सहजन (Drumstick) उगाने की वैज्ञानिक विधि

सहजन का वानस्पतिक नाम मोरिंगाऔलीफेरा है, इसे अंगरेजी में ड्रम स्टिक कहते हैं. यह उत्तर भारत के हिमालय क्षेत्र में प्राकृतिक रूप से उगता है. इसे कोमल पत्तियों, फूलों व फलियों के लिए उगाया जाता है. भारत में इसे कई नामों से पुकारा जाता है, जैसे मोरिंगा, मोरिगाई, मुनगा व हार्स रेडिस वगैरह.

यह एक बहुवर्षीय पेड़ है, जिस की पत्तियों, फूलों व फलों को सब्जी के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है. तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश व झारखंड में यह काफी मशहूर है. इस की व्यावसायिक खेती कुछ इलाकों में ही की जाती है. ज्यादातर जगहों में यह घरों के बगीचों में ही उगाया जाता है.

सहजन की फलियों को सब्जी, अचार या सांभर बनाने में इस्तेमाल किया जाता है. इस के फूलों और पत्तियों से सब्जी बनाई जाती है. इस की सब्जी पौष्टिक और औषधीय गुणों से भरपूर होती है. आयुर्वेद के मुताबिक सहजन इनसानों में होने वाले तकरीबन 300 रोगों के इलाज में लाभदायक है.

राष्ट्रीय पोषण संस्थान, हैदराबाद के अनुसार इस में काफी मात्रा में विटामिन, खनिज तत्त्व, वसा व प्रोटीन पाए जाते हैं. सहजन की पत्तियों व फलियों में प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट्स, कैल्शियम, कैरोटीन व विटामिन ‘सी’ पाए जाते हैं. इस में गाजर के मुकाबले 4 गुना ज्यादा विटामिन, संतरे के मुकाबले में 7 गुना ज्यादा विटामिन ‘सी’, दूध के मुकाबले में 4 गुना ज्यादा कैल्शियम, केले से 3 गुना ज्यादा पोटाश और दही से दोगुना ज्यादा प्रोटीन होता है.

मलेशिया में सहजन के बीजों को मूंगफली की तरह खाया जाता है. इस के बीजों से तेल निकाला जाता है, जिस का इस्तेमाल दवाओं में किया जाता है. आधुनिक खोजों से पता चला है कि सहजन से भूमिगत पानी साफ होता है. सहजन के इस्तेमाल व बाजार की मांग के लिहाज से इस की खेती काफी फायदे वाली साबित होती है.

सहजन जल्दी बढ़ने वाला पेड़ होता है. इस का पेड़ तकरीबन 5 मीटर ऊंचा होता है. इस में खुशबूदार फूल फरवरीमार्च में खिलते हैं. इस की फलियां करीब 25 सेंटीमीटर लंबी होती हैं.

पौधे तैयार करना : आमतौर पर सहजन के पौधे इस की टहनियों को काट कर लगा देने से तैयार हो जाते हैं. वैसे बीज से भी पौधे तैयार किए जाते हैं.

जलवायु : सहजन के सही विकास के लिए तकरीबन 25 डिगरी सेल्सियस तापमान सब से अच्छा रहता है. 40 डिगरी से ज्यादा तापमान इस पर खराब असर डालता है. फूल निकलने के दौरान बहुत कम या बहुत ज्यादा तापमान होने पर फूल गिर जाते हैं.

मिट्टी : सहजन को सभी प्रकार की मिट्टियों में उगाया जा सकता है. सही जल निकास वाली रेतीली दोमट, लाल व काली मिट्टी जिस का पीएच मान 6 से 7.5 के बीच हो सहजन की खेती के लिए सही मानी जाती है.

किस्में : जाफना, कुलानुर, धनराज, पाल मुरीगाई, ऐजहपानामा मुरिंगा, चाबक बेरी मुरीगाई, केम मुरीगाई व केट्टू मुरीगाई वगैरह इस की खास किस्में हैं. इस की उम्दा संकर किस्में हैं पीकेएम 1 व पीकेएम 2.

पौधे लगाना : सहजन की बहुवर्षीय किस्मों के पौधे कलम द्वारा तैयार किए जाते हैं. इस के लिए ढाईढाई मीटर की दूरी पर 45×45×45 सेंटीमीटर आकार के गड्ढे बना कर उन में तकरीबन 15 किलोग्राम कंपोस्ट खाद मिट्टी में मिला कर भरें. चुनी हुई कलमों या पौधों को जून से अक्तूबर के बीच गड्ढों में रोप देते हैं.

इस की 1 वर्षीय किस्मों के 625 ग्राम बीज प्रति हेक्टेयर की दर से नवंबरदिसंबर या जूनजुलाई के दौरान नर्सरी में बोए जाते हैं. पौधे 1 महीने में रोपाई लायक हो जाते हैं. हर गड्ढे में 2 बीज सीधे बो दिए जाते हैं. 1 हफ्ते में बीजों का अंकुरण हो जाता है.

खाद और उर्वरक : रोपाई के 3 महीने बाद हर पौधे को तकरीबन 40 ग्राम यूरिया, 100 ग्राम सिंगल सुपर फास्फेट व 50 ग्राम म्यूरेट आफ पोटाश देनी चाहिए. रोपाई के 6 महीने बाद हर पौधे को तकरीबन 250 ग्राम यूरिया व 30 किलोग्राम कंपोस्ट खाद देनी चाहिए.

काटछांट : समयसमय पर सहजन के पेड़ों की कांटछांट जरूरी है. तकरीबन 75 सेंटीमीटर की ऊंचाई पर मुख्य तने को काट देना चाहिए ताकि पेड़ की ऊंचाई सीमित रहे. फलों की तोड़ाई के बाद कांटछांट करनी चाहिए. छंटाई के 6 महीने बाद पेड़ दोबारा फल देना शुरू कर देते हैं.

खरपतवारों की रोकथाम : रोपाई के पहले 2 महीनों के दौरान खेत में खरपतवार नहीं रहने चाहिए. रोपाई के बाद पहले 3 सालों तक सहजन के पेड़ों के बीच मिर्च, शिमला मिर्च, बैगन, टमाटर, चना, मटर, कपास व दूसरी सब्जियां उगानी चाहिए, ताकि अलग से आमदनी होती रहे. उस के बाद अदरक व जिमीकंद वगैरह की खेती करनी चाहिए. इस से खेत में मिट्टी, नमी, पोषक तत्त्व, व खरपतवारों का प्रबंधन भी हो जाता है.

सिंचाई : रोपाई या बोआई के बाद 1 महीने तक सिंचाई का खास खयाल रखना चाहिए. फिर मौसम के मुताबिक सिंचाई करते रहना चाहिए.

कीड़ों की रोकथाम : सहजन में पत्ती खाने वाले पिल्लू व फल मक्खी का हमला होता है. इन का प्रकोप बरसात के मौसम में होता है.

इन की रोकथाम के लिए 0.2 फीसदी मैलाथियान का छिड़काव करना चाहिए. यदि मैलाथियान न हो, तो 0.15 फीसदी मोनोक्रोटोफास का छिड़काव करना चाहिए. फलों की तोड़ाई से 1 हफ्ते पहले कोई छिड़काव नहीं करना चाहिए.

रोग नियंत्रण

उकटा रोग : सहजन के पौधों पर इस रोग का हमला अकसर होता है. इस की रोकथाम के लिए रोपाई के बाद 0.2 फीसदी कार्बंडाजिम के घोल का छिड़काव करना चाहिए.

उपज : 1 वर्षीय किस्मों की छठी गांठ से ही फल बनने शुरू हो जाते हैं. इस की अनुमानित उपज 250 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक होती है.

औषधीय इस्तेमाल

पाचनशक्ति : सहजन की जड़ के 10 मिलीलीटर रस में 2 ग्राम सोंठ डाल कर सुबहशाम पीने से पाचनशक्ति बेहतर होती है.

उदर शूल: सहजन की 100 ग्राम छाल में 5 ग्राम हींग डाल कर उस में 20 ग्राम सोंठ मिला कर जल के साथ पीस कर 1-1 ग्राम की गोलियां बना लें. इन में से 1-1 गोली दिन में 2-3 बार खाने से उदर शूल, अफारा व गैस की तकलीफ ठीक हो जाती है.

मंदाग्नि : सहजन की ताजी जड़, सरसों और अदरक को बराबर मात्रा में पीस कर 1-1 ग्राम की गोलियां  बना कर रख लें. दिन में 2-2 गोलियां सुबहशाम खाने से मंदाग्नि और तिल्ली में लाभ होता है.

दिमागी बुखार : सहजन की छाल को पानी में घिस कर इस की 2 बूंदें नाक में डालने से दिमागी बुखार ठीक हो जाता है.

सांस के रोग : सहजन की जड़ का रस और अदरक का रस मिला कर उस की 10-15 मिलीलीटर मात्रा रोजाना सुबहशाम पीने से सांस के रोग ठीक हो जाते हैं.

गठिया : सहजन की जड़ को अदरक व सरसों के साथ पीस कर लेप करने से गठिया ठीक हो जाता है. सहजन के गोंद का लेप करने से भी गठिया की सूजन ठीक हो जाती है.

चोट और मोच के दर्द : सहजन की पत्तियों को सरसों के तेल के साथ पीस कर चोट व मोच पर लेप कर के धूप में बैठने से उन के दर्द ठीक हो जाते हैं.

कान के नीचे की सूजन : सहजन की छाल और राई को पीस कर लेप करने से कान के नीचे की सूजन ठीक हो जाती है.

घुटनों का पुराना दर्द : सहजन के पत्तों में बराबर मात्रा में सरसों का तेल मिला कर उसे पीस कर कुनकुना कर के लेप करने से घुटनों का पुराना दर्द ठीक हो जाता है.

वात की तकलीफ : सहजन के पत्तों को पानी के साथ पीस कर कुनकुना कर के लेप करने से वात की तकलीफ ठीक हो जाती है.

यकृत कैंसर : सहजन की 20 ग्राम छाल का काढ़ा बना कर, आरोग्य वर्धिनी 2 गोलियों के साथ दिन में 3 बार इस्तेमाल करने से यकृत कैंसर में फायदा होता है.

दाद : सहजन की जड़ की छाल पानी में घिस कर लेप करने से दाद ठीक हो जाता है.

बुखार : सहजन की 20 ग्राम ताजी जड़ को 100 मिलीलीटर पानी में उबाल कर पीने से बुखार ठीक हो जाता है.

स्नायु (नाड़ी) रोग : सहजन की जड़ की छाल को पीस कर लेप करने से स्नायु रोग ठीक हो जाता है.

सिर दर्द : सहजन की जड़ के रस में बराबर मात्रा में गुड़ मिला कर 1-1 बूंद नाक में डालने से सिर दर्द ठीक हो जाता है.

आंखों के रोग : सहजन के पत्तों के रस में बराबर मात्रा में शहद मिला कर उस की 2-2 बूंदें आंखों में डालने से आंखों के रोगों में लाभ होता है.

दांतों का सड़ना : सहजन की पत्तियों को मुंह में रखने से दांतों का सड़ना रुक जाता है.

कुष्ठ रोग : सहजन की फलियों की सब्जी खाने से कुष्ठ रोग ठीक हो जाता है.

कुत्ते के काटने पर : सहजन की पत्तियों, लहसुन, हलदी, नमक और कालीमिर्च को बराबर मात्रा में ले कर पीसें. फिर उसे कुत्ते के काटने वाली जगह पर लगाएं. इस से काफी फायदा होता है.

वीर्य में इजाफा : सहजन के फूलों को दूध में उबाल कर पीने से वीर्य में इजाफा होता है.

नर्सरी, कलम या बीज से करें सहजन (Drumstick) की खेती

आज के समय में खेतीकिसानी करना काफी मुश्किल भरा काम होता जा रहा है. इस की सब से बड़ी वजह बढ़ती लागत और घटती आमदनी है.

हमारे देश में किसानों के हालात लगभग एकजैसे हैं, लेकिन उलट हालात में भी कुछ किसान सहजन की खेती कर के लाखों रुपए का मुनाफा कमा कर दूसरों के लिए नजीर पेश कर रहे हैं.

इस फसल की खूबी यह है कि एक बार पौध लगाने के बाद 4 साल तक पैदावार होती है. इस वजह से लागत काफी कम हो जाती है.

सहजन का पत्ता, फल और फूल सभी पोषक तत्त्वों से भरपूर हैं जो इनसान और जानवर दोनों के लिए काम आते हैं.

सहजन के बीज से तेल पैदा होता है, जिसे ‘बेन’ तेल के नाम से जाना जाता है. इस का इस्तेमाल घडि़यों में भी किया जाता है. सहजन का तेल साफ, मीठा और गंधहीन होता है और कभी खराब नहीं होता है. इसी गुण के चलते इस का इस्तेमाल इत्र बनाने में किया जाता है.

खेती के लिए जलवायु

सहजन की खेती की सब से बड़ी खूबी यह है कि ये सूखे की स्थिति में कम से कम पानी में भी जिंदा रह सकता है. इस की खेती के लिए कोई खास किस्म की मिट्टी की जरूरत नहीं होती, बल्कि कम क्वालिटी वाली मिट्टी में भी यह पौधा लग जाता है.

इस की बढ़वार के लिए गरम और नमी वाली जलवायु और फूल खिलने के लिए सूखा मौसम सही है. सहजन के फूल खिलने के लिए 25 से 30 डिगरी सैल्सियस तापमान सही है.

मिट्टी की जरूरत

सहजन का पौधा बलुई या चिकनी बलुई मिट्टी में अच्छी तरह बढ़ता है. यह पौधा समुद्रतटीय इलाके की मिट्टी और कमजोर क्वालिटी वाली मिट्टी को भी सहन कर लेता है.

नर्सरी में लगाना

सहजन की खेती में आप कई तरह से उगाए पौधे इस्तेमाल कर सकते हैं जैसे कि नर्सरी, कलम या बीज बो कर. अगर आप नर्सरी में उगाए पौधे का इस्तेमाल करना चाहते हैं तो 18 सैंटीमीटर की ऊंचाई और 12 सैंटीमीटर की चौड़ाई वाले पौलीबैग का इस्तेमाल करें.

बैग के लिए मिट्टी का मिश्रण हलका होना चाहिए, उदाहरण के तौर पर 3  भाग मिट्टी और 1 भाग बालू. हर बैग में 1-2 सैंटीमीटर गहराई में 2-3 बीज लगाएं.

मिट्टी में नमी रखें, लेकिन ध्यान रहे कि वह ज्यादा भीगा न हो. अंकुरण 5 से 12 दिन के भीतर शुरू हो जाता है. एक बैग में एक पौधा छोड़ दें, बाकी को निकाल दें.

जब पौधे की लंबाई 60 से 90 सैंटीमीटर हो जाए तब उसे बाहर लगा सकते हैं. पौधे को बाहर लगाने से पहले बैग की तलहटी में इतना बड़ा छेद बना दें ताकि उस की जड़ें बाहर निकल सकें.

इस बात का भी ध्यान रखें कि पौधे की जड़ के आसपास मिट्टी अच्छी तरह लगा दें. अगर आप यह चाहते हैं कि बीज में तेज अंकुरण हो, इस के लिए आप यह तरीका अपना सकते हैं:

* बीज को पानी में रातभर भीगने के लिए डाल दें.

* पौधा रोपने से पहले छिलके को उतार लें.

* छिलके को हटा कर सिर्फ गुठली को लगाएं.

मिट्टी की तैयारी

अच्छी खेती के लिए पहले जमीन की अच्छी तरह से जुताई कर लें. बीज रोपने से पहले 50 सैंटीमीटर गहरा और चौड़ा गड्ढा खोद लें. इस गड्ढे से मिट्टी को ढीला होने में और जड़ को नमी मिलने में मदद मिलती है. इस से पौधे की जड़ तेजी से फैलती है.

कंपोस्ट खाद की मात्रा 5 किलोग्राम प्रति गड्ढा ऊपरी मिट्टी के साथ मिला कर गड्ढे के अंदर और चारों तरफ डाल दें.

ध्यान दें कि यहां उस मिट्टी को गड्ढे में डालने से बचें जो खुदाई के दौरान निकाली गई थी. साफ ऊपरी मिट्टी में लाभकारी जीवाणु होते हैं जो जड़ की बढ़ोतरी को तेजी से बढ़ावा दे सकते हैं.

नर्सरी से पौधे को निकालने से पहले गड्ढे को पानी से भर दें या फिर अच्छी बारिश का इंतजार करें. उस के बाद बैग से पौधा निकाल कर लगा दें.

जिस इलाके में भारी बारिश होती है वहां मिट्टी को ढेर की शक्ल में खड़ा कर सकते हैं ताकि पानी वहां से निकल जाए. शुरुआत के कुछ दिनों तक ज्यादा पानी नहीं दें. अगर पौधा गिरता है तो उसे एक 40 सैंटीमीटर फली के सहारे बांध दें.

सीधा पौधा रोपना

आप सहजन के पौधों को अपने मकान में भी लगा सकते हैं. इस के लिए बहुत ज्यादा जगह की जरूरत नहीं होती. अगर सिंचाई के लिए पानी हो तो पूरे साल पेड़ को सीधा लगाया और बढ़ाया जा सकता है.

सब से पहले पौधा रोपने के लिए एक गड्ढा तैयार करें, पानी डालें और पौधा रोपने से पहले कंपोस्ट या खाद से मिश्रित ऊपरी मिट्टी को गड्ढे में डाल दें. नमी वाले मौसम में खेत में पेड़ को सीधे लगाया जा सकता है.

कलम तैयार करना

कलम लगाने के लिए कठोर लकड़ी लें. कलम की लंबाई 45 सैंटीमीटर से 1.5 मीटर तक और 10 सैंटीमीटर मोटा होना चाहिए. कलम को सीधे लगाया जा सकता है या फिर नर्सरी में थैले में लगाया जा सकता है.

कलम को सीधा रोपें. साथ ही, पौधा रोपण बलुई मिट्टी में करें. पौधे का एकतिहाई हिस्सा जमीन में लगाएं. कम पानी का इस्तेमाल करें. जड़ की बढ़वार को बढ़ावा देने के लिए मिट्टी में फास्फोरस मिलाएं. नर्सरी में लगाए गए कलम को 2 या 3 महीने बाद बाहर लगाया जा सकता है.

पौधों के बीच दूरियां

सहजन के सघन उत्पादन के लिए एक पेड़ से दूसरे पेड़ के बीच की दूरी 3 मीटर हो और लाइन के बीच की दूरी भी 3 मीटर होनी चाहिए. सूरज की सही रोशनी हो और अच्छी हवा के लिए पेड़ को पूर्व से पश्चिम दिशा की ओर लगाएं.

ध्यान देने की बात यह है कि पेड़ के बीच का जो हिस्सा है, उसे खरपतवार से मुक्त होना चाहिए.

खाद और उर्वरक

आमतौर पर सहजन का पेड़ बिना ज्यादा उर्वरक के ही अच्छी तरह से तैयार हो जाता है.

पौधा रोपने से  8-10 दिन पहले प्रति पौधा  8-10 किलोग्राम खाद डालें और पौधा रोपने के दौरान प्रति हेक्टेयर नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश (सभी 50-50 किलोग्राम) डालें. प्रत्येक 6 महीने के अंतराल पर तीनों की इतनी ही मात्रा पौधों में डाली जानी चाहिए.

सिंचाई

किसानों के लिए अच्छी बात यह है कि सहजन के पौधे को ज्यादा पानी नहीं चाहिए. पूरी तरह से सूखे मौसम में शुरुआत के पहले 2 महीने नियमित पानी चाहिए और उस के बाद तभी पानी डालना चाहिए जब जरूरत हो. अगर सालभर बरसात होती रहे तो सहजन भी सालभर उपज दे सकता है.

सूखे की स्थिति में फूल खिलने की प्रक्रिया को सिंचाई के माध्यम से तेज किया जा सकता है. इस का पौधा काफी दमदार होता है और सूखे मौसम में हर 2 हफ्ते में एक बार सिंचाई की जरूरत होती है.

वहीं, व्यावसायिक खेती में सिंचाई की ड्रिप तकनीक का सहारा लिया जा सकता है. इस के तहत गरमी के मौसम में प्रति पेड़ प्रतिदिन 12 से 16 लिटर पानी दिया जा सकता है और दूसरे मौसम में यह मात्रा घट कर आधी रह जाती है.

जहां पानी की समस्या है वहां घड़े से प्रति 2 हफ्ते पर एक बार सिंचाई की जाती है. सूखे मौसम में ऐसा करने से फसल सूखती नहीं है.

पौधों की कटाईछंटाई

पौधों की अच्छी बढ़वार के लिए समयसमय पर कटाईछंटाई करते रहना चाहिए. इस के पौध की एक या डेढ़ साल बाद कटाईछंटाई की जा सकती है. आप 2 फुट की ऊंचाई पर प्रत्येक पेड़ में 3 से 4 शाखाएं छांट सकते हैं.

हानिकारक कीट और रोग

सहजन की यह भी खूबी होती है कि उस में ज्यादातर कीटों से लड़ने की कूवत होती है. जहां ज्यादा पानी जमा है, वहां डिप्लोडिया रूट राट पैदा हो सकता है. भीगी हुई स्थिति में पौधा मिट्टी के ढेर पर रोपा जाना चाहिए ताकि ज्यादा पानी अपनेआप बह कर निकल जाए.

सूअर, पशु और भेड़बकरियां सहजन के पौधे, फल और पत्तियों को खा जाती हैं. सहजन के पौध को पशुओं से बचाने के लिए बाड़ा या पौधे के चारों ओर लिविंग फेंस लगाया जा सकता है.

फसल की कटाई

सहजन की कटाई तब करें जब खाने के लायक हो जाएं. इस की फली को तभी तोड़ लिया जाना चाहिए, जब वह कच्ची हो और आसानी से टूट जाती हो. पुरानी फली का बाहरी भाग कड़ा हो जाता है लेकिन सफेद बीज और उस का गूदा खाने लायक रहता है.

पौधा रोपने के लिए बीज या तेल

निकालने के मकसद से फली को पूरी तरह तब तक सूखने देना चाहिए जब तक कि भूरी न हो जाए.

कुछ मामलों में ऐसा जरूरी हो जाता है कि जब एक ही शाखा में कई सारी फलियां लगी होती हैं तो उसे टूटने से बचाने के लिए सहारा देना पड़ता है. फलियों के फटने और पेड़ से गिरने से पहले ही उन्हें तोड़ लेना चाहिए.

बीज को छायादार जगह में साफसुथरे सूखे बैग में रखें. चटनी बनाने के लिए ताजी पत्तियों को तोड़ लें. पुरानी पत्तियों को कठोर तनों से तोड़ लेना चाहिए

‘सुपरफूड’ मोरिंगा की खेती

लाभदायक मोरिंगा पेड़ को अर्धशुष्क, उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में उगाया जा सकता है. यह तेजी से बढ़ने वाला पेड़ है, जिस में न्यूनतम कीट और बीमारियां व न्यूनतम पानी और उर्वरक की आवश्यकता होती है. यह जमीन कटाव नियंत्रण, वनों की कटाई, ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कमी, मरुस्थलीकरण को उलटने और जैव विविधता में वृद्धि के माध्यम से पर्यावरण स्थिरता में अहम भूमिका निभाता है.

यह विश्व स्तर पर ‘सुपरफूड’ के रूप में, फार्मास्युटिकल और कौस्मैटिक उद्योगों में उपयोग किया जाता है और इस की पत्तियों व फली की निरंतर मांग होती है.

मोरिंगा का एक पेड़ प्रतिवर्ष औसतन 50 किलोग्राम मोरिंगा फली देता है, जिस की औसत कीमत 50 रुपए प्रति किलोग्राम है. यह लगभग एक पेड़ से 2,500 रुपए की आय देता है

मोरिंगा (सहजन) की खेती के फायदों को देखते हुए ग्रामीण फाउंडेशन इंडिया ने उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ में साथियों किसान उत्पादक संगठन के माध्यम से मोरिंगा की खेती को बढ़ावा दिया, जहां स्वयं सहायता समूह की महिलाएं एफपीओ की शेयरधारक पौधे तैयार करने, रोपण और पेड़ के पोषण में लगी हुई हैं. वे इस की पत्तियों और फलियों के संग्रह में भी शामिल हैं और संपूर्ण मूल्यवर्धन प्रक्रिया में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं.

सितारा देवी, मोरिंगा किसान, आजमगढ़, उ.प्र.

सितारा देवी स्वयं सहायता समूह सदस्य और साथियों किसान उत्पादक संगठन की शेयरधारक ने किसान उत्पादक संगठन की शेयरधारक बनने के बाद सहजन के 40 पेड़ उगाए. उन्होंने पेड़ों की खेती के लिए अनुपयोगी बंजर भूमि का उपयोग किया. उन्होंने पिछले साल अपने एफपीओ को मोरिंगा की फली और पत्तियां बेचीं और 20,000 रुपए कमाए.

सितारा देवी कहती हैं, ‘हमारे खेत में फसल को कोई नुकसान नहीं हुआ और हम ने अलग से हजार रुपए भी कमा लिए, यह बहुत अच्छा है. (मेरी खड़ी फसल प्रभावित नहीं हुई और मैं ने 20,000 रुपए अतिरिक्त कमाए).’

सितारा देवी की कहानी ने उन महिलाओं को प्रेरित किया, जिन के पास कृषि भूमि नहीं है और उपायुक्त उत्तर प्रदेश राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन (यूपीएसआरएलएम), आजमगढ़ को भी प्रेरित किया, जिन्होंने यूपीएसआरएलएम के तहत एसएचजी महिलाओं को एफपीओ में शामिल होने और अतिरिक्त आजीविका सुरक्षित करने, पोषण सुनिश्चित करने और आय बढ़ाने के लिए मोरिंगा पेड़ की खेती अपनाने के लिए प्रेरित किया.

Moringaअब तक मोरिंगा की खेती के लिए कुल एफपीओ में शामिल होने के लिए 500 महिलाओं की कार्यवाही पूरी हुई और 130 महिलाएं एफपीओ में शेयरधारकों के रूप में शामिल हुईं.

एफपीओ ने मोरिंगा की पत्तियों में मूल्यवर्धन किया और मोरिंगा टी बैग्स, मोरिंगा जूस और अन्य उत्पादों का उत्पादन किया, जो कि परीक्षण के अधीन हैं.

मोरिंगा मल्टीन्यूट्रिशनल एनर्जी बार (चिक्की) का रिटेल लौंच भी किया, जो 15 रुपए प्रति पीस है और कुरकुरे व स्वादिष्ठ है. वह उच्च पोषण भी देता है. दीवाली के त्योहार के दौरान एफपीओ ने मोरिंगा एनर्जी बार बेचा और आय अर्जित की, जो एफपीओ के लिए एक स्थायी और लाभदायक व्यवसाय साबित हुई.

इस प्रकार मोरिंगा के पेड़ ने उन महिलाओं को आशा की किरण प्रदान की, जिन के पास भूमि नहीं है. उन्हें दृढ़ विश्वास भी दिया कि वे अनुपयोगी भूमि से कमा सकती हैं.

मोरिंगा खेती से बढ़ेगी किसान की आय

धान, गेहूं जैसी परंपरागत फसलों में बढ़ती लागत और कम आमदनी के चलते किसान इन सभी परंपरागत फसलों को कम और ऐसे फसलों को ज्यादा तवज्जुह दे रहे हैं, जिन्हें एक बार लगाने पर कई बार आमदनी हो पाए. सहजन (सोजाना, साईजन, मोरिंगा और इंगलिश में ड्रमस्टिक्स) ऐसी ही फसलों में से एक है.

सहजन के बाग एक बार लगाने पर 5-8 साल तक फसल मिलती है. सहजन की पत्तियां और फलियों के साथ बीज की भी बहुत मांग होने के कारण यह बहुत महंगा बिकता है.

सहजन की खेती अभी तक कुछ राज्य जैसे आंध्र प्रदेश, राजस्थान, कर्नाटक और मध्य प्रदेश में ज्यादा होती थी, लेकिन देश में आयुर्वेदिक दवाओं का इस्तेमाल बढ़ने के साथ ही सरकार कई योजनाओं के जरीए इन्हें उत्तर प्रदेश, झारखंड जैसे राज्यों में भी बढ़ावा दे कर इस की खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है.

मोरिंगा के पौधों का रोपण

गांवदेहात में सहजन बिना किसी देखभाल के किसान अपने घरों के आसपास कुछ पेड़ लगा कर रखते हैं. इस के फल का उपयोग वे साल में 1 या 2 बार सब्जी के रूप में करते हैं.

भारत में सहजन के पारंपरिक प्रभेद के अतिरिक्त उन्नत प्रभेद पीकेएम-1, पीकेएम-2, कोयंबटूर-1 और कोयंबटूर-2 की खेती की जाती है.

मोरिंगा एक औषधीय पौधा है, जिस की उत्पत्ति भारत, पाकिस्तान, बांगलादेश और अफगानिस्तान के क्षेत्रों में हुई है. यह उष्ण कटिबंध में भी उगने वाला पौधा  है. मोरिंगा से संबंधित औषधि बनाने के लिए पत्ते, छाल, फूल, फल, बीज और जड़ का उपयोग किया जाता है.

मोरिंगा का उपयोग अस्थमा, मधुमेह, मोटापा, रजोनिवृत्ति के लक्षण और कई अन्य स्थितियों के लिए किया जाता है, लेकिन इन उपयोगों का समर्थन करने के लिए कोई अच्छा वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है, जिस से यह तसदीक हो पाए कि इस में पाया जाने वाला पदार्थ उपरोक्त रोगों के लिए सर्वोत्तम औषधीय है इसलिए इस में शोध की अपार संभावनाएं हैं. मोरिंगा के बीजों का उपयोग खाद्य पदार्थों, इत्र और बालों की देखभाल करने वाले उत्पादों और एक मशीन स्नेहक के रूप में किया जाता है.

फलियां व पत्तियों से पाउडर

मोरिंगा दुनिया के कुछ हिस्सों में एक महत्त्वपूर्ण खाद्य स्रोत है, क्योंकि यह सस्ता और आसानी से उगाया जा सकता है और सूखा होने पर भी इन की पत्तियों में बहुत सारे विटामिन और खनिज होते हैं. मोरिंगा का उपयोग भारत और अफ्रीका में कुपोषण से लड़ने के कार्यक्रमों को खिलाने में किया जाता है.

अपरिपक्व हरी फली (ड्रमस्टिक्स) को हरी फलियों के समान तैयार किया जाता है, जबकि बीजों को अधिक परिपक्व फली से निकाला जाता है और मटर की तरह पकाया जाता है या नट्स की तरह भूना जाता है. इस की पत्तियों को पकाया जाता है और पालक की तरह उपयोग किया जाता है और उन्हें (पत्तियों) भी सुखा कर पाउडर के रूप में उपयोग किया जाता है.

तेल निकालने के बाद बचे हुए केक (खली) का उपयोग उर्वरक के रूप में किया जाता है और अच्छी तरह से पानी को शुद्ध करने और समुद्री जल से नमक निकालने के लिए भी उपयोग में लाया जाता है.

काम करने की विधि

मोरिंगा में प्रोटीन, विटामिन और खनिज होते हैं और इस में भरपूर एंटीऔक्सिडैंट होते हैं, जो कोशिकाओं को रिएक्टिव औक्सीजन स्पीशीज जैसे बायोकैमिकल से होने वाले नुकसान से बचाने में मदद करता है.

उपयोग और प्रभावशीलता

दमा : प्रारंभिक शोध से पता चलता है कि 3 सप्ताह के लिए रोजाना 3 ग्राम मोरिंगा लेने से अस्थमा के लक्षणों की गंभीरता कम हो जाती है और हलके अथवा मध्यम अस्थमा वाले वयस्कों में फेफड़ों की कार्यक्षमता में सुधार होता है.

मधुमेह :  कुछ शुरुआती  शोधों से यह पता चलता है कि भोजन के साथ टार्टिंग मोरिंगा ड्रमस्टिक की पत्तियां भी मधुमेह वाले लोगों में भोजन के बाद रक्त शर्करा के स्तर को कम कर सकती हैं.

एचआईवी/एड्स : प्रारंभिक शोध से पता चलता है कि 6 महीने तक प्रत्येक भोजन के साथ मोरिंगा लीफ पाउडर लेने से बौडी मास इंडैक्स (बीएमआई) में वृद्धि हो सकती है, लेकिन प्रतिरक्षा क्षमता में सुधार नहीं होता है.

कुपोषण में उपयोगिता : शुरुआती शोध से पता चलता है कि 2 महीने के लिए भोजन में मोरिंगा पाउडर मिलाने से कुपोषित बच्चों के वजन में सुधार होता है.

रजोनिवृत्ति के लक्षण : प्रारंभिक शोध से पता चलता है कि 3 महीने के लिए भोजन में ताजा मोरिंगा के पत्तों के इस्तेमाल से रजोनिवृत्ति के लक्षणों में सुधार होता है. साथ ही नींद की कमी को यह कम करता है.

विटामिन ए व अन्य विटामिन : सूखे मोरिंगा ओलीफेरा ट्री के पत्तों में विटामिन ए (अल्फा और बीटाकैरोटीन), बी, बी 1, बी 2, बी 3, बी 5, बी 6, बी 12, सी, डी, ई, के, फोलिक एसिड, बायोटिन और अधिक होते हैं.

ध्यान रखें कि प्राकृतिक उत्पाद हमेशा सुरक्षित नहीं होते हैं और एक निश्चित मात्रा की खुराक महत्त्वपूर्ण हो सकती है. उत्पाद लेबल पर प्रासंगिक निर्देशों का पालन करना चाहिए और उपयोग करने से पहले अपने फार्मासिस्ट या चिकित्सक या अन्य स्वास्थ्य देखभाल पेशेवर से परामर्श कर के ही इस की खुराक लेनी चाहिए.