अकसर कृत्रिम गर्भाधान कराने के बाद पशुपालकों में यह उत्सुकता रहती है कि उन का पशु गाभिन है या नहीं? आमतौर पर यह मान लिया जाता है कि जिन पशुओं को कृत्रिम गर्भाधान या सांड़ द्वारा गर्भित करवा लिया गया है और उस के बाद से वे गरमी में नहीं आए हैं, तो वे निश्चित रूप से गाभिन होंगे, जबकि व्यावहारिक रूप से ऐसा नहीं होता है और इसी उम्मीद में वे कई महीने गुजार देते हैं. आखिर में पशु के गाभिन न निकलने पर उन्हें निराशा ही हाथ लगती है.
पशुओं के गरमी में न आने से उन के गाभिन होने का अनुमान जरूर लगा सकते हैं, किंतु यह बात पूरी तरह से सच नहीं होती है. वैसे, जितनी जल्दी गाभिन पशु का पता चले, उतना ही अच्छा और लाभदायक होता है.
किसी भी डेरी व्यवसाय को लाभदायक बनाने के लिए गाभिन पशुओं के बजाय ऐसे पशुओं की पहचान करना ज्यादा जरूरी होता है, जिन का गर्भधारण नहीं हो पा रहा है, जिस से उन का समय पर उचित उपचार या प्रबंधन किया जा सके.
समय पर गर्भनिदान क्यों जरूरी?
कृत्रिम गर्भाधान के बाद पशुओं का गर्भनिदान बहुत ही जरूरी है. वैज्ञानिक तथ्यों के अनुसार लगभग 15 से 25 फीसदी ऐसे पशु होते हैं, जो गर्भाधान के बाद गरमी में नहीं आते और उन्हें गाभिन मान लिया जाता है, पर वास्तव में वे गाभिन नहीं निकलते.
इस के कई कारण हो सकते हैं. जैसे गरमी के लक्षणों का कम प्रदर्शित होना, सही समय पर उत्तम सांड़ वीर्य द्वारा कृत्रिम गर्भाधान न होना आदि.
याद रहे, पशुओं की एक गरमी या हीट छूटना तकरीबन 21 दिनों के दूध उत्पादन के नुकसान के बराबर होता है, इसलिए जितनी जल्दी अगर्भा (जो गाभिन नहीं है) पशुओं का पता चलेगा, उतनी ही जल्दी उन की जांच या इलाज कराया जा सकता है.