गरमी के मौसम के बाद बारिश का मौसम आएगा. बारिश की फुहारें तन और मन को तरोताजा कर देती हैं. मनुष्य के साथसाथ पशुपक्षी भी नाच उठते हैं. प्रकृति खिल उठती है. हर तरफ हरियाली की चादर बिछ जाती है. यह तो तसवीर का उजला पक्ष है. अगर इस के दूसरे पक्ष को देखें तो जगहजगह कीचड़ और गंदगी, मच्छरमक्खियों की भरमार, मौसमी बीमारियों का प्रकोप, जहरीले जीवजंतु. ऐसे में जहां मनुष्य ही अनेक बीमारियों का शिकार हो जाता है, वहीं बेजबान पशुओं की तो बिसात ही क्या.
बरसात के दिनों में गरमी तो रहती ही है, साथ ही उमस भी हो जाती है या वातावरण की नमी कोढ़ में खाज का काम करती है. इस मौसम में बैक्टीरिया बहुत जल्दी पनपते हैं. साथ ही, मच्छरमक्खी और पिस्सू का ब्रीडिंग सीजन भी यही होता है इसलिए उन की तादाद भी बढ़ जाती है. ऐसी स्थिति में संक्रामक बीमारियों के फैलने का खतरा बढ़ जाता है.
जानते हैं, बरसात के दिनों में पशुओं की खास देखभाल के कुछ आसान से उपाय:
आवास प्रबंधन
* सब से पहले तो पशु के ठहरने की जगह को ठीक करना होगा यानी आवास प्रबंधन में थोड़ा सा बदलाव करना होगा जैसे पशुशाला की जमीन बाकी जमीन से थोड़ी ऊंची रखनी चाहिए ताकि उस में पानी न भरे.
* पशुशाला में जमा पानी के निकलने का सही बंदोबस्त होना चाहिए.
* पशुशाला के बाहर भी बरसात का पानी जमा न होने पाए वरना मच्छरमक्खी और पिस्सू के पनपने से समस्या बढ़ सकती है.
* पशुशाला का फर्श सूखा और फिसलन रहित होना चाहिए.
* पशुशाला के फर्श और दीवारों में दरारें नहीं होनी चाहिए क्योंकि पिस्सू का ट्रीटमैंट करने के बाद वह पशु का शरीर तो छोड़ देगा, मगर इन दरारों में छिप जाएगा और जैसे ही पशु पर दवा का असर कम होगा, वह फिर से हमला कर सकता है.
दाना चारा प्रबंधन
* बरसात से पहले ही दाने और चारे का सही बंदोबस्त कर लेना चाहिए.
* ये चीजें नमीरहित जगह पर रखनी चाहिए. नमी रहने से दानेचारे में फफूंद लगने की संभावना बढ़ जाती है. सथ ही, फफूंद या फंगस से बीमारियां फैल सकती हैं.
अन्य सावधानियां
* पशु के अपशिष्ट पदार्थों यानी गोबरमूत्र वगैरह का सही तरीके से निबटान करना चाहिए. जहां तक हो सके, पशुशाला से अपशिष्ट पदार्थ दिन में कम से कम 2 बार हटवा देने चाहिए.
* बरसात से पहले ही पशु का संक्रामक और कृमिनाशक रोगों से बचाव के लिए टीकाकरण करवा लेना चाहिए क्योंकि बरसात में पशु हरे चारे के साथसाथ मिट्टी भी खा लेते हैं जो उन के पेट में कीड़ों की वजह बनती है. टीकाकरण 6-6 महीने के अंतराल पर यानी साल में 2 बार अवश्य ही लगवाना चाहिए.
* गलघोंटू, लंगड़ा, मुंहपका, खुरपका वगैरह जानलेवा बीमारियों के टीके भी लगवा लेने चाहिए. गलघोंटू और लंगड़ा बुखार बीमारियों में बचाव ही उपचार हैं. ये बीमारियां सीधे पशु के दिल पर असर करती हैं.
एक बार बीमारी होने के बाद पशु अगर बच्चा है तो उस में मृत्युदर बहुत ज्यादा होती है. अगर पशु व्यस्क है तो उस का प्रोडक्शन खत्म हो जाता है. कम से कम उस ब्यांत में तो नहीं ही होता है, आगे भी मुश्किल है.
* पिस्सुओं से फैलने वाली बीमारी में पशु को बुखार भी हो सकता है. उस के पेशाब में खून भी आ सकता है. इन से बचने के लिए पशुशाला की मिट्टी का ट्रीटमैंट जरूर करा लेना चाहिए.
* बरसात के मौसम में जहरीले जीवजंतु काटने पर इन का प्राइमरी ट्रीटमैंट कुछ भी नहीं होता. वैसे, ज्यादातर सांप जहरीले नहीं होते और इन के काटने पर पशु तो क्या, मनुष्य तक को कोई फर्क नहीं पड़ता.
* सांप के काटने पर झाड़फूंक जैसे अंधविश्वास से दूर रहना चाहिए. अकसर लोग कहते हैं कि झाड़फूंक से सांप का जहर उतर जाता है, जबकि ऐसा कुछ भी नहीं होता. सिर्फ करैट, वाइपर और कोबरा ये 3 किस्में ही सांप की जहरीली होती हैं और उन का इलाज सिर्फ माहिर डाक्टर के पास ही होता है, किसी ओझा या बाबा के पास नहीं.
सांप के काटने पर घाव को साबुन वगैरह से धोना या दंश वाली जगह को थोड़ा ऊपर से कस कर बांधना ये सब कहीसुनी बातें हैं. जितना जल्दी हो सके, डाक्टर से सलाह लेनी चाहिए. इन केसों में पशुओं का इलाज भी मनुष्यों की भांति ही किया जाता है.
(राजस्थान यूनिवर्सिटी औफ वेटेनरी ऐंड एनिमल साइंस, बीकानेर में मैडिसिन विभाग के असिस्टैंट प्रोफैसर सीता राम गुप्ता से हुई बातचीत के आधार पर.)