Dairy Farming : गरमियों में गायभैंसों के दूध की मात्रा कम हो जाती है. ऐसा क्यों होता है? यों तो गरमियों में चारे की कमी का सामना करना पड़ता है, जिस का असर दूध में पड़ता ही है. दूध की कमी की वजह से गरमियों में दूध का दाम बढ़ जाना भी कोई खास बात नहीं है. पर क्या महज चारे की कमी ही इस दूध के उत्पादन में कमी के लिए जिम्मेदार है? इसे समझने के लिए हमें पशु के बदन को समझना पड़ेगा.
चाहे गाय हो या फिर भैंस वे मौसम में होने वाले ठंडेगरम के बदलाव के हिसाब से अपने बदन की गरमी को एकसा बनाए रखना जानते हैं. मौसम के उतारचढ़ाव का असर वे अपने बदन पर नहीं होने देते?हैं. अब जरा सोचिए, जाड़ों में जब बाहर का मौसम ठंडा होता है और बदन गरम होत है, तो बदन की गरमी लगातार बदन से निकल कर बाहर जाती रहती है.
बदन के अंदर पैदा होने वाली गरमी में कमी हो तो बदन को ठंड लगती है. ठंड से बचने के लिए बदन की गरमी को बाहर जाने से रोकने के लिए बदन को किसी कपड़े से ढकना, सिकुड़ कर बैठना या फिर झुंड में एकसाथ बैठना आदि किया जा सकता है.
इस के ठीक उलट गरमी के मौसम में जब मौसम का पारा बदन के पारे से ज्यादा होना शुरू हो जाता है, तो उस का असर शरीर पर होना शुरू हो जाता है, नतीजतन शरीर का पारा बढ़ जाता है. दूसरी ओर बदन के अंदर भोजन पचने के दौरान भी गरमी पैदा होती रहती है. इस तरह बदन के अंदर की गरमी व बाहर से शरीर के अंदर आने वाली गरमी बदन का पारा बढ़ाने में मदद करती है.
लिहाजा हालात से निबटने के लिए जानवर ज्यादा पानी पी कर, अपनी सांस लेने की गति को बढ़ा कर, छायादार जगह में बैठ कर, बदन को पानी से भिगो कर या फिर बदन से पसीना बहा कर बदन के सामान्य पारे को बनाए रखने की कोशिश करता है. पर यदि वह इन सब के बाद भी बदन के पारे को सामान्य रखने में असफल हो जाता है, तो उस पर गरमी का असर नजर आने लगता है. यहां यह कहना ठीक होगा कि सूखी गरमी के मौसम के मुकाबले उमस वाली गरमी जानवर को ज्यादा तकलीफ देती है और दूध उत्पादन पर ज्यादा असर डालती है.
अब इन हालात में जानवर के बदन के पास माहौल से आने वाली गरमी को कम करने का कोई तरीका तो होता नहीं है, लिहाजा उस का बदन अपने अंदर खाना पचाने में पैदा होने वाली गरमी को कम करने की कोशिश खुद ही करता है. वास्तव में बदन के अंदर खाना पचाने का काम सूक्ष्म जीवों द्वारा किया जाता है और इस काम में बेहद गरमी पैदा होती है. इस गरमी की मात्रा को कम करने के लिए बदन खुद ही भूख को कम कर देता है, लिहाजा जानवर खाना कम कर देते हैं. इस तरह बदन खाने की मात्रा कम कर के अपने सामान्य पारे को बनाए रखने की कोशिश करता है. वास्तव में पशु का कम खाना खाना ही इस बात को जाहिर करता है कि पशु गरमी की चपेट में आ गया है. ऐसे हालात में पशु एक तरफ सुस्त लगने लगता है, तो दूसरी ओर कम चारा खाने की वजह से अपने दूध उत्पादन को भी कम कर देता है.
मौसम के इस खराब असर की वजह से गायभैंसों के दूध का उत्पादन 50 फीसदी तक भी घट सकता है. सूखी गरमी के मुकाबले जुलाईअगस्त की नमी वाली गरमी ज्यादा नुकसानदायक है. पारे की 32 डिगरी सेंटीग्रेड से 38 डिगरी सेंटीग्रेड के बीच की हालत से ही गरमी का बुरा असर पड़ना शुरू हो जाता है और यदि साथ में मौसम की नमी 50 फीसदी से 90 फीसदी के बीच हो तो हालत और भी खराब हो जाती है.
अगर इस से भी ज्यादा गरमी हो तो पशु बेचैनी जाहिर करने लगता है और मुंह से सांस लेना शुरू कर देता है. इसी के साथ पशु की खाने की चाहत घट जाती है और वह छायादार जगह की तलाश करता है. पशु तेज सांसों के साथ लार भी ज्यादा बनाता है और ज्यादा पानी पीने लगता है. बेचैनी की वजह से पशु बैठने के बजाय खड़े रहना ज्यादा पसंद करता है. इन हालात में दूध का उत्पादन घटता चला जाता है.
यही नहीं, वे पशु जिन के ब्यांत के आखिरी 3 महीने गरमी के असर में बीतते हैं, उन के बच्चों का ब्यांत के समय का वजन घट जाता है. पशु का खुद का वजन भी कम हो जाता है. नतीजतन पशु अपनी अगली ब्यांत में 12 फीसदी तक कम दूध का उत्पादन कर सकते हैं. कृत्रिम गर्भाधान पर भी गरमी का खासा असर पड़ता है और गर्भाधान होने की उम्मीद 10 फीसदी से 20 फीसदी तक घट जाती है.
इन तमाम बातों को ध्यान में रखते हुए यह बेहद जरूरी है कि पशुओं को गरमी के कहर से बचा कर रखा जाए ताकि दूध उत्पादन में कमी के साथसाथ होने वाले दूसरे नुकसानों से किसान बच सकें.
कुछ छोटीछोटी बातें हैं, जिन की मदद से गरमी के बुरे असर को कुछ हद तक कम किया जा सकता है:
* पशु द्वारा चारा कम खाने की हालत में उस के खाने में अनाज/दाना की मात्रा बढ़ा देनी चाहिए.
* अनाज को पचाने में चारा पचाने के मुकाबले कम गरमी पैदा होती है, इसलिए पशु को गरमी से राहत मिलती है.
* पशु को छायादार जगह पर बांधना चाहिए.
* हर पशु के पास ठंडा पानी मौजूद होना चाहिए, ताकि वह अपनी जरूरत के मुताबिक पानी पी सके.
* पशु को ठंडे पानी से नहलाना चाहिए. इस से उस के बदन का पारा कम हो जाता है.
* पशु ज्यादा गरमी में खाना पसंद नहीं करता है, लिहाजा उस के खाने का इंतजाम इस तरह करना चाहिए कि वह अपना ज्यादा से ज्यादा खाना रात के ठंडे माहौल में खा सके.
* पशु एकदम सुबह या शाम के वक्त में भी राहत महसूस करते हैं, इसलिए इस दौरान भी चारे की मौजूदगी होनी चाहिए.
* भैंसों का तालाब या ठंडी जगह पर रहना काफी फायदेमंद रहता है.