Cage Culture | केज कल्चर में पिंजरे की तरह दिखने वाले जाल का इस्तेमाल मछलीपालन में किया जाता है. कई देशों में काफी समय पहले से ही जलाशयों, नदियों और समुद्र में केज लगा कर मछलीपालन किया जाता है. आमतौर पर जीआई पाइप से केज के फ्रेम को बनाया जाता है. इस के जरीए कम क्षेत्र में ज्यादा से ज्यादा मछली की पैदावार की जा सकती है. मछलियां केज के भीतर ही पलती और बढ़ती हैं और उस में उन्हें आसानी से भरपूर भोजन दिया जा सकता है.
कम बारिश वाले इलाकों के लिए तो केज कल्चर काफी मुफीद माना जा रहा है. जलाशयों में जिस जगह केज को लगाया जाता है, वहां कम से कम 5 मीटर गहरा पानी होना जरूरी है.
मछलीपालन की दिशा में केज कल्चर ने काफी लंबी छलांग लगाई है. इस से जहां देश के कई राज्यों में मछली की कमी को पूरा किया जा सकेगा, वहीं कई बेरोजगारों को रोजगार भी मिल सकेगा.
सब से बड़ी बात यह है कि इस से सभी राज्य मछलीपालन के अपने सालाना लक्ष्य को आसानी से पूरा कर सकेंगे. झारखंड जैसे पहाड़ी राज्य में भी केज कल्चर का काफी बेहतर नतीजा सामने आया है.
हैरत की बात यह है कि देश में झारखंड ही पहला राज्य है, जहां मछलीपालन में केज कल्चर की शुरुआत की गई. कम बारिश वाले इलाकों और पहाड़ी इलाकों में केज कल्चर के जरीए मछलीपालन कर के मछली उत्पादन में काफी ज्यादा तरक्की की जा सकती है.
यह केज कल्चर (जलाशयों में लोहे का पिंजरानुमा जाल लगा कर मछली संवर्धन) के इस्तेमाल का ही नतीजा है कि 5 सालों के दौरान राज्य में मछली उत्पादन का लक्ष्य तकरीबन पूरा होने लगा है.
रांची के मछलीपालक के मुताबिक इस से पहले कभी भी मछली उत्पादन का सरकारी लक्ष्य पूरा नहीं हो पाता था, पर केज कल्चर के अपनाने के बाद लक्ष्य से ज्यादा पैदावार होने लगी है. जलाशयों में ज्यादा से ज्यादा केज लगा कर मछली उत्पादन को कई गुना ज्यादा बढ़ाया जा सकता है. वहां के हटिया जलाशय, चांडिल डैम, तेनुघाट जलाशय में करीब 350 केज लगाए जा चुके हैं.
देश में नेशनल मिशन फौर प्रोटीन सप्लीमेंट (एनएमपीएस) के तहत झारखंड में केज कल्चर की शुरुआत की गई. झारखंड में इसे कामयाबी मिलने के बाद बिहार, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, हरियाणा, पंजाब, ओडिशा व तमिलनाडु में भी केज कल्चर की शुरुआत की जा चुकी है.
केज एक तरह का पिंजरे की शक्ल का जाल होत है, जिस के भीतर मछलीपालन करने से केवल 120 दिनों में ही मछलियों का औसत वजन 400 ग्राम तक हो जाता है.
खुले तालाब में इतने समय में मछलियों का औसत वजन 200 से 300 ग्राम के बीच ही होता है. जलाशय में केज लगा कर प्रति केज 5 टन मछलियों का उत्पादन किया जा सकता है.
केज में मछलीपालन करने से मछलियां इधरउधर भटक नहीं पाती हैं और न ही बड़ी मछलियों का शिकार बन पाती हैं. इस का सब से बड़ा फायदा यह है कि मछलियों को चोरीछिपे जाल या बंशी लगा कर निकाला नहीं जा सकता है, जिस से मछलीपालक को भरपूर फयदा मिल जाता है.