भारत कृषि प्रधान देश है. इस में पशुपालन कृषि उत्पादन प्रक्रिया में सहभागी है. हमारा देश दुनियाभर में दूध उत्पादन के मामले में अव्वल है. यह वैज्ञानिकों और किसानों की कड़ी मेहनत का ही नतीजा है.

पशुओं के रखरखाव में अकसर 60-65 फीसदी खर्च पालनेपोसने पर ही आता है. देश में साल में 2 बार हरे चारे की तंगी या कमी के मौके आते हैं, अप्रैलजून और नवंबरदिसंबर.

पशुपालक गरमी में मक्का, लोबिया ज्वार, बाजरा वगैरह वैज्ञानिक विधि से उगा कर कम लागत में ज्यादा पैदावार ले सकते हैं.

दलहनी चारे अधिक पौष्टिक होतेहैं, पर उन्हें ज्यादा नहीं खिलाना चाहिए क्योंकि इस से पशुओं में पेट फूलना या अफरा रोग हो जाता है.

पशुपालक एक दलहनी व गैरदलहनी वाली फसलों को मिला कर के अपने खेतों पर लगाएं. इस प्रकार के हरे चारे को पशुओं को खिलाने से पशुओं को कार्बोहाइड्रेट के साथसाथ प्रोटीन की आपूर्ति भी होती है. साथ ही, पशुओं की अच्छी बढ़ोतरी होने के साथसाथ दूध भी बढ़ जाता है.

जलवायु : ज्यादा हरा चारा हासिल करने के लिए पानी, हवा, सूरज की रोशनी और माकूल जलवायु की जरूरत होती है. सफल उत्पादन मौसम की अनुकूल व प्रतिकूल दोनों ही दशाओं पर निर्भर करता है. आमतौर पर 25-30 डिगरी सैल्सियस तापमान मक्का, ज्वार, बाजरा, लोबिया वगैरह के लिए उपयुक्त रहता है.

जमीन की तैयारी : सही जल निकास वाली दोमट या रेतीली मिट्टी इस की पैदावार के लिए सही रहती है. साथ ही, जमीन समतल होनी चाहिए. एक जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करें व 2-3 गहरी जुताइयां देशी हल या कल्टीवेटर से करने के बाद जमीन को समतल कर लें.

बीज बोने का समय : चारे की फसल लाइन में करें. छोटे आकार के बीज जैसे बाजरा वगैरह की बोआई छिटकवां विधि से भी कर सकते हैं. चारा फसलों की बोआई मार्च से जुलाई माह तक कर सकते हैं.

फसल मिश्रण : चारे की फसल बोने पर साधारण बीज दर प्रति हेक्टेयर आधी कर देनी चाहिए. दलहनी व गैरदलहनी फसलों का ही मिश्रण बना कर पशुपालक उगाएं. इस से ज्यादा पैदावार होने के साथसाथ जमीन की उर्वराशक्ति भी बढ़ जाती है जैसे मक्का लोबिया, ज्वार, ग्वार वगैरह.

सिंचाई : गरमी में 10-15 दिन के अंतराल पर सिंचाई करते रहने से चारे की बढ़वार अच्छी होती है. बारिश में जरूरत पड़ने पर ही सिंचाई करें.

खाद व उर्वरक डालने की विधि : आमतौर पर मिट्टी जांच के आधार पर ही खाद और उर्वरक डालें. 250-300 क्विंटल प्रति हेक्टेयर अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद जुताई के समय खेत में ठीक से मिलाएं. फास्फोरस व पोटाश की पूरी मात्रा और नाइट्रोजन की आधी मात्रा खड़ी फसल में डालें.

कटाई: एक काट वाली फसलों की कटाई 55-60 दिनों के बाद करें यानी फूल बनते समय कटाई करें जिस से अधिकतम पोषक तत्त्वों का फायदा मिल सके.

कई काट वाली फसलें जैसे ज्वार की पहली कटाई 35-40 दिन के बाद करें और बाद की कटाइयां 20-22 दिन बाद करें. काट वाली फसलों की कटाई जमीन से 5-7 सैंटीमीटर ऊपर से करनी चाहिए, जिस से जल्दी बढ़वार हो सके.

मुख्य चारा फसलों की जानकारी : गैरदलहनी फसलों में मक्का, ज्वार, बाजरा हैं व दलहनी फसलों में लोबिया, ग्वार का हरा चारा मिला कर खिलाने से पशु का दूध उत्पादन गरमी में कम नहीं होगा. साथ ही, पशु की प्रजनन क्षमता में भी सुधार होगा. इस तरह पशुपालक कम खर्च कर के ज्यादा आमदनी हासिल कर सकेंगे.

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