भारत में हरे चारे का कुल उत्पादन 4.4 खेती वाली जमीन पर किया जा रहा है. रबी में बरसीम की खेती पशुओं के चारे की खास फसल है. इस के चारे में प्रोटीन 20 फीसदी, फास्फोरस, कैल्शियम 2 फीसदी और वसा 3 फीसदी है और इस की जड़ों में पाए जाने वाले जीवाणुओं के द्वारा मिट्टी की उपजाऊपन बढ़ाने में मदद करते हैं.
इस मौसम में अकसर हरा चारा कम होता है लेकिन बरसीम की फसल से लगातार हरा चारा मिलता रहता है. इस के लिए सिंचाई का पुख्ता इंतजाम होना चाहिए. इस का चारा स्वादिष्ठ और पाचनशील होने से पशु इस को बड़े चाव से खाते हैं.
बरसीम का चारा पशुओं को खिलाने से दूध में इजाफा होता है. बरसीम को आखिरी कटाई से पहले हरी खाद के रूप में भी इस्तेमाल किया जा सकता है.
मिट्टी और आबोहवा
बरसीम की खेती आमतौर पर सभी तरह की मिट्टी में की जा सकती है, पर इस के लिए दोमट मिट्टी बढि़या मानी गई है.
बरसीम की जड़ों में सूक्ष्म जीवाणु पाए जाते हैं जो नाइट्रोजन को बनाए रखने में मददगार होते हैं. इस की फसल पर पीएच मान का कोई असर नहीं पड़ता है क्योंकि क्षारीय मिट्टी में इस की खेती करना मुश्किल नहीं है लेकिन अम्लीय जमीनों में इस की खेती करना आसान है.
बरसीम की खेती के लिए ठंडी व मध्यम शुष्क जलवायु बढ़वार के लिए अच्छी होती है. इस के जमाव और बढ़वार के समय 15 से 25 डिगरी सैंटीग्रेड तापमान अच्छा रहता है. बरसीम के लिए 150 सैंटीमीटर सालाना बारिश से कम वाले रकबे मुनासिब होते हैं.
खेत का चयन और बोआई का उचित समय : बरसीम की बोआई अक्तूबरनवंबर माह में की जाती है लेकिन अक्तूबर का पहला पखवाड़ा बढि़या होता है. बीज का आकार छोटा होने के चलते अच्छे जमाव के लिए खेत की अच्छी तैयारी करना जरूरी है.
पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल या हैरो से करें और 3-4 गहरी जुताइयां देशी हल या कल्टीवेटर से करनी चाहिए. हर जुताई के बाद पाटा जरूर लगाएं.
बीज की मात्रा : बरसीम की बोआई के लिए तकरीबन 25-35 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर के हिसाब से बीज इस्तेमाल करना चाहिए.
बीजोपचार : यदि किसी खेत में बरसीम की बोआई पहली बार कर रहे हैं तो बोने से पहले राइजोबियम ट्राईफोलिआई नामक जीवाणु से उपचारित करें. इस के लिए 1 किलोग्राम राइजोबियम कल्चर को एक लिटर पानी में 100 ग्राम गुड़ के घोल में 25 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर को मिला कर छाया में सुखाते हैं.
बोआई का तरीका : बरसीम की बोआई के लिए खेत में जरूरत के मुताबिक क्यारियां बना ली जाती हैं. इन सूखी क्यारियों में 5 से 7 सैंटीमीटर पानी भरने के बाद पानी में ही बीज को बिखेर दिया जाता है.
मिट्टी भुरभुरी होने के चलते पानी में बीज छिटकते ही जमीन पर बैठ जाते हैं. बोआई की यह विधि काफी लाभदायक है क्योंकि बीज बह नहीं पाते और 5-6 दिन के भीतर ही बीजों का जमाव हो जाता है.
उर्वरक की मात्रा : बरसीम की फसल में नाइट्रोजन की मात्रा की कम ही जरूरत होती है. जिन मिट्टियों में नाइट्रोजन की कमी है तो उन में ज्यादा नाइट्रोजन देनी पड़ेगी.
आमतौर पर 20 से 30 किलोग्राम नाइट्रोजन और 80 किलोग्राम फास्फोरस प्रति हेक्टेयर बोते समय खेत में छिटक कर जमीन में मिला देना चाहिए.
शुरू में यह मात्रा देने से पौधों की शुरुआती बढ़वार अच्छी होती है और जड़ों में छोटीछोटी गांठें बन जाती हैं जिन में पाए जाने वाला राइजोबियम कल्चर वातारवरण की नाइट्रोजन को पौधों के लिए भोजन के रूप में बदलने लगते हैं. बाद में पौधे नाइट्रोजन की कमी को खुद ही पूरा करने लगते हैं.
सिंचाई : बरसीम की खेती के लिए 10-12 सिंचाइयों की जरूरत होती है. हर कटाई के बाद सिंचाई करना फायदेमंद है. सिंचाइयों की तादाद मिट्टी की किस्में, वातावरण की दशाएं, बोआई का समय, कटाई की तादाद पर निर्भर करता है.
गरमियों में 2 सिंचाई के बीच में 6-7 दिनों का और सर्दियों में 12-15 दिनों का फासला होना चाहिए. पानी निकलने का पुख्ता बंदोबस्त होना चाहिए क्योंकि बरसीम की फसल में जरूरत से ज्यादा पानी होने पर बीजों का जमाव और फसल की बढ़वार अच्छी नहीं हो पाती है.
कटाई और उपज : बरसीम की पहली कटाई बोआई के 45 दिन बाद करें. दिसंबर व जनवरी में कटाई 30 से 35 दिनों में कर सकते हैं. इस के बाद 20 से 25 दिनों के अंतराल पर कटाई करनी चाहिए. चारे के लिए पौधों को जमीन की सतह से 5 से 7 सैंटीमीटर की ऊंचाई पर काटना चाहिए.
आमतौर पर चारे के लिए 5 से 6 कटाइयां की जा सकती हैं और बरसीम का बीज उत्पादन करना हो तो 3 कटाई के बाद फसल की कटाई बंद कर देनी चाहिए ताकि बीज मोटा बन सके.
बरसीम के हरे चारे की उपज 400 से 500 क्विंटल प्रति हेक्टेयर मिल जाती है, पर अगर हम अच्छी तरह से फसल पैदा करें तो 700 से 800 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज मिल सकती है.