भारत में किसानों की आमदनी का मुख्य जरीया खेती के अलावा दूध उत्पादन भी है. भारत दूध के उत्पादन में दुनिया में पहले स्थान पर है. किसान दूध पैदा करने के लिए गाय, भैंस और बकरियां पालते हैं. इन से उन्हें भरपूर लाभ होता है.

पशुपालन के लिए सरकार किसानों को प्रोत्साहित कर रही है. इतना सब होने के बावजूद देश में पशुओं के लिए पौष्टिक चारा मुहैया नहीं हो पा रहा है, जिस से उन की दूध देने की कूवत पर असर पड़ रहा है. जनसंख्या के मुकाबले खेतों का दायरा कम होता जा रहा है, जिस की वजह से पशुओं के लिए हरा चारा मिलना काफी कठिन हो गया है.

किसानों के पास इतनी जमीन नहीं है कि वे खेतों में पशुओं के लिए चारा उगा सकें. इस समस्या से किसान परेशान हैं. कुछ ऐसी ही कहानी मध्य प्रदेश के होशंगाबाद रोड स्थित दीपड़ी गांव के आकाश पाटीदार की है, जिन का डेरी का कारोबार  है.

आकाश कहते हैं कि उन्हें पशुओं को हरा चारा खिलाना काफी महंगा पड़ रहा था, इसलिए वे परेशान रहते थे. लेकिन एक दिन उन्होंने यूट्यूब पर एक वीडियो देखा, जिस में कम लागत से हरा चारा उगाने की जानकारी थी. इस तकनीक का नाम हाइड्रोपोनिक्स ग्रास ट्रे है.

क्या है हाइड्रोपोनिक्स तकनीक : पानी, बालू या कंकड़ों के बीच बिना मिट्टी के चारा उगाए जाने की तकनीक को हाइड्रोपोनिक तकनीक कहते हैं.

इस विधि से चारे वाली फसल को 15 से 30 डिगरी सेंटीग्रेड तापमान पर करीब 80 से 85 फीसदी नमी में उगाया जाता है और 8 से 10 दिनों में चारा तैयार हो जाता है. यह तकनीक काफी सस्ती भी पड़ती है. इस तकनीक से किसान चारे की समस्या पर काबू पा सकते हैं.

घर में कैसे तैयार करें हाइड्रोपोनिक्स चारा : हाइड्रोपोनिक्स ट्रे बनाने के लिए 8×2 फुट की टीन की चादर या प्लास्टिक ट्रे का इस्तेमाल किया जा सकता है. हाइड्रोपोनिक्स चारा 10 दिनों में पशुओं को खिलाने लायक हो जाता है, इसलिए आप को कम से कम 10 ट्रे की जरूरत होगी.

इस से आप को रोजाना हरा चारा हासिल होगा. एक ट्रे में करीब 10 किलोग्राम चारा हो जाता है.

बीज : हाइड्रोपोनिक्स ग्रास ट्रे के लिए करीब 1किलोग्राम मक्के के बीज लें. उन बीजों को 10 से 12 घंटे तक किसी बालटी में भीगने के लिए रख दें. अब इन भीगे हुए बीजों को 24 घंटे के लिए जूट के बोरे में लपेट कर रख दें. अगले दिन बीज अंकुरित हो जाएंगे, फिर इन अंकुरित बीजों को किसी ट्रे में रख दें.

पशुओं को रोजाना ताजा हरा चारा मिले, इस के लिए रोजाना बीजों को 12 घंटे के लिए भिगाएं और फिर उन्हें अगले 24 घंटे तक जूट के बोरे में लपेट कर रखें, जिस से बीजों में अंकुर आ जाएं. इस बात पर खास ध्यान दें कि हर दिन इसी तरह काम करना होगा. आप मक्के के बीजों के अलावा ज्वार, बाजरा और बरसीम के बीजों से भी पशुओं के लिए हरा चारा उगा सकते हैं.

मिट्टीपानी की जरूरत नहीं : हाइड्रोपोनिक्स तकनीक से चारा उगाने के लिए पानी और मिट्टी की जरूरत नहीं पड़ती, लेकिन गरमियों में 10 दिनों में 1 या 2 बार पानी का हलका सा छिड़काव किया जा सकता है, क्योंकि अंकुरित बीजों में पहले से ही नमी रहती है.

हाइड्रोपोनिक्स तकनीक से लाभ : इस तकनीक का सब से बड़ा लाभ यह है कि इस से काफी कम जगह में पोषणयुक्त हरा चारा आसानी से मुहैया हो जाता है.

हाइड्रोपोनिक्स तकनीक से आम किसान सालभर दुधारू पशुओं के लिए कम जगह में हरा चारा उगा सकते हैं, जिन्हें आमतौर पर कई एकड़ में चारा उगाना पड़ता है. इस विधि से लागत भी काफी कम आती है और मिट्टी के उपजाऊ न होने का फर्क भी नहीं पड़ता.

* रिसर्च में पाया गया कि परंपरागत हरे चारे में क्रूड प्रोटीन 10.7 फीसदी होता है, जबकि मक्के से तैयार हाइड्रोपोनिक्स चारे में कू्रड प्रोटीन 13.6 फीसदी होता है, परंपरागत हरे चारे में कू्रड फाइबर भी कम होता है. हाइड्रोपोनिक्स चारे में अधिक ऊर्जा और विटामिन होते हैं. इस से पशुओं में दूध का उत्पादन अधिक होने लगता है.

* हाइड्रोपोनिक्स तकनीक में मिट्टी की जरा भी जरूरत नहीं होती और पानी भी बहुत कम देना पड़ता है.

इस वजह से पौधों के साथ न तो अनावश्यक खरपतवार उगते हैं और न ही इन पर कीड़ेमकोड़े लगने का डर रहता है. इसलिए कीटनाशकों का इस्तेमाल नहीं होता और न ही खाद का. इस तकनीक से हरा चारा उगाने में मौसम का भी कोई प्रभाव नहीं पड़ता. इसे किसी भी मौसम में उगाया जा सकता है.

* हाइड्रोपोनिक्स तकनीक से हरा चारा 8 से 10 दिनों में पशुओं को खिलाने के लायक हो जाता है. परंपरागत तकनीक में चारा तैयार होने में 40 से 45 दिन लगते हैं. 100 पशुओं के लिए परंपरागत विधि से चारा उगाने के लिए करीब 15 एकड़ जमीन की जरूरत पड़ती है, लेकिन हाइड्रोपोनिक्स तकनीक से 1000 वर्गफुट में 15 एकड़ के बराबर चारा आसानी से कम लागत में उगाया जा सकता है.

इस चारे को मशीन से काट कर खिलाया जाता है और चारे की जड़ को भी पशुओं को खिलाया जाता है, क्योंकि उस में मिट्टी नहीं होती है.

Fodder production

हाइड्रोपोनिक्स तकनीक से दूध उत्पादन में बढ़ोतरी : इस तकनीक से उगाया गया चारा अंकुरित होने के कारण अधिक प्रोटीन और मिनरल से भरपूर होता है. इस से दूध में फैट की मात्रा बढ़ जाती है.

दूध देने वाले पशुओं को अतिरिक्त प्रोटीन व मिनिरल्स की जरूरत होती है, जिसे पूरा करने के लिए बाजार से अधिक कीमत में खरीद कर तरल प्रोटीन दिया जाता है.

बाजार से खरीदा गया प्रोटीन काफी मंहगा पड़ता है. इस की पूर्ति के लिए डेरी वाले ग्राहकों से ज्यादा कीमत वसूलते हैं.

प्रति पशु 40 रुपए की बचत : आकाश पाटीदार बताते हैं कि यूट्यूब पर सीखी गई इस तकनीक ने उन की हरे चारे की दिक्कत दूर कर दी है. आकाश बताते हैं कि उन्होंने पहले एक रैक में चारा उगाया और फिर इस की सफलता के बाद 1000 वर्गफुट में 100 पशुओं के लिए प्रोटीनयुक्त हरा चारा उगा रहे हैं.

पहले 1 पशु को दोनों समय मिला कर 8 किलोग्राम पशुआहार देना होता था, जिस के लिए बाजार से 20 रुपए प्रति किलोग्राम की दर से पशुआहार खरीदना पड़ता था. वे अब सिर्फ 6 किलोग्राम चारा दे रहे हैं. हाइड्रोपोनिक्स तकनीक से प्रति पशु 40 रुपए की बचत होने लगी.

डाक्टर एसआर नागर कहते हैं कि मिट्टी जनित चारे के मुकाबले अंकुरित चारा हर लिहाज से बेहतर है.

इस में विटामिन ‘ए’ समेत भरपूर मात्रा में प्रोटीन पाया जाता है. इस से दूध का उत्पादन बढ़ेगा, साथ में उस की गुणवत्ता भी बेहतर होगी.

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