कृषि विज्ञान केंद्र, बस्ती, उत्तर प्रदेश ब बकरी के दूध की मांग दिनप्रतिदिन बढ़ रही है, क्योंकि इस में डेंगू रोग की प्रतिरोधक क्षमता है. बेरोजगार नौजवान और युवा लड़कियां, मजदूर, किसान और किसान महिलाएं बकरीपालन व्यवसाय को अपना कर अपनी माली हालत को सुधार सकते हैं.
पशुपालन विशेषज्ञ डा. डीके श्रीवास्तव ने जानकारी देते हुए कहा कि बकरीपालन को मुख्यत: मांस, दूध, बाल, खाल व खाद के लिए इस्तेमाल किया जाता है. जिले की जलवायु के अनुरूप बकरी की बरबरी, जमुनापारी, सिरोही व ब्लैक बंगाल उपयुक्त नस्लें हैं, जो दूध के साथ अच्छी क्वालिटी का मांस उपलब्ध कराती हैं और प्रत्येक ब्यांत में 2 बच्चे देती हैं.
बरबरी नस्ल की बकरियों में नर बच्चे ज्यादा पैदा होते हैं, जिन को मांस के लिए पाला जा सकता है. उन्होंने यह भी अवगत कराया कि बकरियों को चरना ज्यादा पसंद है, इसलिए इन्हें चराई के साथ ही साथ प्रतिदिन 250 ग्राम दाना मिश्रण भी खिलाना चाहिए. इस से बकरियों को आवश्यक पोषक तत्त्व जैसे प्रोटीन, वसा, कार्बोहाइड्रेट, खनिज और विटामिन मिलते रहें और वे स्वस्थ रह कर कम अवधि में अधिक शरीर भार ग्रहण कर सकें.
बकरियों में किसी प्रकार की बीमारी होने पर निकट के पशु चिकित्सक से सलाह लें और उन की दी गई सलाह से ही इलाज कराएं.
पौध रोग विशेषज्ञ डा. प्रेम शंकर ने बताया कि बकरियों की सब से घातक बीमारी पीपीआर है, जो बहुत तेजी से फैलती है. इस बीमारी के कारण बकरियों की मौत भी हो जाती है. इस के बचाव के लिए प्रत्येक बकरी को पीपीआर का टीका समय से अवश्य लगवा देना चाहिए.
बकरियों को सदैव ताजा और साफ पानी ही पिलाना चाहिए, क्योंकि यदि बकरियां तालाब, गड्ढा, पोखरा आदि का गंदा पानी पीती हैं, तो उन के पेट में लिवर फ्लूक, गोलकृमि, फीताकृमि आदि अंत:परजीवी उत्पन्न हो जाएंगे, जो विभिन्न रोगों के वाहक होते हैं, जिस से बकरियों की उत्पादन क्षमता पर विपरीत प्रभाव पड़ता है. बकरियों को प्रत्येक 6 माह के अंतराल पर पेट के कीड़े मारने की दवा (गाभिन बकरी को छोड़ कर) अवश्य देनी चाहिए.
शस्य वैज्ञानिक डा. आरवी सिंह ने जानकारी दी कि बकरियों को हरा चारा ज्यादा पसंद है, इसलिए मौसम के अनुसार बरसीम, जई, लोबिया, मक्का व चरी की बोआई करें और बहुवर्षीय हरा चारा जैसे हाईब्रिड नैपियर घास के साथ ही साथ पीपल, पाकड़, गूलर, बबूल, बरगद व सहजन आदि के पौधों का रोपण करें, जिस से बकरियों को सालभर पर्याप्त हरा चारा मिलता रहे.
उन्होंने बकरीशाला की निरंतर साफसफाई करने पर जोर दिया. यदि बकरीशाला में गंदगी रहेगी, तो उस में उन के शरीर पर लगने वाले कीड़े जैसे जूं, किलनी, मक्खी आदि हो जाएंगे, जो उन का खून चूसेंगे, जिस से उन की उत्पादन क्षमता प्रभावित होगी. इसलिए जरूरी है कि बकरीशाला के आसपास गंदगी न इकट्ठा होने दें और बकरीशाला की पुताई के साथ ही साथ कीटनाशक का छिड़काव निरंतर करते रहें.
‘बकरीपालन’ विषय पर प्रशिक्षण का आयोजन
बस्ती : भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली द्वारा वित्त पोषित कृषि तकनीकी अनुप्रयोग अनुसंधान संस्थान, रावतपुर, कानपुर, बस्ती केंद्र के अध्यक्ष प्रो. एसएन सिंह के दिशानिर्देश में आचार्य नरेंद्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय, कुमारगंज, अयोध्या द्वारा संचालित कृषि विज्ञान केंद्र, बस्ती द्वारा क्षमता योजना के अंतर्गत ‘बकरीपालन’ विषय पर पिछले दिनों प्रशिक्षण का आयोजन किया गया.
इस प्रशिक्षण कार्यक्रम में बकरीपालक, बेरोजगार नौजवान, किसान व किसान महिलाएं सम्मिलित हुईं. इस अवसर पर कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिकों के साथसाथ जेपी शुक्ला, निखिल सिंह, प्रहलाद सिंह, बनारसी व सीताराम आदि कार्मिक भी उपस्थित रहे.