पेट के कीड़ों से बचाव
आंत में पाए जाने परजीवी अथवा अंत:परजीवी पशुओं के शरीर के अंदर पाए जाते हैं और परजीवी कृमि भौतिक संरचना के आधार पर 2 प्रकार के होते हैं. पहले चपटे व पत्ती के आकार के, जिन्हें हम पर्णकृमि और फीताकृमि कहते हैं. दूसरे गोलकृमि, जो आकार में लंबे, गोल और बेलनाकार होते हैं.
पर्णकृमि
ये परजीवी पत्ती के आकार की संरचना लिए होने के कारण पर्णकृमि कहलाते हैं.
इस वर्ग में फैशियोला, एम्फीस्टोम और सिस्टोसोम पशुओं को नुकसान पहुंचाने वाली मुख्य प्रजातियां हैं.
ये पशुओं के उत्पादन को कम करने के अतिरिक्त एनीमिया, ऊतक क्षति जैसी गंभीर बीमारियां उत्पन्न करते हैं.
फीताकृमि
इस परजीवी का शरीर चपटा होता है. इन का आकार कुछ मिलीमीटर से ले कर अनेक मीटर तक लंबा हो सकता है. इन का चपटे शरीर और लंबे आकार के कारण इन्हें फीताकृमि भी कहा जाता है.
यह परजीवी ज्यादातर पशुओं की भोजन नाल में पाए जाते हैं और पशुओं के पोषण तत्त्वों का उपयोग कर पशुओं को नुकसान पहुंचाते हैं.
इन के लार्वा पशुओं के विभिन्न अंगों में सिस्ट आदि बनाते हैं और हानि पहुंचाते हैं. जैसे, हाईडेटिड सिस्ट, सिस्टीसरकोसिस आदि.
गोलकृमि
इन परजीवी का शरीर बेलनाकार होने के कारण इन्हें गोलकृमि कहते हैं.
यह परजीवी पशुओं में विभिन्न रोग जैसे रूधिर चूसने के कारण अनीमिया, भोजन इस्तेमाल न करने के कारण कमजोरी, फेफड़ों में होने के कारण निमोनिया, आंखों में होने के कारण अंधापन, गांठ बनना, अंगों व ऊतकों को नष्ट करना आदि अवस्था उत्पन्न कर सकते हैं.
सुझाव
हर 3 महीने के अंतराल पर पशुओं को पेट के कीड़ों की दवा दें.
पशुओं का टीकाकरण करवाने से पहले पशुओं को आंत के कीड़ों की दवा जरूर दें.
पशुओं के गोबर की जांच कराने के बाद ही पेट के कीड़ों की दवा दें. गोबर की जांच आप अपने नजदीकी पशु चिकित्सक से करवा सकते हैं. माचिस की डब्बी में या छोटी डब्बी में ताजा गोबर जांच के लिए ले कर जाएं.
आंत के परजीवियों का उपचार समय से उचित मात्रा में प्रभावी औषिधियों का प्रयोग और पशु विशेषज्ञ/पशु चिकित्सक की देखरेख में किया जाना चाहिए.