पशु की खुराक की मात्रा उन की उम्र, शरीर का वजन, दूध उत्पादन, गाभिन पशु, बो झा ढोने, जुताई, हल चलाने वगैरह को ध्यान में रख कर तय की जाती है. पशु की जरूरत के मुताबिक चारेदाने की मात्रा तय करना ही संतुलित आहार कहलाता है.
देश के ज्यादातर पशुपालक पशुओं की खुराक व संतुलित आहार पर कोई खास ध्यान नहीं देते, जो भी मुहैया होता है उसे पशु को खाने को देते हैं, जिस के चलते पशु बीमार, कमजोर, अपनी कूवत के मुताबिक दूध वगैरह नहीं दे पाते हैं इसलिए जरूरी है कि हर पशुपालक अपने पशु को संतुलित खुराक ही दें.
पशु की जरूरत के आधार पर ही चारेदाने में मौजूद पोषक तत्त्वों और पशु की राशन खाने की कूवत को ध्यान में रख कर ही राशन तैयार करें. राशन में पोषक तत्त्वों की कमी होने पर पशु ज्यादा मात्रा में चारा खाता है. रोमंथी यानी जुगाली करने वाले पशु का राशन तैयार करते समय उस में मौजूद सूखा पदार्थ, ऊर्जा, पचनीय प्रोटीन, खनिज तत्त्व व विटामिन का भी ध्यान रखें.
राशन तैयार करने से पहले पशु की गुजरबसर यानी निर्वाह, बढ़वार व उत्पादन को जोड़ कर उस की पूरी जरूरतों का पता लगाया जाता है. दुधारू गायभैंस की पोषक तत्त्वों की जरूरत उस के शरीर वजन व दूध की मात्रा पर निर्भर करती है.
ध्यान रखें कि 6 महीने के गर्भकाल के बाद गायभैंस को अलग से पोषक तत्त्व दें. 3 साल से कम उम्र और 6 महीने से ज्यादा गर्भवती गायभैंस को अलग से पोषक तत्त्वों की जरूरत पड़ती है.
पशुओं का राशन बनाते समय इन बातों को ध्यान में रखें :
* जवान देशी पशु को सौ किलोग्राम शरीर वजन पर 2 से ढाई किलो सूखा पदार्थ दें, जबकि उन्नत नस्ल की गायभैंस को ढाई से 3 किलोग्राम सूखा पदार्थ जरूर खिलाएं.
* सूखे पदार्थ का दोतिहाई भाग चारा और एकतिहाई भाग दाने के रूप में दें. चारे से दिए जाने वाले सूखे पदार्थ का आधा भाग सूखे चारे से व आधा भाग हरे चारे द्वारा दिया जा सकता है.
* सूखे पदार्थ के आधार पर राशन में 25 से 35 फीसदी रेशा होना चाहिए. किसी भी पशु के राशन में 35 फीसदी से ज्यादा रेशा (अपरिष्कृत रेशा) नहीं होना चाहिए.
* सूखे पदार्थ वाले राशन में प्रोटीन 8 से 12 फीसदी होनी चाहिए. छोटे बच्चों के राशन में प्रोटीन की मात्रा 20 फीसदी होनी चाहिए.
* पशु को दिए जाने वाले राशन से तकरीबन सौ किलोग्राम शरीर के वजन पर 1.6 से 1.8 मैगा कैलोरी ऊर्जा मिलनी जरूरी होती है.
विभिन्न वर्ग और उम्र के पशुओं का राशन अलगअलग तरह से तैयार करें. हम यहां कुछ खास पशुओं के राशन तैयार करने के बारे में बता रहे हैं.
दूध न देने वाली जवान ओसर
दूध न देने वाली गायों व जवान ओसरों को उन के शरीर के वजन के मुताबिक पोषक तत्त्वों की जरूरत के आधार पर आहार बनाएं. अगर मादा गर्भवती न हो या दूध न दे रही हो, तो उन की सभी पोषक जरूरतें अच्छे चारे या अच्छे चरागाह में चरने से ही पूरी हो जाती हैं. आधा हरा चारा व आधा सूखा चारा मिला कर खिलाने से उन्हें दाना देने की जरूरत नहीं पड़ती है.
गाभिन पशु
गाभिन पशुओं को अपनी गुजरबसर यानी निर्वाह जरूरत के साथसाथ बच्चे के पोषण के लिए भी पोषक तत्त्वों की जरूरत पड़ती है.
6 महीने के गर्भकाल तक मादा की जरूरतें अच्छे चारे से ही पूरी की जा सकती हैं. लेकिन 6 महीने बाद पशु को आधा किलोग्राम दाना जरूर दें, जबकि ब्याने के समय तक दाने की मात्रा बढ़ा कर 1 से 2 किलोग्राम तक कर दें. मादाओं को वही राशन दिया जाए, जिस को हमेशा खिलाना है.
अगर दाना पहले से देना शुरू कर देते हैं, तो ज्यादा बेहतर होगा. इस से मादा को दाना खाने व पचाने की आदत बन जाती है. किसी खास किस्म के दाने के न खाने पर पता चल जाता है और उसे उस समय से ही बदला जा सकता है.
पेट में पल रहे बच्चे के लिए जरूरी पोषक तत्त्व दाने में मिल जाते हैं. दाना न देने पर मादा के शरीर से पोषक तत्त्व भू्रण को जाते हैं और मादा कमजोर हो जाती है, जिस से मादा को प्रसव के समय परेशानी उठानी पड़ती है और बीमारियां भी पलती है. सही मात्रा में पोषक तत्त्व देने से बच्चा सेहतमंद पैदा होता है और मादा ज्यादा दूध देती है और समय पर दोबारा गर्भधारण भी कर लेती है.
गर्भवती मादाओं को शुरू से सिर्फ आधा किलोग्राम दाना दें. इसे धीरेधीरे बढ़ा कर उस की नस्ल, दूध देने की कूवत व शरीर के वजन के मुताबिक 1 से 2 किलोग्राम तक कर दें.
प्रसव के समय व ब्याने के बाद 3-4 दिन तक दाना न दें. ज्यादा दाना देने पर अयन से जुड़ी बीमारियां ज्यादा होती हैं. ब्याने के 3-4 दिन तक जब दाना न दिया जाए, तो उसे थोड़ी मात्रा में गेहूं का दलिया, चोकर जैसे पाचक दाना देना फायदेमंद रहता है.
दुधारू पशु
दुधारू पशुओं की पोषक जरूरतें उन के दूध देने की कूवत पर निर्भर करती हैं. आमतौर पर गाय को ढाई लिटर दूध पर व भैंसों को 2 लिटर दूध पर एक किलोग्राम दाना दिया जाता है. अगर अच्छे किस्म का फलीदार चारा है, तो 10 लिटर दूध की गाय और 7 लिटर दूध की भैंस को दाना देने की जरूरत नहीं पड़ती. ज्यादा दूध देने वाली गायों को ज्यादा दूध पर 1 किलोग्राम दाना प्रति ढाई लिटर दूध पर दिया जाता है.
पशु के दुबले व मोटे होने पर भी उस की खुराक घटाएं या बढ़ाएं. बहुत ज्यादा दूध देने वाली संकर व विदेशी नस्ल की गायों की सूखे चारे खाने की कूवत इतनी ज्यादा सीमित होती है कि मोटे चारे द्वारा उन की ऊर्जा की जरूरत पूरी नहीं हो पाती. ऐसी गाय को आहार के रूप में पूरा दाना भी नहीं खिलाया जा सकता. इन हालात में पशुपालक दुधारू गायों को खिलाते समय इन बातों को ध्यान में रखें :
* चारेदाने का हिसाब लगाते समय यह ध्यान रखें कि आहार में रेशे का भाग कम व सूखा पदार्थ ज्यादा हो. इस के लिए आहार में दाना ज्यादा व चारा कम दें. लेकिन संपूर्ण आहार दाने के रूप में ही न हो, क्योंकि दाना बढ़ाने का सही असर एक सीमित मात्रा तक ही होता है, बाद में नहीं होता.
* ज्यादा दाने वाले आहार से पशुओं में लार कम पैदा होती है, जिस से आमाशय का पीएच कम हो जाता है. पशुओं को चारा देना भी जरूरी है.
* अच्छे नतीजे हासिल करने के लिए राशन में 30-40 फीसदी पोषक तत्त्व दाने से और 60-70 फीसदी चारे से दें.
* अगर ज्यादा मात्रा में दाना देना हो तो उसे चारे के साथ मिला कर या थोड़ा सा चारा खिलाने के बाद दाना खिलाने से आहार की उपयोगिता बढ़ जाती है. दुधारू गायों के आहार में हरे चारे की मात्रा ज्यादा रखें.
बैलों के लिए
जवान बैलों को गुजरबसर व काम करने के लिए आहार द्वारा पोषक तत्त्व दिए जाते हैं. जुताई करने या बोझा ढोने वाले बैलों की कुछ ऊर्जा मांसपेशियों के चलने से खर्च हो जाती है. बाकी बची ऊर्जा गरमी के रूप में बरबाद हो जाती है, इसलिए काम वाले बैलों की पोषक तत्त्वों की जरूरत उन के वजन, काम की किस्म व काम करने के समय पर निर्भर करती है.
हलके काम करने वाले बैलों की पोषक जरूरतें अच्छे चारे द्वारा ही पूरी हो जाती हैं.
भारी काम में लगे बैलों को ऊर्जा व पोषक तत्त्व देने के लिए अच्छी किस्म का सूखा, हरा चारा व 1 से 2 किलोग्राम दाना रोज दें.
बढ़वार वाली ओसर
ओसरों व पडि़यों को अकसर दाना नहीं दिया जाता है. अगर बछियों और पडि़यों को दाना दिया जाए तो महंगा जरूर लगता है, लेकिन उन की बढ़वार इतनी अच्छी होती है कि वे बिना दाने पर पाली गई बछियों से बहुत पहले ब्याती हैं. कम पोषण पर रखी गई बछियों की बढ़वार दर कम, गर्भधारण की उम्र ज्यादा और ब्याते समय शरीर का वजन कम होता है.
आमतौर पर ओसरों की पोषक जरूरतें बराबर मात्रा में सूखा व हरा चारा भरपेट खिलाने या अच्छे चरागाहों में चराने से ही पूरी हो जाती हैं. लेकिन सूखे व खराब क्वालिटी के चारों के साथ आधा से एक किलोग्राम दाना रोज देना फायदेमंद रहता है. अगर बछियों और पडि़यों को दाना खिलाना मुमकिन न हो, तो भूसा, पुआल व कड़वी को यूरिया से उपचारित कर के जरूर खिलाएं.
बढ़वार वाले नर बच्चे
बढ़ते हुए बछड़ों को एक साल की उम्र तक बछियों की तरह ही दाना देते हैं, लेकिन एक साल के बाद उन्हें 30 फीसदी ज्यादा पोषक तत्त्वों की जरूरत पड़ती है. इस समय उन की बढ़वार दर बछियों के मुकाबले 30 फीसदी ज्यादा होती है. उन्हें पोषक तत्त्वों की भी ज्यादा जरूरत पड़ती है.
बढ़वार वाले बच्चों का अच्छे चरागाह में चराने या एकतिहाई भाग सूखा व दोतिहाई भाग हरा चारा मिला कर खिलाने से उन की दैनिक पोषक जरूरतें पूरी हो जाती हैं.
इस तरह पशुपालक अपने पशुओं को बदलती उम्र, काम करने की दशा, मादा पशुओं के शरीर व दुधारूपन को ध्यान में रखते हुए संतुलित आहार दें, तो इस से पशु की सेहत ठीक होने के साथसाथ बढ़वार भी अच्छी होगी और उन की काम करने व दूध देने की कूवत में भी खासी बढ़ोतरी होगी. इस से पशुपालक को ज्यादा से ज्यादा फायदा होगा और पशुपालन का काम उन के लिए फायदेमंद साबित होगा.