बरसीम हरे चारे की एक आदर्श फसल है. यह खेत को अधिक उपजाऊ बनाती है. इसे भूसे के साथ मिला कर खिलाने से पशु के निर्वाहक एवं उत्पादन दोनों प्रकार के आहारों में प्रयोग किया जा सकता है.

बरसीम शीतोष्ण जलवायु वाले भागों में उगाई जाने वाली फसल है. अधिक ठंड व पाले से इस के उत्पादन में कमी हो जाती है. बोआई के समय तापमान 25-30 डिगरी सैंटीग्रेड और वानस्पतिक बढ़ोतरी के लिए 15-25 डिगरी सैंटीग्रेड सही रहता है.

भूमि

बरसीम एक दलहनी फसल है, इसलिए इस की जड़ों में सूक्ष्म जीवाणु पाए जाते हैं. हर एक अवस्था में इन जड़ग्रंथियों में रह रहे जीवाणुओं का जिंदा रहना फसल की बढ़वार के लिए बेहद जरूरी है, इसलिए बरसीम की खेती के लिए भूमि में उचित जल निकासी और अच्छा मृदा वायु का संचार होना चाहिए.

इस की खेती सभी प्रकार की मिट्टी में की जा सकती है, लेकिन भारी दोमद मिट्टी, जिस में पानी सोखने की क्षमता अधिक होती है, इस फसल के लिए अधिक लाभदायक है. बरसीम की खेती सामान्य मिट्टी से ले कर क्षारीय मिट्टी तक में अच्छी तरह से उगाई जा सकती है, लेकिन अम्लीय मिट्टी इस की खेती के लिए अच्छी नहीं होती है.

उन्नतशील प्रजातियां

बरसीम में गुणसूत्र के आधार पर 2 तरह की प्रजातियां द्विगुणित और चतुर्गुणित पाई जाती हैं. द्विगुणित प्रजातियां मिसकावी, वरदान, बरसीम लुधियाना-1 हैं, वहीं चतुर्गुणित प्रजातियों में पूसा जौइंट, टाइप-526, 678, 780 हैं.

खेत की तैयारी

एक जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करने के बाद 4-5 बार हैरो या देशी हल लगा कर पाटा से खेत को समतल कर लेना चाहिए. साथ ही, जरूरत के मुताबिक समान सिंचाई के लिए क्यारियां भी बना लेनी चाहिए.

बोआई की विधि

आमतौर पर बरसीम की बोआई की 2 प्रमुख विधियां हैं :

पानी भरे खेत में बोआई : पानी भरे खेत में पटेला चला कर पानी गंदला करने के बाद छिटकवां विधि से बोआई की जाती है. इस विधि में खेत की तैयारी धान में पौध रोपण करने की तरह से ही की जाती है.

गंदले पानी में बोआई करने से मिट्टी की एक हलकी परत बीजों के ऊपर चढ़ जाती है, जिस से वे ढंक जाते हैं और उन्हें चिडि़या या दूसरे पक्षी नहीं खा पाते और पर्याप्त नमी होने के कारण बीज का अंकुरण भी बहुत अच्छा होता है.

सूखे खेत में बोआई : इस विधि में अच्छी प्रकार की भुरभुरी मिट्टी तैयार कर समतल किए गए खेत में पहले ही सिंचाई के लिए क्यारियां बना कर बोआई छिटकवां विधि द्वारा या लाइन में देशी हल की सहायता से की जाती है.

लाइन में बोआई करने पर लाइन से लाइन की दूरी 15-20 सैंटीमीटर रखनी चाहिए और बीज की गहराई 15-20 सैंटीमीटर से ज्यादा नहीं होनी चाहिए. साथ ही, अंकुरण के लिए पर्याप्त नमी बनाए रखने के लिए बोआई के तुरंत बाद खेत में पानी लगा दिया जाना चाहिए.

बीज दर

द्विगुणित किस्मों के बीजों की दर 20 से 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर और चतुर्गुणित किस्मों के बीजों का आकार में बड़ा होने के कारण 30-40 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर होती है.

बीजोपचार

बरसीम के बीज में आमतौर पर कासनी का बीज मिला रहता है. बीज को 5 फीसदी नमक के घोल में डुबो कर इसे अलग कर लें (कासनी का बीज पानी के ऊपर आ जाता है). बीज का उपचार दलहनी फसल होने के कारण राइजोबियम कल्चर से होना बहुत जरूरी है.

बरसीम में राइजोबियम ट्राईफोली नामक बैक्टीरिया का कल्चर में इस्तेमाल किया जाता है. इस के प्रयोग से पौधों में अच्छी प्रकार से जड़गांठों में मौजूद बैक्टीरिया हवा से नाइट्रोजन प्राप्त करते हैं.

कल्चर प्रयोग के लिए सब से पहले 100 ग्राम गुड़ को 1 लिटर पानी में उबाल कर ठंडा कर लें. उस के बाद इस में राइजोबियम कल्चर को घोल कर फिर बीज के बराबर मात्रा में भुरभुरी मिट्टी ले कर धीरेधीरे छिड़क कर इस प्रकार मिलाएं कि मिट्टी के ढेले न बनें.

इस संवर्धित घोल से तैयार की गई कल्चरयुक्त मिट्टी को 24 घंटे भिगोए गए बीज के साथ मिला कर बोआई के लिए प्रयोग कर सकते हैं.

ध्यान रखने वाली बात यह है कि कल्चर बीज को 24 घंटे से अधिक नहीं रखना चाहिए, क्योंकि फिर बैक्टीरिया नष्ट होने लगते हैं.

उर्वरक

बरसीम दलहनी फसल होने के कारण इस की जड़ों में राइजोबियम बैक्टीरिया होते हैं, जो खुद हवा से नाइट्रोजन लेते हैं, इसलिए फसल को बाहर से कम नाइट्रोजन देने की जरूरत पड़ती है.

उन्नत फसल के उत्पादन के लिए 25-30 किलोग्राम नाइट्रोजन और 50-60 किलोग्राम फास्फोरस प्रति हेक्टेयर की जरूरत पड़ती है. अधिक उपज लेने के लिए हर एक कटाई के बाद पानी लगा कर 5-6 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से यूरिया का छिड़काव करना चाहिए. साथ ही, लक्षण दिखाई पड़ने पर सूक्ष्म तत्त्वों का प्रयोग करना लाभकारी होता है.

सिंचाई

बरसीम ठंडे मौसम में (मार्च माह तक) 15-20 दिन के अंतर पर सिंचाई की जरूरत पड़ती है. हर एक कटाई के बाद हलका पानी लगा देने से उत्पादन में बढ़ोतरी होती है.

फसल चक्र

खरीफ की फसल के बाद रबी के मौसम में बरसीम की खेती आसानी से की जा सकती है. बरसीम की खेती से अधिक लाभ प्राप्त करने के लिए निम्न प्रकार से फसल चक्र अपनाने पर मिट्टी की गुणवत्ता में बढ़ोतरी के साथसाथ अधिक आय भी प्राप्त की जा सकती है.

फसल सुरक्षा

चारे की फसल होने के कारण चूंकि बारबार कटाई की जाती है, इसलिए रोग और कीड़ों का प्रकोप आमतौर पर दिखाई नहीं पड़ता है. इसलिए फसल सुरक्षा के उपायों की जरूरत पड़ती है.

परंतु रोग प्रतिरोधी किस्म की प्रजातियां बोने से जड़ गलन और गेरुई जैसे रोगों की संभावना नहीं रहती है, इसलिए बोआई के लिए उन्नतशील रोगरोधी प्रजातियों को बोएं.

कटाई

पहली कटाई बोआई के 50-60 दिन बाद करनी चाहिए. इस के बाद 30-35 दिन के अंतराल पर 5-6 कटाई की जाती है. कटाई हमेशा जमीन से 6-10 सैंटीमीटर की ऊंचाई से काटी जानी चाहिए, जिस से पौधे की दोबारा वृद्धि में भाग लेने वाली कलिकाओं को नुकसान न पहुंचे.

उपज

बरसीम से चारे की कुल उपज 1,000-1,200 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर मिलती है. वहीं दूसरी ओर पशुपालकों को यह सलाह दी जाती है कि बरसीम अधिक खिलाने से पशुओं में अफरा रोग हो जाता है, इसलिए इसे सूखे चारे के साथ मिला कर खिलाएं.

बरसीम सर्दी के मौसम में पौष्टिक चारे का एक उत्तम स्रोत है. इस में रेशे की मात्रा कम और प्रोटीन की औसत मात्रा 20 से 22 फीसदी होती है. चारे की पाचनशीलता 70-75 फीसदी होती है.

इस के अलावा इस में कैल्शियम और फास्फोरस भी काफी मात्रा में पाए जाते हैं, जिस के कारण दुधारू पशुओं को अलग से खली या दाना आदि देने की जरूरत कम पड़ती है.

बरसीम पशुओं के लिए बहुत ही लोकप्रिय चारा है, क्योंकि यह बेहद पौष्टिक एवं स्वादिष्ठ होता है.

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