गोवंशीय पशुओं का बारबार गरमी में आना और स्वस्थ व प्रजनन योग्य नर पशु से गर्भाधान या फिर कृत्रिम गर्भाधान सही समय पर कराने पर भी मादा पशु द्वारा गर्भधारण न करने की अवस्था को ‘रिपीट ब्रीडिंग’ कहते हैं.

ऐसे पशुओं का आमतौर पर नियमित मदचक्र 18-22 दिन होता है और अंग से कोई मवाद या गंदा स्राव आदि नहीं आता है, फिर भी पशु को 3 या इस से अधिक बार गर्भाधान कराने पर भी बच्चा नहीं ठहरता है.

पशुओं में ब्रीडिंग की दर 10-20 फीसदी है, जो कि खराब प्रबंधन व कुपोषण की स्थिति में और ज्यादा हो सकती है. अगर भू्रण की मृत्यु पुश के गाभिन होने के 8-16 दिनों के भीतर होती है, तो पशु के मदचक्र पर कोई विपरीत प्रभाव नहीं पड़ता है, परंतु उस के बाद भ्रूण की मृत्यु होने की दशा में गरमी में आने का अंतराल बढ़ जाता है.

कारण

* निषेचन प्रक्रिया का न होना.

* अंडोत्सर्ग न होना या अंडोत्सर्ग के बिना गरमी में आना.

* अंडोत्सर्ग में देरी.

* अंडवाहिका मार्ग में अवरोध या फिर संक्रमण का होना.

* शुक्राणुओं और अंडाणुओं की बनावट व वंशानुगत/प्राप्त त्रुटियां या उन की अधिक उम्र.

* जननांगों में जन्मजात संरचनात्मक संबंधी त्रुटियां.

* भ्रूण की मृत्यु हो जाना.

* भ्रूण की प्रारंभिक अवस्था में मृत्यु.

* निषेचित अंडों के प्रत्यारोपण या फिर निषेचन में बाधा.

* विभिन्न प्रकार के हार्मोंस में कमी  जैसे प्रोजैस्ट्रोन में कमी व एस्ट्रोजन की अधिकता इत्यादि.

* अत्यधिक वातावरणीय ताप और आर्द्रता होना.

* गर्भाशय में संक्रमण, भू्रूणीय विसंगतियां और विभिन्न जननांगों का संक्रमण.

* प्रतिरक्षा संबंधित बीमारियां.

समाधान

* रिपीट ब्रीडिंग (बारबार गरमी में आना) वाले पशुओं को उचित मात्रा में संतुलित आहार और पर्याप्त हरा चारा यानी चारा मिश्रण अवश्य दें.

* विभिन्न प्रकार के जीवाणुओं और विषाणुजनित बीमारियों के विरुद्ध टीकाकरण और परजीवी रोगों की रोकथाम के लिए प्रबंधन करना चाहिए.

* उचित आवास व्यवस्था का प्रबंध और नियमित साफसफाई रखनी चाहिए.

* स्वच्छ व पारदर्शी योनि स्राव होने पर गर्भाधान कराना चाहिए.

* पशु को सही समय से गाभिन करवाने की सफलता की दर अधिकतम रहती है.

* ध्यान देने वाली बात यह है कि अगर पशु शाम को गरमी में आए, तो अगले दिन सुबह और यदि गरमी के लक्षण सुबह दिखाई पड़ें, तो उसी दिन शाम तक गाभिन कराने के लिए अवश्य ले जाना चाहिए.

* पशुओं में गरमी के लक्षण दिन में 2 बार (सुबह या शाम) अवश्य देखने चाहिए, जिस से गर्भाधान के उचित समय की जानकारी हासिल की जा सके.

* गर्भाधान से पहले वीर्य की जांच अवश्य करनी चाहिए. साथ ही, यह भी ध्यान रखना चाहिए कि इन में प्रयुक्त सांड़ में कोई संक्रमण न हो या वीर्य में अग्र दिशा में गतिशील शुक्राणुओं की उचित संख्या (5-10 मिलियन) होनी चाहिए. इस के अलावा हिमीकृत वीर्य का तरलीकरण प्रबंधन बहुत ही सावधानी से करना चाहिए.

* यह काम कृत्रिम गर्भाधान विशेषज्ञों द्वारा ही किया जाना चाहिए और वीर्य को गर्भाशय ग्रीवा से गर्भाधान की स्थिति में सांड़ों को समयसमय पर बदलते रहना चाहिए.

* समयसमय पर ऐसे पशुओं के अंगों की जांच पशु विशेषज्ञों द्वारा कराई जानी चाहिए.

* जननांगों की संक्रमित अवस्था में गर्भाधान नहीं कराना चाहिए.

* ब्याने के तुरंत बाद जननांगों का संक्रमण रोकने के लिए उचित उपचार व रोकथाम करनी चाहिए. साथ ही, माहिर पशु चिकित्सक की सलाह से उन की देखरेख में काम करना चाहिए.

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