भारत के उत्तरपश्चिमी राज्यों मे झींगापालन से होने वाले मुनाफे को देखते हुए यहां के मत्स्य किसान बहुत हतोत्साहित हैं, इसीलिए वर्तमान में भारत के उत्तरपश्चिमी राज्यों में भूलवणीय खारे पानी में झींगापालन करने वाले और भविष्य में इस को करने के इच्छुक मत्स्य किसानों को झींगापालन की विधि और उत्पादन करने की अवधि के बीच होने वाली समस्याओं से अवगत कराना जरूरी है. साथ ही, उन समस्याओं के समाधान के लिए उपयुक्त सुझाव देना बहुत ही आवश्यक है.
यहां झींगा पालने के लिए मत्स्य किसानों को उचित वैज्ञानिक जानकारी दी जा रही है, ताकि किसान अपनी आय में आशातीत बढ़ोतरी के साथसाथ पर्यावरण का संतुलन भी बनाए रख सकते हैं.
झींगा उत्पादन कैसे करें?
तालाब की तैयारी : झींगापालन के दौरान तालाबों के तलहटी की मिट्टी उत्पादन में अहम भूमिका निभाती है. सब से पहले अवांछनीय प्रजातियों के निराकरण के लिए प्रत्येक फसल के बाद तालाब को सुखा दें. तालाब सूखने के बाद इस की जुताई हल चलवा कर करें, जिस से मिट्टी की गुणवत्ता बढ़ती है और हानिकारक पदार्थों का औक्सीकरण हो जाता है. इस के बाद तालाब में चूने का प्रयोग करें, जो तालाब मे कई तरह से लाभकारी होता है.
यह अम्लीय मिट्टी व पानी के पीएच मान को बढ़ाता है और परजीवियों को नियंत्रित करता है. चूने के प्रयोग से तालाब में प्रयुक्त गोबर व खाद में उपस्थित पोषक तत्त्व समायोजित रहते हैं और यह घुलनशील कार्बनिक पदार्थों को कम करता है.
जलकृषि के लिए 3 प्रकार के चूने का उपयोग होता है-
- कैल्शियम औक्साइड
- कैल्शियम हाइड्रोक्साइड
- कैल्शियम कार्बोनेट
चूने का प्रयोग होने के बाद मिट्टी का पीएच मान देखें. झींगापालन के लिए 7.5-8.5 के बीच में होने पर उपयुक्त माना जाता है. साथ ही, तालाब की निचली सतह पर उपलब्ध कार्बनिक कार्बन को देखें, जिस की मात्रा 1.0 फीसदी होने पर सही मानी जाती है और यह प्राथमिक उत्पादकता को बढ़ाने का काम करती है.
इस के पश्चात तालाब के ऊपर 9-12 सैंटीमीटर की ऊंचाई पर समानांतर पंक्तियों में एक जाल लगा कर तालाब में पाले गए झींगों को परभक्षी पक्षियों से सुरक्षा की जा सकती है.
उर्वरकता : प्राथमिक पादपप्लवक के उत्पादन के लिए कार्बनिक व अकार्बनिक उर्वरक का प्रयोग किया जाता है, जिस में पशु खाद 1,000 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर अथवा मुरगी की खाद 200-300 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर उपयोग करें. तालाब की तैयारी और उर्वरक का प्रयोग कच्चे तालाब में ही करने की आवश्यकता है. पौलीथिन शीट वाले तालाब में इस का प्रयोग न करें.
झींगापालन के लिए जल की गुणवत्ता : झींगापालन के लिए उपयोग में होने वाला पानी उपयुक्त गुणवत्ता का होना बहुत जरूरी है. पानी सामान्य रूप से 1.2-1.5 मीटर गहराई तक भरा जाता है. जल स्रोत के लिए मुख्यत: बोरवैल के पानी का प्रयोग करें. इस पानी को विभिन्न स्क्रीन द्वारा शुद्ध करें, तत्पश्चात 10 पीपीएम क्लोरीन से उपचारित करें और इसे 4-5 दिनों के लिए छोड़ दें.
झींगापालन के लिए पानी स्वीकार्य सीमा तक अंतर्स्थलीय खारे पानी की गुणवत्ता बहुत ही अलग प्रकार की होती है, इसीलिए तालिका के अनुरूप पानी की गुणवत्ता होने पर ही पालन करें.
पैरामीटर स्वीकार्य सीमा
लवणता : 2-25 पीपीटी
औक्सीजन : 5.4-8.2 पीपीएम
पीएच : 7.5-8.5
क्षारीयता : 200-400 पीपीएम
कठोरता : 1,000-4,000 पीपीएम
मैग्नीशियम : 200-600 पीपीएम
पोटैशियम : 50-100 पीपीएम
पानी की गुणवत्ता जांच करने का यंत्र
बीज की गुणवत्ता और तालाब में भंडारण : झींगे का बीज विशिष्ट रोगजनकमुक्त (एसपीएफ) और विशिष्ट रोगजनक से प्रतिरोधी (एसपीआर) होना चाहिए. यह बीज तटीय जलकृषि प्राधिकरण द्वारा अनुमोदित हैचरी (सीएए) और सर्वोत्तम प्रबंधन (बीएमपी) का पालन करने वाले संस्थान से ही लाएं.
झींगे का स्वभाव अपने ही साथी का भक्षण करने का होता है, अत: परभक्षण से बचने के लिए भोजन के रूप में आर्टेमिया नौप्ली को बीज के साथ प्लास्टिक के थैले में डाला जाता है. बीज के तालाब में भंडारण से पहले, बीज को तालाब के पानी के तापमान के साथ अनुकूलित करें. अनुकूलन के पश्चात बीजों को तालाब में 60 झींगा बीज/मी 2 की दर से भंडारित करें.
आहार प्रबंधन : झींगा उत्पादन के लिए आहार बहुत ही महत्त्वपूर्ण कारक होता है. झींगा के मुंह के आकार के अनुसार फीड का आकार का होना बहुत आवश्यक है, जैसे स्टार्टर (प्रारंभिक) के लिए 1 मिलीलिटर, ग्रोअर के लिए 2 मिलीलिटर और फिनिशर के लिए 2.5 मिलीलिटर होता है. भोजन पूरे तालाब में समान रूप से प्रसारित करें और यह मात्रा जैवभार के अनुरूप दें.
फीड की उचित निगरानी के लिए चेक ट्रे
झींगा जैवभार : उपभोग किए गए फीड की उचित निगरानी के लिए चेक ट्रे का उपयोग करें, जो आहार प्रबंधन के लिए बहुत उपयोगी होता है. इष्टतम विकास दर के लिए 30-35 फीसदी प्रोटीन झींगा आहार में होना आदर्श माना जाता है, इसलिए आहार में प्रोटीन इस मात्रा में हो, इस का ध्यान रखें.
झींगा एकत्रीकरण : सर्वोत्तम पालन की विधि अपना कर झींगा 100-120 दिन की कल्चर अवधि में औसतन 22.8-28 ग्राम वजन प्राप्त कर सकता है.
झींगा उपज को 2 तरीके से एकत्रित किया जाता है. सब से पहले तालाब की पूरी जल निकासी द्वारा और दूसरा बैग नेट का उपयोग कर के. नुकसान से बचने के लिए पकड़े हुए झींगे को साफ किया जाता है और बर्फ वाले प्लास्टिक के कंटेनरों में संग्रहित किया जाता है. फिर वैकल्पिक परतों के साथ स्टायरोफोम बक्से में पैक किया जाता है और सुरक्षित ढंग से वाहनों द्वारा बाजार तक पहुंचाया जाता है.
भारत के उत्तरपश्चिमी राज्यों में झींगापालन में किसान को होने वाली समस्या और उस का निराकरण :
* भारत के उत्तरपश्चिमी राज्यों में झींगापालन वर्तमान में शुरुआती अवस्था में ही है, जिस से किसानों को इस की ज्यादा जानकारी नहीं है. इस के अभाव में वे सरकार द्वारा प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना या किसी अन्य योजना द्वारा दी जा रही सब्सिडी से वंचित रह जाते हैं. जिले के मत्स्य विकास अधिकारी से संपर्क कर के लाभकारी योजनाओं से संबधित जानकारी प्राप्त करें.
* मत्स्य किसान झींगापालन से पहले और कल्चर अवधि के दौरान पानी की क्वालिटी की जांच अवश्य कराएं. यह जांच केंद्रीय मत्स्य शिक्षा संस्थान, लाहली (रोहतक) केंद्र पर की जाती है. इस जांच के लिए पीएच, क्षारीयता, कठोरता, पोटैशियम, कैल्शियम, सोडियम, खारापन, अमोनिया, नाइट्रेट इत्यादि की जांच 50-100 रुपए प्रति नमूना और सूक्ष्म जीवाणु विब्रिओ भार की गणना 200 रुपए प्रति नमूना की मामूली दरों पर करवाई जा सकती है.
* उचित जानकारी के अभाव में किसान घटिया स्तर का आहार और झींगा बीज दोनों एजेंट के विश्वास पर मंगा लेता है. इस समस्या से बचने के लिए किसी एजेंट पर भरोसा न कर प्रत्यक्ष रूप से कंपनी अथवा 4-5 अन्य फार्मर से संपर्क कर के ही अपना उचित फैसला लें. साथ ही, आहार के संयोजन को भी देख लें कि उस में सभी पोषक तत्त्व हैं अथवा नहीं.
* कल्चर अवधि के बीच में कभीकभी झींगा अचानक जल सतह पर आ जाता है. किसान इस समस्या को जल्दी से समझ नहीं पाता है और अंत में पूरा झींगा मर जाता है. इस समस्या के 3 प्रमुख कारण हो सकते हैं :
- पानी में अमोनिया का बढ़ना.
- घुलित औक्सीजन की कमी का होना.
- तालाब की तली में अपशिष्ट प्रदार्थ का अधिक मात्रा में जमा होना.
पहली 2 समस्याओं को कृत्रिम रूप से पानी में औक्सीजन मिला कर सुल झाया जा सकता है, तीसरी समस्या के समाधान के लिए तालाब की तली में एकत्रित अपशिष्ट प्रदार्थ को बाहर निकाल कर और उचित प्रोबायोटिक का उपयोग कर कम किया जा सकता है.
* अंतर्देशीय खारे पानी के मामले में पोटैशियम महत्त्वपूर्ण सीमित कारक है. समुद्री जल की तुलना में अंतर्देशीय खारे पानी में पोटैशियम कम पाया जाता है और कैल्शियम व मैग्नीशियम काफी अधिक मात्रा में पाए जाते हैं.
अत: जब मत्स्य किसान नए सिरे से कल्चर करता है, तो उस के लिए तालाब में पोटैशियम की मात्रा को आवश्यक स्तर पर बनाए रखना बहुत ही महत्त्वपूर्ण है. अंतर्देशीय खारे पानी में झींगापालन के लिए पोटैशियम की उपलब्धता न्यूनतम 50-100 फीसदी के बीच होनी चाहिए.