पशुपालन के बारे में यह आम सोच है कि इसे व्यवसाय के रूप में चुनने के लिए किसी खास पढ़ाई या डिगरी की जरूरत नहीं होती. यह व्यवसाय पीढ़ी दर पीढ़ी चला आ रहा है. अगर इस व्यवसाय को आधुनिक तकनीक के साथ मिला दिया जाए तो किसी भी क्षेत्र में नए आयाम बनाए जा सकते हैं.
पशुपालन के क्षेत्र में ऐसे ही कुछ सुनहरे पन्ने जोड़े हैं बीकानेर के एक नौजवान टैक्नोग्रेड नवीन सिंह तंवर ने. यूथ आईकौन के रूप में उभरने वाले नवीन सिंह तंवर ने नौजवानों के लिए उन्नत कृषि और पशुपालन व्यवसाय में संभावनाओं के नए दरवाजे खोले हैं.
आज हर ओर मिलावटी दूध की चर्चा देखनेसुनने और पढ़ने को मिलती है. यूरिया और डिटर्जैंट जैसे हानिकारक तत्त्व दूध के नमूनों में पाए जाते हैं. लेकिन नवीन सिंह ने साबित कर दिखाया है कि किस तरह आधुनिक तकनीक को अपना कर बिना सेहत से खिलवाड़ किए ज्यादा मुनाफा कमाया जा सकता है.
इस सिलसिले में नवीन सिंह तंवर से बातचीत की गई. पेश हैं, उसी के खास अंश:
एक छोटी सी नौकरी पाने के लिए भी नौजवानों को कड़ी मेहनत करते हुए देखा जा सकता है. ऐसे में लाखों रुपए का पैकेज छोड़ कर दूध डेरी खोलने का विचार आप को कैसे आया?
मेरी 3 साल की बेटी के लिए घर में जो दूध आता था, एक दिन मैं ने उस का सैंपल टैस्ट करवाया तो मुझे पता चला कि इस में कितनी पेस्टीसाइड की मिलावट की जाती है.
मेरे एक डाक्टर दोस्त ने कहा कि इस रूप में हम एक तरह से धीमा जहर पी रहे हैं. बस… बच्चों और परिवार की सेहत को ध्यान में रखते हुए मैं होलस्टन नस्ल की 2 गाएं ले आया.
यहीं नहर के किनारे हमारा फार्म है. चूंकि हाथों से दूध निकालते समय भी दूध में कीटाणु जा सकते हैं इसलिए हम ने मशीन मिल्किंग को अपनाया. धीरेधीरे दोस्तों और रिश्तेदारों ने भी शुद्ध दूध लेने की इच्छा जाहिर की तो फिर इसे एक व्यवसाय के रूप में अपनाने का विचार आया क्योंकि लोग अपनी सेहत को ले कर जागरूक हो गए हैं.
आज जहां आएदिन खानेपीने की चीजों में मिलावट की खबरों से अखबार भरे रहते हैं, वहीं लोग अतिरिक्त पैसा खर्च कर के भी शुद्ध खानपान अपनाना चाह रहे हैं.
इसी सोच ने मुझे डेरी खोलने की प्रेरणा दी. हम ने उत्तर भारत की बहुत सी डेरियां देखी हैं. होलेस्टन नस्ल की गायों के बारे में इंटरनैट से भी बहुत सी जानकारी इकट्ठा की. हम हर साल धीरेधीरे गायों की तादाद बढ़ाते गए. आज हमारे पास तकरीबन 200 गाएं हैं. यहां इस नस्ल को और बेहतर करने का काम भी किया जाता है ताकि गायों की ज्यादा दुधारू नस्ल विकसित की जा सके.
बीकानेर शहर को एशिया का डेनमार्क कहा जाता है. ऐसे में कड़ी होड़ में न केवल टिके रहना बल्कि मुनाफा कमाना भी एक चुनौती है. आप की क्या रणनीति रही?
आप ने बिलकुल सही कहा है कि एशिया में सब से ज्यादा डेरी फार्म बीकानेर में ही हैं, लेकिन फिर भी यहां तकरीबन 70 फीसदी दूध मिलावटी पाया जाता है. दूध में पानी की ही नहीं बल्कि यूरिया, डिटर्जैंट और दूसरे हानिकारक कैमिकल मिलाए जाते हैं.
ऐसा एक एनजीओ के सर्वे में सामने आया है. 1,200 घरों से दूध के सैंपल ले कर यह सर्वे किया गया था. तब हम ने अपने उत्पाद की शुद्धता और अच्छी क्वालिटी को पैमाना बना कर इस व्यवसाय में कदम रखा. साथ ही, हम ने अपनी बात लोगों तक पहुंचाने के लिए आधुनिक तकनीक का सहारा लिया.
मिल्क पार्लर में गायों का दूध निकालने के बाद पैक्ड कैन से पाइप के जरीए दूध को बल्क कूलर में सप्लाई किया जाता है. यहां इसे 4 डिगरी तक ठंडा किया जाता है. बल्क कूलर से दूध को पाइप के जरीए ही पैकेजिंग मशीन में लगे बरतन में सप्लाई किया जाता है. यहां से इस की एकएक लिटर की पैकिंग होती है.
हम ने ‘काऊबेस’ नाम से अपना ब्रांड बनाया और क्वालिटी के मानक तय किए.
हम ने सोशल मीडिया सहित हर आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल किया. हम ने उपभोक्ता और उत्पादक के बीच से मिडिल की कड़ी को हटा दिया. दूध दुहने से ले कर उस की पैकिंग तक का काम पूरी तरह से मशीनी होता है.
हमारे यहां हर रोज 1500 लिटर दूध तकरीबन 650 घरों में सीधे ग्राहकों तक पहुंचाया जाता है. हम इसे विनायक परिवार कहते हैं. सभी ग्राहक ह्वाट्सऐप ग्रुप के जरीए हम से सीधे जुड़े हैं.
हमें खुशी है कि हम लोगों का भरोसा बना पाए. हमारी डेरी का सालाना टर्नओवर डेढ़ करोड़ रुपए है. यही हमारी कामयाबी का राज है.
गाय एक ऐसा पशु है जिसे जो कुछ भी खिलाया जाता है, उस का असर जैसे स्वाद, महक और गुण दूध में आ जाते हैं. ऐसे में आप दूध की शुद्धता कहां तक बना कर रखेंगे क्योंकि चारे और दाने में भी तो हानिकारक कैमिकलों की मिलावट हो सकती है?
बीकानेर की ज्यादातर डेरियों में पशुओं को मूंगफली का चारा खिलाया जाता है, जिस में पेस्टीसाइड भरपूर मात्रा में होते हैं. ऐसे में अगर दूध में कोई बाहरी मिलावट न भी की जाए तब भी पेस्टीसाइड का असर आ जाता है.
दूध में पोषक तत्त्वों को बनाए रखने के लिए हम गायों को पूरे साल अपने ही फार्म में उगा हरा चारा खिलाते हैं. गरमियों में ज्वार और सर्दियों में जई. फार्म में सिर्फ और्गेनिक खाद ही इस्तेमाल की जाती है.
गायों पर कभी भी औक्सीटोसिन का इस्तेमाल नहीं किया जाता. जरूरत होने पर होमियोपैथी दवाएं दी जाती हैं. यहां तक कि गायों में चिचड़ी होने पर भी किसी तरह की दवा नहीं दी जाती. इस के अलावा यहां मुरगीपालन किया गया है, क्योंकि वे चिचड़ी को खोजखोज कर खा जाती हैं. हाईजीन के साथ किसी तरह का समझौता नहीं किया जाता. पूरा फार्म सीसीटीवी कैमरों की निगरानी में है.
यह फार्म 3 भागों में बंटा हुआ है. पहले भाग में हरा चारा सूखी तूड़ी के साथ मिला कर भरपेट खिलाया जाता है. यह सभी के लिए समान है. वहीं दूसरे भाग में पेट से होने वाली गायों को रखा जाता है. यहां उन्हें उन की जरूरत के मुताबिक दाना यानी बांट खिलाया जाता है. दाने या बांट की मात्रा हरेक पशु के लिए उस की बौडी साइज, वजन और दूध देने की कूवत के मुताबिक तय की जाती है.
पेट से होने वाली गायों की खास देखभाल की जाती है. इन्हें बाईपास फैट खिलाया जाता है जो कि एक विशेष प्रकार का आहार है और न्यूट्रीशन का बहुत ही रिच सोर्स है. यह सीधा गायों की आंतों में घुलता है और उस का पूरा फायदा पशु को मिलता है. इस से ब्याने के बाद उस का दूध अच्छी क्वालिटी का होगा और उस की मात्रा भी ज्यादा होगी.
तीसरे भाग में नई ब्या चुकी गाएं हैं. नई ब्याई गायों को 2 महीने तक गुड़, अजवाइन और मेथी का बांट पका कर खिलाया जाता है ताकि दूध की मात्रा और पौष्टिकता बनी रहे यानी परंपरागत नुसखों को आधुनिक तकनीक के साथ जोड़ कर गायों की बेहतरीन देखभाल की जाती है.
गरमियों में राजस्थान का तापमान 45 से 50 डिगरी तक पहुंच जाता है. पशुओं का दूध भी कम हो जाता है. आप गायों की इन समस्याओं से कैसे निबटते हैं?
हमारी गाएं संकर नस्ल की हैं. ये गाएं 50 डिगरी के तापमान पर भी बेहतर काम करती हैं. साथ ही, यहां पर गायों को पूरी तरह कुदरती माहौल दिया जाता है यानी घने पेड़ों की छाया और और्गेनिक हरा चारा.
चूंकि गायों को पसीना नहीं आता इसलिए इन की डाइनिंग टेबल के आसपास पंखे और फौगर लगाए गए हैं ताकि उन के शरीर में ठंडक बनी रहे.
गायों को सैंधा नमक भी चारे के साथ चटाया जाता है. इस का सोडियम पशु को स्वस्थ रखता है. यहां बड़ेबड़े ब्रश भी लगाए गए हैं. यहां आ कर गाएं अपनेआप को खुजा कर जाती हैं. ये छोटेछोटे उपाय पशुओं को सेहतमंद रखने में कारगर साबित होते हैं.
हमारे यहां हरेक गाय के दूध का रिकौर्ड रखा जाता है. 1-2 किलोग्राम लिटर दूध का उतारचढ़ाव आते ही उसे डाक्टरी मदद मुहैया कराई जाती है. इस के लिए प्रतिदिन एक पशुचिकित्सक की विजिट होती है.
आप अपने भविष्य की योजनाएं हमारे युवा दोस्तों के साथ साझा कीजिए.
आने वाले समय में हम फार्म पर ही केंचुआ खाद बनाएंगे. बायोगैस से बिजली बनाने की भी योजना है. इस के अलावा दूसरे दूध उत्पाद जैसे दही, घी, मक्खन, पनीर वगैरह भी हम सहयोगी उत्पाद के रूप में बनाने पर विचार कर रहे हैं.
परंपरागत जानकारी के साथसाथ आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल किसी भी व्यवसाय को ऊंचाइयों तक पहुंचा सकता है. इस क्षेत्र में भी काफी संभावनाएं हैं. सरकार भी खेती और पशुपालन को बढ़ावा दे रही है. बहुत सी आधुनिक तकनीक इस क्षेत्र में आ चुकी हैं. उन से अपडेट रहना समझदारी है. बस थोड़ा सा सब्र और अपने पेशे के प्रति ईमानदारी रखी जाए तो यह नौजवानों के लिए एक बेहतर भविष्य वाला व्यवसाय है.