से ढकाई कर देनी चाहिए.

नर्सरी में डाली गई गुठलियों का जमाव 15-20 दिनों में हो जाता है. वर्तमान में गुठलियों को पौली बैग में पहले से ही डाल कर उगाया जाने लगा है. इस से अब पौधों को ट्रांसप्लांट करने के दौरान होने वाली क्षति में कमी आ गई है.

पौधो की ट्रांस प्लांटिंग

जब क्यारी के आम के पौधे 25-35 दिन के हो जाएं, तो इस की ट्रांस प्लांटिंग (पौधे का स्थान परिवर्तन) का काम किया जाता है, अन्यथा पोपैया से गुठली की जड़ टूट जाती है, जिस से पौधे के स्थान बदलने के बाद सूखने का डर बना रहता है.

पहले और आज भी सामान्य तौर पर पौधों की ट्रांस प्लांटिंग जमीन से जमीन में की जाती थी, पर नई तकनीक में पौधों की ट्रांस प्लांटिंग पौली बैग में की जाती है. ये पौली बैग पहले से तैयार कर के रखने चाहिए, जिस में गोबर की खाद, मिट्टी, बालू व भूसी को बराबर मात्रा में मिला कर भरा जाता है. इस तैयार पौली बैग में क्यारी से पौधों को निकाल कर लगाने के बाद स्प्रिंकलर या प्लास्टिक के पाइप द्वारा आवश्यकतानुसार 2-3 दिन के अंतराल पर सिंचाई करते रहना चाहिए. पौली बैग में तैयार पौधे सूखते नहीं हैं.

कलम बांधने से पूर्व की तैयारी

कलम बांधने से पूर्व कुछ तैयारियां अति आवश्यक होती हैं, क्योंकि हमें जिस भी प्रजाति के आम का पौध तैयार करना है, उस के 4-6 वर्ष पुराने पौध हमारे पास उपलब्ध होने चाहिए. उस के लिए अधिक उत्पादन और अच्छी गुणवत्ता वाली प्रजातियां बांबे ग्रीन, दशहरी, लंगडा, चौसा, गौरजीत, पंत सिंदूरी, लखनऊ सफेदा, मल्लिका, खजली, आम्रपाली, रामकेला, अरुणिमा, नीलम इत्यादि हैं. अगर कलम तैयार करने के लिए आप के पास आम की अच्छी प्रजाति के पेड़ नहीं हैं, तो आप बागबानी करने वालों से भी संपर्क कर सकते हैं.

ऊपर बताई गई प्रजातियों में से जिस प्रजाति के पौधों की नर्सरी कलम विधि से तैयार करनी हो, उन पौधों की पुरानी टहनियों की काटछांट कर आम की गुठलियों को नर्सरी में डालने के पहले ही कर लें. जब इन में नए कल्ले (साइन) निकल आएं और यह 60-70 दिन पुराने हो जाएं, तो इन कल्लों को डिफलिएट यानी कल्लों के पत्तों की जड़ को डेढ़ इंच से ऊपर काट दिया जाता है. डिफलिएट किए गए कल्लों से एक से दो सप्ताह के भीतर पत्तों की जड़ झड़ जाने के बाद ये बीजू पौधों में कलम लगाने के लिए तैयार हो जाते हैं.

कलम बांधना

आम की गुठलियों से तैयार पौधे की 8-9 माह में कलम बांधने योग्य हो जाते हैं. पूर्वी उत्तर प्रदेश में प्रायः 15 जून से 15 सितंबर तक का समय आम की नर्सरी के कलम बांधने के लिए उपयुक्त होता है. वैसे तो आम की कलम की बंधाई गरमी के महीने को छोड़ कर हर माह में की जाने लगी है.

कलम बांधने के लिए हमें पहले से तैयार किए गए उपयुक्त प्रजाति के पौधे के कल्ले, जो डिफलिएट किए गए हैं, उन्हें 6 इंच लंबाई में पेड़ से काट कर अलग कर लिया जाता है. फिर बीज से तैयार पौधे के ऊपरी हिस्से को काट दिया जाता है और काटे गए स्थान में चाकू से चीरा लगा दिया जाता है. इस के उपरांत डिफलिएट किए गए कल्ले के निचले सिरे को दोनों तरफ से छील लेते हैं, फिर बीज वाले पौधे के सिरे में इस को फिट कर दिया जाता है.

कलम के लगाने के बाद इसे प्लास्टिक की पन्नी से कस कर बांध देते हैं. बांधे गए कलम में पौलीथीन कैप, जिसे क्लेप्ट विधि कहा जाता है, ऊपर से लगा दिया जाता है. यह कैप बांधे गए कलम को सूखने से बचाता है और कलम पर मौसम का प्रभाव भी कम पडता है. इस के साथ ही यह प्लास्टिक कैप कलम की नमी को बनाए रखने के साथ उत्प्रेरक का भी काम करता है.

कलम लगाने के बाद यह ध्यान रखना जरूरी है कि पौधे की जड़ों में पर्याप्त नमी बनी रहे. कलम बांधे गए हिस्से में जड़ की तरफ निकलने वाले हिस्से को तोड़ दिया जाता है, क्योंकि उस से पौधा बीजू हो जाता है.

इस के अलावा साइज विधि से भी कलम लगाई जाती है, जिस के लिए फिफलिएट किए गए कल्ले व बीजू पौधे को छील कर आपस में बांध दिया जाता है, लेकिन इस प्रकार के कलम में 20 फीसदी पौधों के मरने की आशंका बनी रहती है.

कलम बांधने के 5-6 माह में पौधे बिक्री योग्य हो जाते हैं, पर प्लास्टिक बैग में लगाए गए कलम के पौधे 30-40 दिन के भीतर ही बिक्री के लिए तैयार हो जाता है.

कृषि वैज्ञानिक राघवेंद्र विक्रम सिंह का कहना है कि आम के पौधों की नर्सरी 50 रुपए से ले कर 500 रुपए तक में बिकती है. उन्होंने बताया कि विश्वविख्यात आम्रपाली प्रजाति बस्ती जिला उद्यान में विकसित की गई है, जिस की मांग की अपेक्षा आपूर्ति नही की जा पा रही है, क्योंकि आम्रपाली की प्रजाति कम समय में फल देना शुरू करती है. साथ ही, अन्य प्रजातियों की अपेक्षा यह जगह भी कम घेरती है.