Cattle: बिहार के 20 लाख से ज्यादा मवेशियों पर बांझपन का खतरा मंडराने लगा है. औक्सीटोसिन इंजेक्शन की वजह से मवेशियों में यह बीमारी पनप रही है. राज्य में दुधारू मवेशियों की संख्या 40 लाख के करीब है. केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने इस खतरे के बारे में राज्य के मुख्य सचिव को पत्र भेज कर आगाह किया है. गौरतलब है कि मवेशियों में दूध उत्पादन बढ़ाने के लिए औक्सीटोसिन इंजेक्शन लगाने पर केंद्र सरकार ने रोक लगा रखी है. इस इंजेक्शन को मवेशी को तभी लगाया जा सकता है, जब वह एग्लैक्सिया बीमारी से पीडि़त हो.

वेटनरी डाक्टर सुरेंद्र नाथ कहते हैं कि इस इंजेक्शन की वजह से गायों और भैंसों में बांझपन का खतरा काफी हद तक बढ़ गया है. आमतौर पर गायभैंसों की औसत प्रजनन कूवत 8 से 10 बच्चे पैदा करने की होती है. औक्सीटोसिन इंजेक्शन की वजह से औसत प्रजनन कूवत घट कर 2-3 बच्चे की ही रह गई है. मवेशीपालक दूध का उत्पादन बढ़ाने के लालच में खुलेआम इस इंजेक्शन का इस्तेमाल कर के कानून की धज्जियां उड़ा रहे हैं और मवेशियों की जान को भी खतरे में डाल रहे हैं.

बिहार के पशुपालन विभाग के आकलन के मुताबिक राज्य में भैंस प्रजाति के 80 लाख जानवर हैं, जिन में से 16 लाख दुधारू हैं. इसी तरह गाय प्रजाति के 1 करोड़ जानवर हैं, जिन में से 50 लाख गायें हैं. इन में से 24 लाख दुधारू हैं.

औक्सीटोसिन स्तनपायी संबंधी हार्मोन है, जो साल 1953 में बाजार में आया था. इस इंजेक्शन को स्तनपान तेज कराने के लिए इस्तेमाल किया जाता है. यह दवा दूध को बढ़ाती है, लेकिन ज्यादा इस्तेमाल से प्रजनन कूवत धीरेधीरे खत्म होने लगती है.

ज्यादा दूध निकालने के लालच में डेरी संचालक औक्सीटोसिन इंजेक्शन का जम कर इस्तेमाल करते हैं. इस से तात्कालिक फायदा तो हो जाता है, पर मवेशियों की प्रजनन कूवत धीरेधीरे खत्म हो जाती है. कानून कहता है कि इस दवा को डाक्टर की पर्ची के बगैर न बेचें, नहीं तो दवा की दुकान का लाइसेंस रद्द हो सकता है और 5 साल की कैद की सजा भी मिल सकती है. इस कानून के बाद भी हालत यह है कि भूसा, चोकर, खली आदि की दुकानों पर खुल्लमखुल्ला औक्सीटोसिन इंजेक्शन बिक रहा है.

दुधारू मवेशियों में तेजी से बढ़ती बांझपन की समस्या डेरी उद्योग को खासा नुकसान पहुंचा रही है. करीब 30 फीसदी मवेशी बांझपन और प्रजनन संबंधी बीमारियों की चपेट में हैं. भोजन में हरे चारे का नहीं मिलना, शरीर में लवण की कमी होना, हार्मोन का संतुलन बिगड़ना और औक्सीटोसिन का ज्यादा इस्तेमाल किया जाना पशुओं में बांझपन की खास वजहें हैं.

वेटनरी डाक्टर कौशल किशोर बताते हैं कि कुपोषण, संक्रमण, जन्मजात विकार, अंडाणु या हार्मोन में असंतुलन दुधारू मवेशियों में बांझपन की अन्य वजहें हैं. गायों और भैंसों में यौन उत्तेजना 18-21 दिनों में एक बार 18 से 24 घंटे के लिए होती है.

यौन उत्तेजना होने पर गायें खूब रंभाती हैं, बेचैनी में इधरउधर घूमने लगती हैं और खूंटा उखाड़ कर भागने की कोशिश करती हैं. गायों के उलट भैंसें इस दौरान खामोश ही रहती हैं. इस से पशुपालकों को उन की यौन उत्तेजना के बारे में पता नहीं चलता है.

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इस के लिए पशुपालकों को हमेशा पशुओं की निगरानी करनी चाहिए. उत्तेजना का गलत अनुमान बांझपन के अनुपात को बढ़ा सकता है.

बांझपन से अपने पशुओं को बचाने के लिए पशुपालकों को चाहिए कि पशुओं की यौन उत्तेजना के दौरान ब्रीडिंग जरूर कराएं. अगर किसी पशु में उत्तेजना नहीं आती हो, तो तुरंत डाक्टर की सलाह लेनी चाहिए.

इस के साथ ही हर 6 महीने पर पशुओं के पेट के कीड़ों की जांच जरूर करानी चाहिए. पशुओं के वजन के बढ़ने और घटने पर भी ध्यान रखना जरूरी है. पशु का वजन 230 से 250 किलोग्राम के बीच हो तो बेहतर गर्भाधान होता है.

बांझपन से ऐसे बचाएं दुधारू पशुओं को

*             पशुओं का दूध बढ़ाने के लिए औक्सीटोसिन इंजेक्शन का इस्तेमाल न करें.

*             पशुओं को हरा चारा खूब खिलाएं.

*             रोगों से मुक्त रखने के लिए समयसमय पर वेटनरी डाक्टर से सलाह लेते रहें.

*             पशुओं में होने वाली यौन उत्तेजना के प्रति जागरूक रहें.

*             अंडाणु या हार्मोन के असंतुलन की जांच कराते रहें और इलाज में लापरवाही न बरतें.

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