मछलियों में तकरीबन 70-80 फीसदी पानी, 13-22 फीसदी प्रोटीन, 1-3.5 फीसदी खनिज पदार्थ और 0.5-2.0 फीसदी चरबी पाई जाती है. कैल्शियम, पोटेशियम, फास्फोरस, लोहा, सल्फर, मैग्नीशियम, तांबा, जस्ता, मैगनीज, आयोडीन आदि खनिज पदार्थ मछलियों में मौजूद होते हैं. मछली का आहार काफी पौष्टिक माना गया है.
राइबोफ्लोविन, नियासिन, पेंटोथेनिक एसिड, वायोटीन, थाइमिक विटामिन बी-12, बी-6 वगैरह भी मछली में पाए जाते हैं. इस का सेवन सेहत के लिए काफी फायदेमंद है.
मछली में ओमेगा 3 नामक फैटी एसिड पाया जाता है, जो मनुष्य के लिए काफी जरूरी है. इस की कमी से शरीर में मधुमेह, दिल की बीमारी, सूखी चमड़ी के साथसाथ खाजखुजली, चमकीले बाल और खून की कमी, थकावट, जोड़ों में दर्द, नामर्दी, तनाव वगैरह होने की संभावना रहती है. ओमेगा 3 फैटी एसिड साधारण जैविक क्रियाओं के लिए जरूरी है, लेकिन यह और भी कई वजह से मनुष्य के लिए लाभदायक है.
तालाब को ऐसे चुनें
जिस तरह खेती के लिए जमीन जरूरी है, उसी तरह मछलीपालन के लिए तालाब की भी जरूरत होती है.
मछलीपालन के लिए 0.2 हेक्टेयर से 5.0 हेक्टेयर तक के ऐसे तालाबों को चुनना चाहिए जिन में सालभर पानी भरा रहे. साथ ही, ऐसी भी व्यवस्था होनी चाहिए कि तालाबों में सालभर 1-2 मीटर पानी जरूर भरा रहे.
तालाब ऐसी जगह पर हो, जहां बाढ़ का खतरा न हो और आसानी से पहुंचा जा सके. तालाब को सही तरीके से बनाने के लिए अगर बीच में कहीं टीले आदि हों तो उन की मिट्टी निकाल कर एकसमान गहराई रखी जा सकती है. तालाब के तटबंध ऊंचे होने चाहिए. पानी के निकास के लिए जाली का सही इंतजाम होना जरूरी है, ताकि तालाब से मछलियां बाहर न निकलें और बाहरी मछलियां तालाब में न आ सकें.
तालाब में सुधार के काम अप्रैलमई तक जरूर करा लें, जिस से मछलीपालन के लिए सही समय मिल सके.
नया तालाब बनाने के लिए सही जगह का चुनना बहुत ही जरूरी है. तालाब बनाने के लिए मिट्टी की जलधारण कूवत व उर्वरकता को चयन का आधार माना जाना चाहिए. ऊसर व बंजर जमीन पर तालाब नहीं बनाना चाहिए.
मछलीपालन के लिए चिकनी मिट्टी वाली जमीन काफी अच्छी रहती है. इस मिट्टी की जलधारण कूवत ज्यादा होती है. मिट्टी का पीएच मान 6.5 से 8.0, आर्गेनिक कार्बन 1.0 फीसदी और मिट्टी में रेत 40 फीसदी, सिल्ट 30 फीसदी व क्ले 30 फीसदी रहना चाहिए.
तालाब बनाने से पहले मिट्टी की जांच मछली विभाग की प्रयोगशालाओं या फिर दूसरी प्रयोगशालाओं से जरूर करा लेनी चाहिए.
मिट्टी और पानी की जांच
मछली की ज्यादा पैदावार पाने के लिए तालाब की मिट्टी व पानी का सही होना बहुत जरूरी है. मंडल लैवल पर मछली विभाग की प्रयोगशालाओं द्वारा मछलीपालकों के तालाबों की मिट्टीपानी की निशुल्क जांच की जाती है और वैज्ञानिक तरीके से मछलीपालकों को तकनीकी सलाह भी दी जाती है.
तालाब प्रबंध व्यवस्था
मछलीपालन शुरू करने से पहले इस बात पर ध्यान देना जरूरी है कि मछली का बीज डालने के लिए तालाब पूरी तरह से सही हो.
बेकार पौधे उखाड़ दें
तालाब में जरूरत से ज्यादा जलीय पौधों का होना मछली की अच्छी पैदावार के लिए हानिकारक है. जलीय पौधे पानी के काफी बड़े हिस्से में फैले रहते हैं. साथ ही, ये सूरज की रोशनी को भी पानी के भीतर पहुंचने में बाधा पहुंचाते हैं. इस की वजह से मछली को प्राकृतिक भोजन न मिलने से उस की बढ़वार पर असर पड़ता है.
मछली पकड़ने के लिए जाल डालते समय यह पौधे उस में रुकावट डालते हैं. खासतौर पर जलीय पौधे 3 तरह के होते हैं. पहले, पानी की सतह वाले जैसे, जलकुंभी व लेमना. दूसरे जड़ जमाने वाले जैसे कमल इत्यादि और तीसरे, जल में डूबे रहने वाले जैसे हाइड्रिला और नजाज आदि.
यदि तालाब में जलीय पौधे कम तादाद में हों तो इन्हें जाल चला कर या मजदूर लगा कर जड़ से उखाड़ा जा सकता है. ज्यादा जलीय वनस्पति होने में कैमिकल का इस्तेमाल जैसे 2,4 डी, सोडियम, लवण, टैफीसाइड हेक्सामार और फरनेक्सान 8-10 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर पानी में इस्तेमाल करने से जलकुंभी, कमल आदि सड़गल जाते हैं. कुछ जलमग्न पौधे ग्रास कौर्प मछली खाती हैं इसलिए इन की रोकथाम तालाब में ग्रास कौर्प मछली पाल कर की जा सकती है.
मछली की सफाई
पुराने तालाबों में अनुपयोग जीवों में कछुआ, मेंढक, केकड़े और मछलियों में सिंधरी, पुठिया, चेलवा आदि हैं और भक्षक मछलियों में पढि़न, रैंगन, सौल, गिरई, सिंधी आदि प्रजातियां तालाब में मौजूद पदार्थों को भोजन के रूप में इस्तेमाल करती हैं.
मांसाहारी मछलियां कौर्प मछलियों के बच्चों को खा जाती हैं. इस का मछलीपालन पर बुरा असर पड़ता है. इसलिए इन की सफाई बहुत जरूरी है. इन मछलियों का निबटान समयसमय पर जाल चला कर, पानी निकाल कर या फिर महुए की खली का इस्तेमाल कर के किया जा सकता है.
महुए की खली का इस्तेमाल 1 हेक्टेयर क्षेत्रफल में 1 मीटर पानी की गहराई वाले तालाबों में 25 क्विंटल की दर से किया जाना चाहिए. इस के इस्तेमाल से 6 से 8 घंटे में तालाब की सारी मछलियां मर कर ऊपर तैरने लगती हैं. इन्हें जाल चला कर इकट्ठा कर के बाजार में बेचा जा सकता है. महुए की खली विष के साथसाथ 15-20 दिन बाद खाद का भी काम करती है.
चूने का इस्तेमाल
पानी का हलका क्षारीय होना मछलीपालन के लिए लाभदायक है. पानी अम्लीय या ज्यादा क्षारीय नहीं होना चाहिए. चूना पानी की क्षारीयता को बढ़ाता है और अम्लीयता व क्षारीयता को संतुलित करता है.
चूना मछलियों को दूसरों पर आश्रित रहने वालों के प्रभाव से दूर रखता है. 1 हेक्टेयर के तालाब में 250 किलोग्राम चूने का इस्तेमाल मछली बीज इकट्ठा करने से एक महीने पहले किया जाना चाहिए.
गोबर खाद का इस्तेमाल
तालाब तैयार करने में गोबर की खाद बहुत ही अहमियत रखती है. इस से मछली का प्राकृतिक भोजन पैदा होता है. गोबर की खाद, मछली के बीज इकट्ठा करने से 15-20
दिन पहले सामान्य और 10-20 टन प्रति हेक्टेयर हर साल 10 समान किस्तों में इस्तेमाल किया जाना चाहिए.
कैमिकल खाद का उपयोग
सामान्य तौर पर कैमिकल खाद में यूरिया 200 किलोग्राम, सिंगल सुपर फास्फेट 250 किलोग्राम व म्यूरेट औफ पोटाश 40 किलोग्राम यानी कुल मिश्रण 490 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर हर साल 10 समान मासिक किस्तों में इस्तेमाल किया जाना चाहिए.
यों करें मछली बीज जमा
तालाब में अच्छी किस्म की मछलियों के सही बीज का संचय किया जाना चाहिए. लेकिन इस बात का ध्यान रहे कि एक ही जलीय वातावरण में रह कर वे एकदूसरे को नुकसान न पहुंचाते हुए तालाब की अलगअलग सतहों पर मौजूद भोजन का इस्तेमाल करें और तेजी से बढ़ें.
भारतीय कौर्प मछलियों में कतला, रोहू और नैन, विदेशी कौर्प मछलियों में सिल्वर कौर्प, ग्रास कौर्प और कौमन कौर्प का मिलाजुला पालन विशेष लाभकारी है. अच्छी प्रजाति की मछलयों के लिए सही बीज ही मछलीपालन की आधारभूत जरूरत है.
मछली बीज की देखभाल
1 हेक्टेयर पानी में 50 मिलीमीटर से ज्यादा आकार की 5000 मछली बीज डाले जाने चाहिए. यदि 6 तरह की देशी व विदेशी कौर्प मछलियों को एकसाथ पाला जाए तो कतला 20 फीसदी, रोहू 30 फीसदी, सिल्वर 10 फीसदी, ग्रास कौर्प 10 फीसदी, नैन कौर्प 15 फीसदी व कौमन कौर्प 15 फीसदी का अनुपात सही रहता है.
पूरक आहार : मछली की ज्यादा पैदावार पाने के लिए जरूरी है कि उन्हें पूरक आहार दिया जाए. यह प्राकृतिक आहार की तरह पोषक तत्त्वों से भरपूर हो. साधारण तौर पर प्रोटीन से भरपूर कम खर्चीले पूरक आहारों का इस्तेमाल किया जाना चाहिए.
मूंगफली, सरसों, नारियल या तिल की बारीक पिसी खली और चावल का कना या गेहूं का चोकर दोनों बराबर मात्रा में मिला कर मछलियों के कुल भार का 1-2 फीसदी तक रोजाना दिया जाना चाहिए.