हमारे देश की अर्थव्यवस्था में पशुपालन का महत्त्वपूर्ण स्थान है. हमारे यहां जोत का आकार दिनप्रतिदिन छोटा होता जा रहा है और किसान चाह कर भी हरे चारे की खेती करने में खुद को असमर्थ पा रहे हैं. यही वजह है कि देश में हरे चारे की उपलब्धता बहुत कम होती जा रही है.
झांसी स्थित भारतीय चरागाह एवं चारा अनुसंधान संस्थान के एक अनुमान के मुताबिक, साल 2025 में हरे चारे की आवश्यकता 1,170 मिलियन टन होगी, जबकि उपलब्धता महज 411 मिलियन टन तक ही होगी. इस प्रकार हरे चारे की उपलब्धता तकरीबन 65 फीसदी कम रहेगी. इसी कमी को पूरा करने के लिए हमें हरे चारे के वैकल्पिक स्रोत तलाशने होंगे, ताकि उन की सहायता से पशुओं को कुछ मात्रा में हरा चारा उपलब्ध कराया जा सके.
पशुओं के लिए वैकल्पिक हरे चारे के रूप में अजोला का नाम सब से ऊपर आता है. अजोला उगाने के लिए हरे चारे की फसलों को उगाने की तरह उपजाऊ भूमि की भी आवश्यकता नहीं पड़ती है. इसे किसी भी प्रकार की भूमि में गड्ढा खोद कर और उस में पानी भर कर जलीय चारे के रूप में उगाया जा सकता है. रेतीली जमीन में भी गड्ढे में प्लास्टिक की शीट बिछा कर पानी भर कर अजोला को उगाया जा सकता है.
अजोला वास्तव में समशीतोष्ण जलवायु में पाया जाने वाला एक जलीय फर्न है. वैसे तो इस की कई प्रजातियां होती हैं, मगर इन में अजोला पिन्नाटा सब से प्रमुख है.
अजोला हरे चारे की आवश्यकता को पूरी तरह तो प्रतिस्थापित नहीं कर सकता है, मगर अपने पोषक गुणों के कारण यह पशुओं के लिए हरे चारे में एक उत्तम विकल्प के रूप में जाना जाता है. अजोला गाय, भैंस, मुरगियों व बकरियों के लिए आदर्श चारा है.
अजोला खिलाने से दुधारू पशुओं के दूध उत्पादन में बढ़ोतरी होती है. जो मुरगी सामान्य रूप से साल में 150 अंडे देती है, अजोला आहार में देने से वह साल में 180-190 अंडे तक दे सकती है. इतना ही नहीं, मछली उत्पादन में भी अजोला लाभकारी साबित हुआ है.
अजोला पोषक तत्त्वों से भरपूर होने के साथसाथ कम लागत में बेहतर परिणाम देने में सक्षम है. इसे उगाने के लिए अलग से जमीन की भी आवश्यकता नहीं होती. इसे सीमेंट की क्यारियों में भी तैयार किया जा सकता है. गुणवत्ता, पाचनशीलता और प्रचुर मात्रा में प्रोटीन का स्रोत होने के कारण अजोला किसानों के लिए किसी वरदान से कम नहीं है.
अजोला की पत्तियों में एनाबीना नामक साइनोबैक्टीरिया होता है, जो नाइट्रोजन स्थिरीकरण में मदद करता है, इसीलिए धान के खेतों में रोपनी के एक सप्ताह बाद अजोला की खेती करने पर धान की भरपूर पैदावार हासिल होती है. अजोला पशुपालन से ले कर फसल उत्पादन बढ़ाने तक किसानों के लिए बड़ा लाभकारी हो सकता है.
अजोला की प्रमुख प्रजातियां
* अजोला माइक्रोफिला
* अजोला पिन्नाटा
* अजोला फिलिक्लोइड्स
* अजोला रुबरा
* अजोला कैरोलिनियाना
अजोला उगाने का तरीका
सब से पहले एक छोटी ट्रे में अजोला का प्योर कल्चर तैयार करते हैं. फिर 2 मीटर 3 2 मीटर 3 30 सैंटीमीटर का एक गड्ढा खोद कर इस में प्लास्टिक शीट बिछा देते हैं, ताकि पानी मिट्टी में अवशोषित न हो सके. इस के बाद गड्ढे में 10-12 किलोग्राम मिट्टी भर देते हैं. फिर इस में 10 लिटर पानी + 2 किलोग्राम गाय का गोबर + 30 ग्राम सुपर फास्फेट का मिश्रण डालते हैं. अब इस में 0.5 से 1 किलोग्राम शुद्ध अजोला कल्चर समान रूप से फैला देते हैं.
अजोला बहुत तेजी से फैलता है और 8-10 दिनों में गड्ढे को पूरा ढक देता है. जब गड्ढा पूरा ढक जाए तो उस में से प्रतिदिन 1 से 1.5 किलोग्राम अजोला निकाला जा सकता है.
अजोला को बांस की छलनी की सहायता से क्यारी से निकाल लेते हैं और 3-4 बार साफ पानी से धो कर ही पशु को चारे के साथ मिला कर नियमित रूप से खिलाते हैं.
बेहतर उत्पादन के लिए हर 5वें दिन तालाब में 20 ग्राम सुपर फास्फेट+1 किलोग्राम गोबर का मिश्रण डालते हैं. इस प्रकार एक वर्ग फुट तालाब से प्रतिदिन 200 से 250 ग्राम अजोला का उत्पादन सफलतापूर्वक किया जा सकता है.
अजोला उत्पादन के लिए 25 डिगरी सैल्सियस से ऊपर का तापमान, पानी का पीएच मान 5.5-7 व आंशिक धूप इष्टतम स्थिति कहलाती है. सीधी धूप शैवाल के बनने में सहायक हो कर अजोला फर्न के उत्पादन में बाधक हो सकती है, इसलिए अजोला की क्यारियों के ऊपर थोड़ी छाया कर देते हैं.
अजोला कैल्शियम, फास्फोरस, आयरन व लाभकारी फाईटोकैमिकल्स का अच्छा स्रोत होने के कारण पशुओं के शारीरिक विकास के लिए अच्छा है. गायों को चारे के साथ अजोला देने से उन के दूध उत्पादन में 15 फीसदी तक की वृद्धि देखी गई है.