देश में गरीबी उन इलाकों में सब से ज्यादा है, जो प्राकृतिक आपदाओं के लिए अधिक संवेदनशील है : उत्तर प्रदेश, उत्तरी बंगाल और उत्तरपूर्वी क्षेत्र आदि के बाढ़, भूकंप ग्रस्त क्षेत्र, छोटे, सीमांत और भूमिहीन किसान कुल पशुधन का 70 फीसदी के मालिक हैं. प्राकृतिक आपदाओं के दौरान ये सब से ज्यादा प्रभावित हुए हैं. प्राकृतिक आपदाओं से खाद्य सामग्री की कमी होती है और परिवहन संबंधी कठिनाइयों के चलते हालात और खराब हो जाते हैं.
सूखे के दौरान प्रबंधन
जरूरत के समय में अपनी सेवाओं का विस्तार करने के लिए पशु स्वास्थ्य देखभाल संस्थानों, जल संसाधनों और आपदा सहायता को शामिल करना चाहिए.
नलकूपों की मरम्मत, टैंकों की सफाई, टैंकों या बड़े तालाबों में वर्षा जल संचयन की तैयारी के जरीए पानी की कमी में अतिरिक्त पानी की सप्लाई का प्रावधान करना चाहिए.
पारंपरिक खाद्य और चारा संसाधनों का इस्तेमाल करना चाहिए और मवेशियों के ऊर्जा की आपूर्ति के लिए गुड़ का इस्तेमाल करना चाहिए.
सूखा चारा भंडार, यूरिया गुड़ की चाट, चारा यूरिया से बनी ईंटें और गुड़ वगैरह के प्रयोग से पशुओं के लिए जरूरी पोषक तत्त्वों की भरपाई की जा सकती है. बीज भंडार का इस्तेमाल कर के वैकल्पिक सूखा प्रतिरोधी चारा फसलों को लगा कर चारे कमी की भरपाई की जा सकती है.
भूकंप के दौरान प्रबंधन
आश्रय के लिए सब से महफूज जगह की पहचान करें, ताकि जानवर बिना किसी मदद के 2-3 दिनों तक जिंदा रह सकें. टिटनस के खिलाफ या दूसरी संक्रामक बीमारियों से बचने के लिए जानवरों का टीकाकरण करें. सभी कृषि उपकरण और दूसरी चीजें, जो भारी होती हैं, उन्हें दीवार से दूर रखा जाना चाहिए, क्योंकि उन के गिरने से चोट लगने का डर रहता है.
बाढ़ के दौरान प्रबंधन
जानवरों को तेजी से ऊंची जमीन पर ले जाएं और उन की चोटों की जांच करें. तय करें कि जानवरों को सभी संक्रामक रोगों के लिए टीका लगाया जा चुका है. अगर आपदा का अंदाजा पहले से हो तो जानवरों को महफूज जगह पर लाया जाना चाहिए.
आपदा में इस्तेमाल की जाने वाली खाद्य तकनीकें
किसी भी प्राकृतिक आपदा के समय सब से ज्यादा चुनौती पशु को जरूरत के मुताबिक भोजन मुहैया करवाना है. साथ ही, इस समय भोजन के खराब होने का डर भी ज्यादा होता है. इसलिए इस समय जो भी खाद्य पदार्थ मुहैया हो, खाद्य तकनीक का इस्तेमाल करते हुए उन से ज्यादा से ज्यादा फायदा लेने की कोशिश करनी चाहिए.
निम्नलिखित खाद्य तकनीकों का इस्तेमाल कर के पशु को आपदा के समय कुपोषण से बचाया जा सकता है व उस का उत्पादन गिरने से रोका जा सकता है.
भूसे का यूरिया उपचार
भूसे का यूरिया उपचार न केवल उस में प्रोटीन की मात्रा बढ़ा देता है, बल्कि उस की पाचकता को भी बढ़ा देता है. यूरिया उपचारित भूसा दूध की पैदावार 1-2 लिटर/पशु/दिन बढ़ाता है, किसानों को बेहतर मुनाफा देता है. और हरे चारे के उत्पादन के लिए जरूरी जमीन क्षेत्र को कम करने में मदद कर सकता है. एक टन भूसे के प्रसंस्करण के लिए 350-500 लिटर पानी में 40 किलो यूरिया को मिला कर भूसे पर फैलाना चाहिए.
कंप्लीट फीड ब्लौक
फीड लागत और श्रम लागत को कम करना और उत्पादन का अधिकतम करना समय की आवश्यकता है और उसे कंप्लीट फीड ब्लौक द्वारा हासिल किया जा सकता है.
यह प्रणाली किफायती और कुशल है, क्योंकि इस में कम लागत कृषि औद्योगिक उत्पोत्पाद और कम क्वालिटी वाले फसल अवशेषों को भी उपयोग में लाया जाता है. ब्लौक गेहूं के चोकर, चावल की भूसी, सरसों, मूंगफली के केक आदि बनाए जा सकते हैं. गुड़, खनिज लवण और नमक भी इस में मिलाया जा सकता है.
ये कम जगह घेरते हैं, एक जगह से दूसरी जगह पर आसानी से लाए जा सकते हैं व पशु को संपूर्ण पोषण प्रदान करते हैं.
साइलेज तकनीक
जब मानूसन के समय हरा चारा ज्यादा होता है, तब उसे साइलेज के रूप संरक्षित कर के रखा जा सकता है. इस साइलेज का इस्तेमाल आपदा के समय किया जा सकता है.
इस प्रक्रिया में हरे चारे को छोटे टुकड़ों में काट कर इतना सुखाया जाता है कि उस में नमी की मात्रा तकरीबन 65 फीसदी तक रह जाए. इस हरे चारे में यूरिया व मोलासस भी मिलाया जा सकता है, जिस से इस की पोषकता बढ़ जाती है.
इस चारे को तकरीबन 21 दिनों तक ढक कर रखा जाता है, ताकि इस में हवा व पानी न प्रवेश कर सके. सुखाने के बाद जरूरत के मुताबिक इसे पशु को खिलाया जा सकता है.
साइलेज पोषक तत्त्वों से भरपूर होती है. जब भी पशु को खिलाने के लिए हरा चारा मुहैया न हो, तब यह एक अच्छा विकल्प है. इस से पशुओं की सेहत पर कोई बुरा असर नहीं पड़ता है
चारा और फीड बैक का निर्माण
यह सूखे और बाढ़ के दौरान पशुधन की जरूरतों को पूरा करने के लिए एक महत्त्वपूर्ण उपाय है. आपात स्थितियों को पूरा करने के लिए निम्नलिखित तरीके से फीड और चारे को संग्रहीत किया जा सकता है:
मानव उपभोग के लिए अनुपयुक्त सामग्री से
फीड बैक
मानव उपभोग के लिए अनफिट हो जाने वाले फीड अवयवों को पशुधन उपयोग के लिए लिया जा सकता है और एफ्लैटौक्सिन, कीटनाशक दवा अवशेषों की जांच के बाद इसे फीड बैंकों या दुकानों में संग्रहीत किया जा सकता है.
चारा बैक
वन क्षेत्र बंजर भूमि और खेत की परिधि से घास की कटाई की जा सकती है और ऊंचे घनत्व वाले ढेर में घास के रूप से संग्रहीत किया जा सकता है. प्रमुख अनाज जैसे चावल और गेहूं के तिनके, मोटे अनाज, फसलों से अनाज निकालने के बाद छोड़े गए अवशेषों को इन बैंकों में जमा किया जा सकता है व जरूरत के मुताबिक पशुपालक को दिया जा सकता है.
प्राकृतिक आपदा में पशुपालक इन बातों को ध्यान में रख कर बेहतर पशु प्रबंधन कर सकते है और अपने पशुओं को अकाल मौत से बचा सकते हैं.