किसान खेती के साथसाथ पशुपालन, डेरी, फूड प्रोसैसिंग जैसे कामों को कर के अधिकतम लाभ ले सकते हैं. ऐसे तमाम किसान हैं, जिन्होंने पशु पालन व डेरी का व्यवसाय को अपनाकर न केवल अपनी माली हालत में सुधार किया, बल्कि दूसरों के रोजगार मुहैया कराने का जरीया भी बने हैं. अगर आप दुधारू पशुओं के पालन की इच्छा रखते हैं, तो इस के साथसाथ डेरी और डेरी उत्पादों को तैयार कर ज्यादा मुनाफा ले सकते हैं.

वैसे तो देशी घी का व्यवसाय गाय या भैंस पाल कर किया जा सकता है. लेकिन भैंसों के दूध में वसा की मात्रा अधिक पाए जाने से यह घी के लिए ज्यादा मुफीद मानी जाती है.

देश में भैसों की प्रमुख रूप से 12 नस्लें हैं, लेकिन भदावरी नस्ल की भैंस के दूध में वसा की मात्रा अधिक होने की वजह से अन्य नस्लों की अपेक्षा इस के दूध में घी की मात्रा अधिक पाई जाती है.

भैंस की भदावरी नस्ल का पालन उत्तर प्रदेश व मध्य प्रदेश के कुछ क्षेत्रों में किया जाता है. भैसों की यह प्रजाति विलुप्त होने के कगार पर है. सरकार द्वारा इसे बचाने के लिए कई परियोजनाओं पर काम चल रहा है. इस नस्ल की भैंसों की संख्या देश में बहुत कम हो गई है, जिसे अब सुरक्षित करने की भी जरूरत है.

भदावरी नस्ल की भैंस के दूध में वसा की मात्रा 12-13 फीसदी के करीब पाई जाती है, जो उस के
खानपान के अनुसार 6-14 फीसदी तक पाई जाती है.

भदावरी भैंस के पशुपालकों के अनुसार, अगर भदावरी नस्ल की कोई भैंस प्रतिदिन 5 लिटर दूध दे तो 8 दिन में 5 किलोग्राम शुद्ध देशी घी प्राप्त किया जा सकता है, जो 12.5 फीसदी वसा के बराबर है. यह किसी भी नस्ल की भैंस में पाए जाने वाली वसा की फीसदी से ज्यादा है.

भदावरी नस्ल की भैंसों के दूध में औसत 8.2 फीसदी वसा, 19 फीसदी ठोस तत्व, 4.11 फीसदी प्रोटीन, 205.72 मिग्रा. कैल्शियम, 140.90 मिग्रा. फास्फोरस, 3.82 माइक्रोग्राम जिंक, 0.24 माइकोग्राम कौपर व 0.117 माइक्रोग्राम मैंगनीज पाया जाता है.

भदावरी भैंस की विशेषता

भदावरी नस्ल की भैंसों का कद मध्यम छोटा होता है, जिस का शरीर नुकीला, छोटा सिर, छोटी और मजबूत टांगें, काले खुर, एकसमान पुट्ठे, कौपर या हलके भूरे रंग की पलकें और काले रंग के लंबे सींग होते हैं. इन के शरीर पर बाल कम होते हैं. इन की टांगें छोटी व मजबूत होती हैं. घुटने के नीचे का हिस्सा हलका पीला व सफेद रंग का होता है. सिर के अगले हिस्से पर आंखों के ऊपर वाला भाग सफेदी लिए होता है. गरदन के निचले भाग पर दो सफेद धारियां होती हैं. इन की सींगें तलवार के आकार की होती हैं. यह प्रति ब्यांत में औसतन 800-1,000 लिटर दूध देती है. भदावरी नस्ल के वयस्क पशुओं का औसत भाग 300-400 किलोग्राम होता है. छोटा आकार व कम भार की वजह से इन का आहार अन्य भैसों की नस्लों की अपेक्षा काफी कम होता है. इसे कम संसाधनों में किसानों, पशुपालकों व भूमिहीन पशुपालकों द्वारा आसानी से पाला जा सकता है. जो भी मिल जाए, उस को खा कर अपना गुजारा कर लेने की वजह से इन की खाद्य परिवर्तन क्षमता अधिक है. इस नस्ल की भैंसों में कई बीमारियों की प्रतिरोधक क्षमता पाई जाती है. भदावरी भैंस के बच्चों की मृत्यु दर अन्य भैसों की प्रजातियों की तुलना में बहुत कम है.

चारा प्रबंधन

भदावरी नस्ल की भैंसों को चारा दें. उन के चारे में ऊर्जा, प्रोटीन, कैल्शियम, फास्फोरस, विटामिन ए की प्रचुर मात्रा होनी चाहिए. इस नस्ल की भैंसों को जरूरत के मुताबिक ही चारा खिलाएं. इस से इन के दूध उत्पादन छमता में गिरावट नहीं आने पाती है और इन का स्वास्थ्य भी अच्छा रहता है. इन के चारे में दानों का विशेष खयाल रखना चाहिए. इस के लिए मक्की, जौ, जई, बाजरा, गेहूं का मिश्रण खिलाना चाहिए.

चारे के खुराक का मिश्रण बनाने के लिए तेल के बीजों की खली, जिस में मूंगफली, तिल, सोयाबीन, अलसी, सरसों, सूरजमुखी की खली का मिश्रण दिया जा सकता है. इसी के साथ गेहूं का चोकर, चावल का कन, नमक और अन्य खनिज पदार्थ मिला कर खिलाना लाभदायक होता है.

दुग्ध उत्पादन

भदावरी नस्ल की अपेक्षा मुर्रा भैसों की तुलना में दूध तो थोड़ा कम देती है, लेकिन दूध में वसा का अधिक फीसद विषम परिस्थितियों में रहने की क्षमता, बच्चों का कम मृत्यु दर और तुलनात्मक रूप से कम आहार की आवश्यकता आदि गुणों के कारण यह नस्ल किसानों में काफी लोकप्रिय है.

भदावरी भैंस का औसत दुग्ध उत्पादन 4-5 लिटर प्रतिदिन है, लेकिन अच्छे पशु प्रबंधन द्वारा 8-10 लिटर दूध प्रतिदिन प्राप्त किया जा सकता है.

भदावरी भैंस एक ब्यांत में (लगभग 300 दिन) अधिकतम 1,200 से 1,800 लिटर दूध देती है. इस तरह अगर माना जाए, तो प्रतिदिन औसत दूध उत्पादन के आधार पर इस नस्ल के एक ब्यांत की अवधि लगभग 280 दिन की होती है.

ऐसे करें अधिक घी उत्पादन

पशुपालन से जुड़े विशेषज्ञों और किसानों के अनुसार भदावरी भैंसों से अधिक घी उत्पादन के लिए पशुपालक अगर कुछ विशेष चीजों पर ध्यान दें, तो घी उत्पादन को और भी बढ़ाया जा सकता है. इस के लिए पशुपालक भदावरी नस्ल की इन भैंसों को हरे चारे और सूखे चारे का संतुलित आहार दे कर भी दूध में घी की मात्रा को बढ़ा सकते हैं.

सिर्फ हरा चारा खिलाने से दूध और उस में घी की मात्रा नहीं बढ़ती है, बल्कि हरे चारे से दूध तो बढ़ता है, लेकिन उस में चर्बी कम हो जाती है. ऐसे में इस नस्ल की भैंस को 60 फीसदी हरा चारा और 40 फीसदी सूखा चारा मिला कर खिलाना चाहिए, और अचानक पशु आहार में बदलाव न करें.

थनों से दूध निकालते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि पड़वा को आखिरी में आने वाला दूध न पिलाएं, क्योंकि घी की मात्रा आखिरी में आने वाले दूध में सर्वाधिक होती है.

इस नस्ल की भैंसों के बारे में अधिक जानकारी के लिए आप अपने नजदीकी कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिक पशुपालन से संपर्क कर जानकारी प्राप्त कर सकते है.

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