सर्दियों में उगाई जाने वाली हरे चारे की यह खास फसल है. यह मुलायम, रसीला और पौष्टिक चारा है. देश में अनेक हिस्सों में इसे बोया जाता है. इस चारे को एक बार बो कर इस से 6 से 8 महीने तक चारा लिया जा सकता है.
जब चारा पकने लगे तब इस से बीज की पैदावार भी ली जा सकती है. इस बीज को आगे भी बोने के काम में लिया जा सकता है. सर्दी में उगाए जाने वाले चारे की बढ़वार भी ठंडे मौसम में अच्छी होती है.
जमीन और खेत की तैयारी : पानी सोखने वाली दोमट मिट्टी में बरसीम की अच्छी बढ़ोतरी होती है. खेत तैयार करने के लिए पहले खेत की जुताई करें, फिर पाटा लगा कर इकसार करें.
बोआई के लिए छोटीछोटी क्यारियां बनाएं जिस से पानी ठीक से लगाया जा सके. लंबे या बड़े इलाके में एकसाथ पानी देने पर कहींकहीं पानी ठहर सकता है.
यह बात सभी फसल के लिए लागू होती है कि पानी खेत में जगहजगह न भरे. जगहजगह पानी भर जाने से फसल को नुकसान होना तय है इसलिए इस तरह की सामान्य बातों का ध्यान रखें.
बरसीम बोने का समय : सितंबर के आखिरी हफ्ते से नवंबर महीने तक इसे बोया जा सकता है. देरी से बोआई करने पर चारे की कम कटाई मिलेगी.
किस्में : अच्छी पैदावार के लिए साफसुथरे व अच्छे किस्म का बीज लें. वरदान, जेबी 1, बीएल 1 भस्कावी वगैरह किस्में अच्छी पैदावार देती हैं.
बीजोपचार व बोआई : बोने से पहले बीजोपचार कर लें. बरसीम के बीज को कल्चर (बरसीम का टीका) से उपचारित करना चाहिए. यह टीका आप अपने नजदीकी कृषि विज्ञान केंद्र से हासिल कर सकते हैं जो बहुत कम कीमत में मिलता है. 20 से 25 किलोग्राम बीज को उपचारित करने के लिए 1 लिटर पानी में 100 से 125 ग्राम गुड़ घोल कर उसे ठंडा कर लें. ठंडे किए गए घोल और कल्चर (टीका) में मिला लें. इस के बाद इसे बरसीम बीज पर इस तरह से मिलाएं कि बीजों पर उस की परत चढ़ जाए. उस के बाद बीज को छाया में सुखा लें.
अगर आप कल्चर से बीज उपचारित नहीं कर पा रहे हैं तो जिस खेत में पिछली बार बरसीम बोया गया हो उस खेत की मिट्टी को बीज के साथ मिला कर बरसीम की बोआई की जा सकती है.
बरसीम बोना बहुत ही आसान है. इस के लिए तैयार किए गए खेत में पानी भर दें. उस के बाद उस पानी भरी क्यारियों या खेत में समान मात्रा में बरसीम बीज छिड़क दें. धीरेधीरे जब खेत का पानी जमीन सोख लेगा तो बीज भी वहीं पर जमने लगेगा.
बरसीम को कभी भी सूखे खेत में छिड़क कर न बोएं. पानी भरे खेत में ही छिड़कवां तरीके से बीज बोएं वरना सूखे खेत में बीज छिड़कने के बाद आप अगर खेत में पानी देंगे तो बीज पानी के साथ बह कर जगहजगह या एक जगह इकट्ठा हो जाएगा.
सिंचाई : तकरीबन 15-20 दिनों के अंतराल पर फसल में पानी देने की जरूरत होती है.
खाद व उर्वरक : यह काम खेत तैयार करते समय करना चाहिए. खेत की जुताई के दौरान ही सड़ी गोबर की खाद देनी चाहिए और आखिरी जुताई के समय 25 किलोग्राम नाइट्रोजन, 80 किलोग्राम फास्फोरस और 20 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से खेत में मिला देना चाहिए.
कटाई : बरसीम बोने के 40-45 दिनों बाद ही बरसीम काटने लायक हो जाती है और अपनी सुविधानुसार फसल की कटाई करते रहें. आमतौर पर चारे की 7-8 बार कटाई की जाती है. चारे की कटाई 25-30 दिनों के अंतराल पर करें.
बीज पैदावार : चारे की कटाई का समय खत्म होने के बाद फसल न काटें. मार्च में आप चारे की कटाई बंद कर दें और आखिरी कटाई के बाद उस में सिंचाई कर के छोड़ दें. उस समय गरमी का मौसम होता है. अगर जरूरत हो तो फिर सिंचाई कर दें लेकिन सिंचाई सीमित ही करें क्योंकि बीज पकते समय ज्यादा पानी की जरूरत नहीं होती है.
बरसीम फसल पक कर मईजून तक बीज के लिए तैयार हो जाती है. इसे आप अगले सीजन में इस्तेमाल कर सकते हैं या बाजार में बेच भी सकते हैं.
चारा काटने की मशीन
हाथ से चारा काटते समय अकसर दुर्घटना हो जाती है. कई बार हाथ तक कट जाता है. इसी बात को ध्यान में रखते हुए पूसा कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली ने अपनी मशीन में समयसमय पर तमाम सुधार किए हैं, जो दुर्घटनारहित हैं. इन में लगे चारा काटने वाले ब्लैडों से दुर्घटना को रोकने के लिए ब्लैड गार्ड लगाए गए हैं. इन गार्डों को ब्लैडों के आगे बोल्टों के जरीए जोड़ा गया है.
मशीन से जब काम न लेना हो तो उसे बोल्टों के जरीए ताला लगा कर बंद किया जाता है.
चारा लगाने वाली जगह पर एक खास रोलर भी लगाया गया है जिस से चारा लगाते समय हाथ असुरक्षित जगह पर न जाने पाए, इस का पता पहले ही लग जाता है.