गाय के बछड़े बचपन से ही स्वस्थ हों, तो भविष्य में उन का दूध उत्पादन बेहतर होता है. लेकिन उन के जीवन के पहले 3 हफ्ते में दस्त (डायरिया) एक सामान्य और गंभीर समस्या बन कर सामने आ सकती है.
यदि इस समस्या पर समय रहते ध्यान न दिया जाए, तो यही उन के मरने का कारण बन सकता है. साल 2007 में यूएस डेयरी की एक रिपोर्ट में पाया गया है कि 57 फीसदी वीनिंग गोवत्सों की मृत्यु दस्त के कारण हुई, जिन में अधिकांश बछड़े 1 माह से छोटे थे.
दस्त लगने की कई वजहें हो सकती हैं. सही समय पर दूध न पिलाना, दूध का अत्यधिक ठंडा होना या ज्यादा मात्रा में देना, रहने की जगह का साफसुथरा न होना या फिर फफूंद लगा चारा खिलाना आदि. इस के अलावा बछड़ों में दस्त अकसर एंटरोपैथोजेनिक ई कोलाई नामक जीवाणु के कारण होता है. यह जीवाणु आंत से चिपक कर घाव पैदा करता है, जिस से आंत के एंजाइम की गतिविधि घट जाती है. इस वजह से भोजन का पाचन प्रभावित होता है और खनिज पदार्थ अवशोषित होने के बजाय मल के माध्यम से बाहर निकल जाते हैं.
कुछ ई कोलाई वेरोटौक्सिन का उत्पादन करते हैं, जिस से अधिक गंभीर स्थिति जैसे खूनी दस्त हो सकते हैं.आमतौर पर 2 सप्ताह से 12 सप्ताह के बछड़ों में साल्मोनेला प्रजाति के जीवाणुओं के कारण दस्त के लक्षण देखे जाते हैं. इस के अलावा कोरोना वायरस, रोटा वायरस जैसे वायरस और जियार्डिया, क्रिप्टोस्पोरिडियम पार्वम जैसे प्रोटोजोआ भी दस्त के सामान्य कारण हैं.
दस्त के लक्षणों को पहचानना बहुत महत्त्वपूर्ण है. बछड़े की धंसी हुई आंखें, तरल पदार्थों का सेवन कम होना, लेटना, हलका बुखार, ठंडी त्वचा और सुस्ती इस समस्या के संकेत हैं.
यदि बछड़ा बारबार लेट रहा हो, खुद से खड़ा नहीं हो पा रहा हो और खींचने पर आंखों के पास की त्वचा वापस आने में 6 सेकंड से अधिक समय ले रही हो, तो तुरंत पशु डाक्टर से सलाह लें.
दस्त से बचाव के लिए गर्भावस्था के अंतिम 3 महीनों में गाय के पोषण का विशेष ध्यान रखना चाहिए, ताकि बछड़ा स्वस्थ हो और मजबूत रोग प्रतिरोधक क्षमता के साथ जन्म ले.
बछड़े को जन्म के 2 घंटे से ले कर 6 घंटे के भीतर खीस पिलाना आवश्यक है. यदि बछड़ा डिस्टोकिया (कठिन प्रसव) से पैदा हुआ हो, तो उस के सिर और जीभ पर सूजन के कारण खीस को वह ठीक से नहीं पी पाएगा. ऐसे में बछड़े की विशेष देखभाल करनी चाहिए.
इस के अलावा बछड़े को बाहरी तनाव जैसे अधिक ठंड, बारिश, नमी, गरमी और प्रदूषण से बचाना चाहिए. साथ ही सही समय पर टीका भी लगवाना आवश्यक है, ताकि बछड़ा स्वस्थ रह सके.
यदि बछड़े को दस्त हो जाए, तो सब से पहले शरीर में पानी और इलैक्ट्रोलाइट्स की कमी को पूरा करना जरूरी है. इस के लिए हर दिन 2-4 लिटर इलैक्ट्रोलाइट घोल पिलाएं. घर पर ही इलैक्ट्रोलाइट घोल बनाने के लिए :
1 लिटर गरम पानी में 5 चम्मच ग्लूकोज, 1 चम्मच सोडा बाईकार्बोनेट और 1 चम्मच नमक मिलाएं यानी एक चम्मच = 5 ग्राम लगभग.
नेबलोन आयुर्वेदिक पाउडर (10-20 ग्राम) को सादा पानी या चावल के मांड में मिला कर दिन में 2-3 बार पिलाएं. यदि स्थिति गंभीर हो, तो हर 6 घंटे पर यह घोल दें. दस्त करने वाले आंतरिक परजीवियों से बचाव के लिए एल्बेंडाजोल, औक्सीक्लोजानाइड और लेवामिसोल जैसे डीवार्मर्स समयसमय पर देने चाहिए. यदि आवश्यक हो, तो पशु डाक्टर की सलाह से एंटीबायोटिक्स का उपयोग करें.
बछड़ों में दस्त की समस्या को सही समय पर पहचान कर उचित देखभाल और उपचार से नियंत्रित किया जा सकता है.